… पहली बार जैसे कोई नुकीला कंकड़ आकर उसे चुभा था.
‘‘इतना दिमाग़ पर बोझ मत डालो, वरना दिल प्यार से नहीं शॉक से धक-धक करने की अपनी स्पीड बढ़ा देगा.’’
शिखा ज़ोर से हंसने लगी थी. उसका खुलकर हंसना, जो अभी कुछ मिनट पहले तक उसे तरंगित कर रहा था, इस समय बाज़ार के बीचोंबीच ऊंचे लगे ज़ोर-ज़ोर से बजते किसी घंटे जैसा लगा… टन टन टन… उसे अपना सिर फटता हुआ महसूस हुआ.
‘‘यू नो राहुल, मैरिज एक डील की तरह होती है. उसमें सब कुछ नहीं मिलता… कोई चीज़ बहुत ज़्यादा मिल जाती है, तो कहीं नुक़सान उठाना पड़ता है. इस डील में सबसे ज़्यादा एडजस्ट करना पड़ता है. कहीं लड़का अच्छा लगता है, तो उसके मां-बाप पसंद नहीं आते. कई बार मां-बाप अच्छे होते हैं, पर लड़के की नौकरी पसंद नहीं आती. लड़की बढ़िया कमाती है, पर सुंदर नहीं है. किसी के मानदंडों पर लड़का-लड़की, मां-बाप सब खरे उतरे, तो लड़की अड़ गई कि शादी के बाद लड़का उसी के घर में रहे, क्योंकि वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान है और उन्हें अकेले छोड़ना नहीं चाहती है.’’
शिखा चलते-चलते अचानक रुक गई. उसने एक और च्यूंइगम निकाली और मुंह में डाल ली. जींस से कुछ हटाने को झुकी शायद धूल का कोई कण होगा, फिर सीधे होकर उसने अपने टॉप को ठीक किया. राहुल को पता है कि उसे गंदगी से सख़्त नफ़रत है. क्लीनीनेंस फ्रीक है… यानी अगर डील होती है, तो उसकी सफ़ाई की सनक भी उसके साथ गृह प्रवेश करेगी. उसके होंठों पर मुस्कान थिरकी अपनी ही सोच पर.
‘‘एक कॉफी और हो जाए?’’ कॉफी कैफे डे में अंदर जाते हुए उसने पूछा. जब अंदर कदम रख ही दिया है, तो पूछने की ज़रूरत ही क्या है. पूछना नहीं, बताना था. राहुल के होंठों पर फिर मुस्कान आने को मचलने लगी. पर उसने होंठों पर ऐसे हाथ रख लिया मानो मुस्कान को चेता रहा हो, रुक ज़रा.
वैसे हैरान होने जैसी बात भी नहीं है. शिखा को जानता है… डेढ़ साल हो गया है दोनों की दोस्ती हुए और अब बात शादी की ओर बढ़ रही है. ‘जानता ही है या समझता भी है,’ किसी ने उसे टोका. भीतर की आवाज़ हमेशा उसे इसी तरह टोकती, कुरेदती है… जब जवाब ढूंढ़ रहा होता है या उधेड़बुन में होता है, ख़ासकर जब सवाल शिखा से जुड़े होते हैं. आदतन उसके हाथ कान को सहलाने लगे.
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‘‘तुम बच्चा नहीं चाहतीं, यह हमारी शादी की डील है?’’ उसने बैठते हुए पूछा.
शिखा ने सुना, उसे किसी निरीक्षक की आंखों से देखा, कुछ तौला, कुछ नापा, फिर ऑर्डर देने लगी.
सुमन बाजपेयी
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