कहानी- ढलती सांझ के प्रेममयी रंग 5 (Story Series- Dhalti Sanjh Ke Premmayi Rang 5)

 

आज पहली बार रोहित के साथ की आवश्यकता महसूस हुई उसे. कौन कहता है जीवन में बस भोर की लालिमा ही सुखद दिन लेकर आती है, ढलती सांझ भी तो अनगिनत रंग बिखेर देती है जीवन के आकाश में. देख रही थी विशाखा ढलती सांझ के यह प्रेममई रंग, जो जीवन के सारे पड़ाव में सबसे सुंदर हैं, आत्मीय है.

 

 

 

 

… “आप मत उतरिए. मैं लेती हूं.” आंटी ने कहा, लेकिन तब तक तो अंकल नीचे आकर बैग में से दवाई निकाल चुके थे. फिर बॉटल से ग्लास में पानी निकालकर आंटी को दिया.
यह भी तो प्रेम का ही रूप है. शुद्ध भावनात्मक प्रेम. कितना सुखद है इस तरह से साथ होना… और एक वह है, जो इस साथ से रोहित को अब तक वंचित रखे हुए है. आज पहली बार रोहित के साथ की आवश्यकता महसूस हुई उसे. कौन कहता है जीवन में बस भोर की लालिमा ही सुखद दिन लेकर आती है, ढलती सांझ भी तो अनगिनत रंग बिखेर देती है जीवन के आकाश में. देख रही थी विशाखा ढलती सांझ के यह प्रेममई रंग, जो जीवन के सारे पड़ाव में सबसे सुंदर हैं, आत्मीय है.

 

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उज्जैन स्टेशन पर ट्रेन रुकी, तो बहुत मना करने पर भी अंकल प्लेटफार्म पर उतर गए. यहां दूध बहुत बढ़िया मिलता है औटाया हुआ मिट्टी के कुल्हड़ में.
विशाखा भी चली गई उनके साथ, ताकि एक साथ ही तीनों कुल्हड़ ला सके. मिट्टी के कुल्हड़ में दूध के सौंधे स्वाद के साथ तीनों फिर बातों में रंग गए. कोई अपने से बड़ा साथ हो, तो ख़ुद की उम्र ही कम लगने लगती है. आज विशाखा को लग रहा था वह पुनः युवा हो गई है. वह खुल कर हंस रही थी. बनावटी प्रौढ़ता का आवरण ख़ुद ही पता नहीं कब उतर गया. उस रात उसे देर तक रोहित की याद आती रही. मन कह रहा था उसके पास जाकर उसका हाथ थाम कर कंधे पर सिर रखकर ढेर सारी बातें करे उससे.
सुबह फिर अंकल-आंटी के साथ चाय-नाश्ता और बातें करते कब अहमदाबाद का स्टेशन आ गया, पता नहीं चला. मन भर आया. अंकल-आंटी को प्रणाम करने झुकी, तो आंटी ने गले लगा लिया. अंकल ने सिर पर हाथ रखा, तो आंखें भीग गईं उन सभी की. लगा जैसे अपने माता-पिता से ही दूर हो रही है. उनका फोन नंबर लेकर वह नीचे उतर गई. अंकल दरवाज़े पर खड़े ओझल होने तक हाथ हिलाते रहे.

 

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सूटकेस उठाए वह पहले वापसी का टिकट बुक करने टिकट खिड़की की ओर बढ़ गई. अब उसे भी रात आने से पहले अपने जीवन के आकाश में रोहित के साथ ढलती सांझ के प्रेममयी रंग भरने थे.

डॉ. विनीता राहुरीकर

 

 

 

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