कहानी- एक अधूरी कहानी 4 (Story Series- Ek Adhuri Kahani 4)

अंकल के बारे में सोचता, तो मन कसैला हो जाता. अपनी बीमारी का बहाना बनाकर वो अपनी बात मनवा ले गए. अनन्या ने एक बेटी का फर्ज़ निभाया और उन्होंने? और इन सबमें जो मेरा नुक़सान हुआ, उसकी भरपाई तो कभी हो ही नहीं सकती… मुझे अक्सर लगता कि क़िस्मत मुझे देखकर हंसती है और कहती है, “हर प्रेम कहानी पूरी नहीं होती…”

 

… मम्मी ने मेरे हाथ में पकड़े डिब्बे को देखते हुए रुक रुककर बताया, “वहां की नहीं है ये मिठाई. शादी में अनन्या को किसी ने पसंद कर लिया, उसकी शादी तय हो गई है…”
मुझे लगा जैसे इस वक़्त मेरे हाथ में मैंने एक लिजलिजा सांप पकड़ा हुआ हो, हड़बड़ाकर वो डिब्बा मेरे हाथ से छूट गया..
शादी तय हो गई मतलब? बेहोशी की हालत में तो नहीं तय की गई होगी ना? अनन्या कैसे मान गई इस रिश्ते के लिए? मेरे आगे सब कुछ गोल-गोल घूम रहा था… सबसे ज़्यादा हैरत की बात ये थी कि मम्मी कितनी उदास थीं… इसका मतलब वो सब जानती थीं? मैं उनके चेहरे पर फैली उदासी पढ़ रहा था और वो मुझे समझाने के लिए पता नहीं क्या-क्या बोलती जा रही थीं, “मैं बात करूंगी पापा से तुम्हारे, तुम एक बार अनन्या से बात करो… नाराज़ नहीं होना, उसकी बात सुनना… पूछना कि हुआ क्या, ये सब अचानक…”
फिर तो जैसे यातनाओं का एक सिलसिला शुरू हो चुका था. हमारे मिलने पर पाबंदी लगा दी गई थी. फोन पर बात करना मुश्किल था. अनन्या के पापा-मम्मी किसी भी सूरत में मुझे दामाद बनाने को तैयार नहीं थे. कभी अलग कास्ट होने की बात करते, कभी मेरी नौकरी न लगने की… उसके घर का माहौल बिगड़ता जा रहा था. अंकल की तबीयत भी ख़राब रहने लगी थी. हर बीतता दिन मुझे और निराश करता जा रहा था. इसी बीच वो सुबह भी आ गई, जो नहीं आनी चाहिए थी.
मेरे कमरे के दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक हुई, मैं चौंककर उठ बैठा. नींद में भी मैं पहचान सकता था कि अनन्या ही खटखटा रही थी.
“अभी तक सो रहे हो…” उसने कहते हुए मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में उसके चेहरे पर दर्द की एक रेखा खिंच गई.
“अनन्या…” मैंने आगे बढ़कर उसको गले लगा लिया, कितने दिनों बाद मैं उसको देख रहा था.
“अनन्या, तुम रो क्यों रही हो? देखना, सब ठीक हो जाएगा… अंकल कैसे हैं अब?” मैंने उसके चेहरे पर से बाल हटाते हुए पूछा. उसने सुबकते हुए बताया, “पापा ठीक नहीं हैं. कल रात से खाना-पीना छोड़ दिया है.”
“तुम घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा… लेकिन… तुमको यहां आने कैसे दिया आंटी ने?”
मैंने उसकी आंखें पोंछते हुए पूछा. गहरी लाल उदास आंखें लिए वो धीमे से बोली, “मैंने कहा आख़िरी बार मिल लेने दीजिए…”

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इतना कहते ही वो फूट-फूटकर रो पड़ी थी. मैं उसको बांहों में लिए जैसे मूर्ति बना खड़ा रह गया था. अनन्या अलविदा कहने आई थी! उसके बाद सब कुछ होता गया और जैसे मैं खुली आंखों से नींद में सब कुछ होते देखता रहा. अंकल-आंटी ने दूसरे शहर जाकर उसकी शादी कर दी. फिर वो वहीं शिफ्ट भी हो गए. अंकल के बारे में सोचता, तो मन कसैला हो जाता. अपनी बीमारी का बहाना बनाकर वो अपनी बात मनवा ले गए. अनन्या ने एक बेटी का फर्ज़ निभाया और उन्होंने? और इन सबमें जो मेरा नुक़सान हुआ, उसकी भरपाई तो कभी हो ही नहीं सकती… मुझे अक्सर लगता कि क़िस्मत मुझे देखकर हंसती है और कहती है, “हर प्रेम कहानी पूरी नहीं होती…”
ज़िंदगी एक बड़ा-सा सवाल लिए मेरे सामने घूमती रही, वो‌ सवाल जिसका जवाब मेरे पास था ही नहीं! आज इतने सालों बाद अनन्या की सहेली का लेटर आना और लेटर आते ही मेरा उससे मिलने जाना. पुराने दर्द फिर ताज़ा हो रहे थे…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

लकी राजीव

 

 

 

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Usha Gupta

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