कहानी- डील 4 (Story Series- Deal 4)

 

मोटिवेशन से जुड़ी किताबें पढ़ना और मोटिवेशनल स्पीकर्स के ऑडियो-वीडियो सुनना, देखना उसका समय बिताने का ज़रिया था. वह मोबाइल या सोशल मीडिया से चिपके रहनेवाली लड़की नहीं थी. हर चीज़ से अपडेट रहती थी, पर अपना स्टेट्स फेसबुक पर अपडेट नहीं करती थी, ना ही इंस्टाग्राम पर टहलती रहती थी. इन सब चीज़ों को वह मुखौटा कहती थी और ख़ुद की नाकामयाबियों से बचने का एक एक्सक्यूज़.

 

 

 

 

 

… “यही कि बच्चा न करना भी डील का ही हिस्सा है. अब इतना कुछ तुम्हें मिल रहा है… वह भी सब परफेक्ट, तो इतनी सी कमी तो बर्दाश्त कर ही सकते हो.’’
‘‘मम्मी-पापा नहीं मानेंगे. देखा जाए, तो परिवार में कोई भी नहीं मानेगा.’’ राहुल हिचकिचाया. शोर बढ़ रहा था, इसलिए थोड़ा ज़ोर से ही बोलना पड़ा.

 

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“राहुल कालरा, पंजाबी परिवार का इकलौता बेटा और इतनी बड़ी कंपनी का सीईओ… पिता का लंबा-चौड़ा व्यापार, मां का ट्रेंडी बुटीक और छुटकी ब्रांडेड ड्रेसेस बनानेवाली इंटरनेशनल कंपनी में मैनेजर…परफेक्ट फैमिली, उसमें किसी तरह की कमी की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.’’ शिखा की आवाज़ में तल्खी थी, पर चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थी. हमेशा की तरह शांत और रिएक्ट करने की कोई जल्दबाज़ी नहीं.
“बात को आराम से करना चाहिए, चाहे समस्या कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, उसे ठंडे दिमाग़ से सुलझाना चाहिए…” ऐसे और न जाने कितने प्रेरक विचार उसके ऑफिस के केबिन और बेडरूम में मिल जाएंगे.
मोटिवेशन से जुड़ी किताबें पढ़ना और मोटिवेशनल स्पीकर्स के ऑडियो-वीडियो सुनना, देखना उसका समय बिताने का ज़रिया था. वह मोबाइल या सोशल मीडिया से चिपके रहनेवाली लड़की नहीं थी. हर चीज़ से अपडेट रहती थी, पर अपना स्टेट्स फेसबुक पर अपडेट नहीं करती थी, ना ही इंस्टाग्राम पर टहलती रहती थी. इन सब चीज़ों को वह मुखौटा कहती थी और ख़ुद की नाकामयाबियों से बचने का एक एक्सक्यूज़. ज़िंदगी में उसके सारे फंडे क्लियर थे, इसलिए कोई दुविधा या ‘इफ्स एंड बट्स’ उसके आसपास भी नहीं फटकते थे.
राहुल को पता था कि इस बार भी वह एकदम क्लियर है… यानी उसे बच्चा नहीं चाहिए…
‘अब?’ राहुल ने ख़ुद से पूछा. शिखा से पूछने का तो सवाल ही नहीं उठता था. वह अपना फ़ैसला नहीं बदलेगी. अब उसे ही अपने आप से पूछना होगा या शायद मम्मी-पापा से? वे तो नहीं मानेंगे, इस बात का उसे पक्का यक़ीन था.

 

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‘‘चलें?’’ वह उठ खड़ी हुई. पेमेंट वह पहले ही कर चुकी थी. आज उसकी बारी है पेमेंट करने की, ऐसा उसने कहा था.
‘‘वही क्यों हर बार पैसे चुकाए,’’ शिखा का मानना था. कहा न उसकी ज़िंदगी के फंडे क्लियर हैं- ‘नो इफ्स एंड बट्स.’ सबसे एकदम अलग… यही बात उसकी आज तक आकर्षित करती आई थी और तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद, वह उसे अच्छी लगती थी, तभी तो जीवनसाथी बनाने का फ़ैसला किया था, पर इस समय…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

सुमन बाजपेयी

 

 

 

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Usha Gupta

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