… एयरहोस्टेस का अनाउंसमेंट सुनकर मैं आज में वापस लौटा. फ्लाइट मुंबई पहुंच चुकी थी. मनीषा के दिए गए ऐड्रेस पर मैं पहुंचा, तो एक पुराना-सा घर था…
“अमनजी…” घर के अंदर से आती एक आवाज़ ने मुझे चौंकाया, ये शायद मनीषा थी. वो मुझे एक गलियारे से होते हुए एक कमरे तक पहुंचा आई.
मैंने झिझकते हुए पूछा, “अनन्या कहां है? क्या हुआ है उसको? मैंने फोन पर भी पूछा था आपने पूरी बात बताई नहीं.. उसकी फैमिली.. हैं कहां सब लोग?..”
एक साथ पता नहीं मैं कितने सवाल पूछ गया था. मनीषा मुझे एकटक देखती जा रही थीं. एकदम से बोली, “अभी वो सो रही है.. आप फ्रेश हो लीजिए.. चाय भिजवाऊं?..”
मैं बिफर पड़ा था, “आप मज़ाक कर रही हैं क्या? मैं एक लेटर पाकर यहां मुंबई भागा चला आया हूं, चाय पीने तो नहीं आया हूं! कहां है अनन्या, कहां सो रही है दिखाइए…”
पता नहीं मुझे क्यों लगा कि मेरे साथ कोई बहुत ही वाहियात मज़ाक कर रहा था. मैं सच जानना ही चाहता था…
“कहां है अनन्या?”
इस बार मैंने चिल्लाकर पूछा था. पता नहीं ये मेरे मन का कौन-सा डर था, जो मुझे इतना अभद्र बना रहा था. मनीषा मुझे साथ लेकर एक गैलरी में आई और कोने में बने एक कमरे की ओर इशारा किया. मैं मन में हज़ारों तरह के डर समेटे उस कमरे की ओर बढ़ा. अंदर पैर रखते ही जैसे मेरी रुकी हुई सांस वापस आ गई. अनन्या एक चुन्नी से सिर ढके हुए, आंखें मूंदे लेटी हुई थी.
“जगाइएगा मत… बड़ी मुश्किल से नींद आती है इसको.”
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मनीषा ने फुसफुसाते हुए कहा. मेरा आगे बढ़ा हुआ कदम वहीं रुक गया, लेकिन मैं वापस अपने कमरे में नहीं जा पाया… कितने सालों बाद, लगभग दस सालों बाद मैं वो चेहरा देख रहा था, जो मेरा सब कुछ हुआ करता था. जी में आया उसका सोता हुआ चेहरा अपनी हथेलियों में भर लूं, उसका माथा चूम लूं…
“मनीषा…” अनन्या की हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी, मनीषा और मैं दरवाज़े पर ही खड़े थे, वो लपककर उसके पास गई,
“हां अनु… बोलो, यही हूं.”
अनन्या ने उससे धीरे से कुछ और पूछा, जिसके जवाब में मनीषा ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर इशारा किया,
“उधर देखो… अमन आ गए हैं.”
वो एक पल, सौ पलों पर भारी था… हमारी निगाहें मिलीं और डबडबा गईं! अनन्या संभलकर बैठने लगी, मनीषा उसके पीछे तकिया लगा रही थी… मैं भी थामने को आगे बढ़ा, तभी मुझे लगा जैसे मैंने बिजली का नंगा तार छू लिया हो…
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