कहानी- क्रेडिट 1 (Story Series- Credit 1)

 

 

 

 

 

“अरे कोई उर्वशी को फोन लगाओ. कब तक इंतज़ार करेंगे.”
“मेरी थोड़ी देर पहले उससे बात हुई थी. किसी का इंटरव्यू लेने में व्यस्त है. हो सकता है उसे देर हो जाए.” विकास के जवाब पर अमीषा केतकी से बोली, “अब आपको केक काटने की सेरमनी कर लेनी चाहिए. उर्वशी अपने काम में फंसी है. पता नहीं और कितनी देर लगे.”
“किसका इंटरव्यू ले रही है वो?” केतकी के पूछने पर स्टाफ राइटर विकास बोले, “प्रेस से दो दिन बाद निकलने वाले साप्ताहिक अंक में पांच ऐसे सफल पुरुषों का इंटरव्यू छपना है, जिनकी सफलता का क्रेडिट उनकी पत्नियों को जाता है. उन्हीं इंटरव्यू की कवरेज में वो लगी हुई है.”

 

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“ओह!” कहकर केतकी केक काटने की तैयारी में जुट गई.
देवनन्दिनी समाचार पत्र प्रेस की ग्राफिक एडीटर केतकी पांडे के जन्मदिन के अवसर पर उसके घर छह-सात प्रेस के सहकर्मी इकट्ठे हुए हैं. उर्वशी को छोड़कर सब समय पर आ गए. उसके इंतज़ार में हुई देरी पर अमीषा ने मन ही मन गुणा-भाग शुरू कर दिया था. आठ बजकर दस मिनट हो गए हैं. यहां से निकलते नौ और घर पहुंचते-पहुंचते साढ़े नौ बज जाएंगे. बाट जोहते हर्ष का चेहरा ध्यान में आया, तो सोचा, काश! वो भी साथ आ जाते, तो अच्छा होता. कम से कम घर जाकर खाना बनाने की कवायद से फ़ुर्सत पाती. पर हर्ष कहां माननेवाले थे, ‘तुम्हारे ऑफिस के कलीग्स के बीच मैं क्या करूंगा’ कहकर बिस्तर पर पसर गए. इतवार का दिन तो सिर्फ़ रिलैक्स करने के लिए ही है… और पतिदेव के रिलैक्स का अर्थ है घंटाभर ध्यान…
आठ-दस कप बिना दूध की कॉफ़ी, कम से कम एक अच्छी किताब… ढेर सारे फ्रूट्स और बिस्तर… इतवार का ये लुत्फ़ वो किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ते. कहीं आना-जाना, शॉपिंग, किसी से मिलना-मिलाना, सब शनिवार की छुट्टी पर छोड़ते हैं.

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“केक कटने जा रहा है…” किसी ने टेर लगाई, तो वह सारे सोच-विचार त्याग सबके साथ खड़ी हो गई.

 

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे 

 

मीनू त्रिपाठी

 

 

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Usha Gupta

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