कहानी- इक बूंद… 2 (Story Series- Ek Boond… 2)

“सर, मैं जब भी पढ़ने बैठती हूं, आपका चेहरा सामने आ जाता है. मैं क्या करूं सर? सही-ग़लत नहीं जानती. बस, इतना जानती हूं कि आप ही मेरा पहला प्यार हैं. आप नहीं मिलते, तो जान ही नहीं पाती कि पहले प्यार का नशा कैसा होता है. सर, आई लव यू सो मच…” उसने चेतनाशून्य होते हुए कहा. हकबकाए अवाक् से वो मेघा का मुंह देखते रहे, जिस पल से आशंकित थे, वो सामने था. भय की झुरझुरी-सी उभरी.

“मेघा, मैं घर पर स्टूडेंट्स का आना पसंद नहीं करता हूं. स्कूल खुल जाएंगे, तब मैं क्लास में इन प्रॉब्लम्स को क्लास प्रॉब्लम बनाकर सॉल्व कर दूंगा, ताकि किसी के मन में कोई डाउट ना रहे.” मैंने सख़्ती बरतते हुए कहा.

“पर सर, मेरी प्रॉब्लम सबकी प्रॉब्लम कैसे हो सकती है?” मेघा उनको ताकती हुई बोली.

“देखो मेघा, एक की समस्या को उठाने से बहुतों को लाभ मिले, यही पढ़ाने का तरीक़ा होता है. हो सकता है, जो तुम्हारे डाउट्स हैं, वो किसी और के भी हों. ऐसे में मेरा प्रयास व्यर्थ ना जाए, इसलिए कक्षा में एक साथ सबको पढ़ा दूंगा.”

“सर, मेरी प्रॉब्लम सबसे अलग है.” मेघा की बढ़ती धृष्टता बर्दाश्त से बाहर होने लगी थी.

“मेघा, अब तुम घर जाओ. मुझे और भी काम हैं.” कहकर समीर सर वहां से चले गए. उसके जाने के बाद सुकीर्ति ने दरवाज़ा बंद किया.

“बहुत सिंसियर लड़की है. अपनी पढ़ाई को लेकर बेहद सचेत है.” “हूं…” कहकर समीर सोच में डूब गए थे. स्कूल खुलनेवाले थे, उस दिन सुकीर्ति जूही को लेकर बाज़ार गई थी. अचानक मेघा फिर घर आ गई.

“मेघा, मैं इस वक़्त बाहर जा रहा हूं. तुम स्कूल में पूछना.”

“सर, मैं कुछ कहने आई हूं.” मेघा अपनी उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाती फिर निकालती. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने अंतर्द्वन्द्व से निकल आना चाहती हो, उसकी मनोदशा डराने लगी थी. रोज़ की अपेक्षा उस दिन ख़ुद पर उन्होंने कठोर आवरण चढ़ा लिया था. उनकी स्वाभाविक कोमलता छिप गई थी, लेकिन मेघा तो अंतर्मन में बसे प्रेम के वशीभूत सुध-बुध खोने को आतुर थी. अचानक उसने कहा, “सर, मैं जब भी पढ़ने बैठती हूं, आपका चेहरा सामने आ जाता है. मैं क्या करूं सर? सही-ग़लत नहीं जानती. बस, इतना जानती हूं कि आप ही मेरा पहला प्यार हैं. आप नहीं मिलते, तो जान ही नहीं पाती कि पहले प्यार का नशा कैसा होता है. सर, आई लव यू सो मच…” उसने चेतनाशून्य होते हुए कहा. हकबकाए अवाक् से वो मेघा का मुंह देखते रहे, जिस पल से आशंकित थे, वो सामने था. भय की झुरझुरी-सी उभरी.

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“सर, कुछ बोलिए… आपकी हां या ना पर मेरी ज़िंदगी टिकी है.” उनकी छात्रा उनसे वो जवाब मांग रही थी, जिसका उत्तर तलाशने में उनकी चेतना लुप्त हुई जाती थी.

अचानक अपने विवेक को जागृत कर वे ज़ोर से बोले, “प्यार समझने की उम्र है तुम्हारी? नहीं, तुम किसी के प्यार के योग्य नहीं हो.”

वो आसमान से गिरती, उससे पहले वो बोले “तुम स्वार्थी हो मेघा, मैं अपने प्यार को स्वार्थी लोगों पर ज़ाया नहीं करता हूं.” फिर तमतमाए हुए भीतर कमरे में अख़बारों की गड्डियों से कुछ ढूंढ़ने लगे, आवेश में कांपते वो एक अख़बार को ले आए, उसे दिखाते हुए बोले, “ये लड़की है प्यार के क़ाबिल… क्योंकि इसे अपने माता-पिता के प्यार का मोल चुकाना आता है.” ख़बर थी- ‘वेजीटेबल वेंडर की बेटी ने तमाम अभावों के बीच परचम लहराया. साइंस ओलम्पियाड में प्रथम स्थान प्राप्त किया. वह मेडिकल में जाकर अपने माता-पिता के सपने को साकार करना चाहती है.’

मेघा की आंखें अपमान से डबडबाई झुकी हुई थीं और वो ज़ोर-ज़ोर से उसकी मुख्य पंक्तियों को पढ़ रहे थे. प्यार को व्यक्त करने के बाद इस हश्र के लिए मेघा तैयार नहीं थी. समीर सर की ग़ुस्से से भरी आंखों की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं थी, सो अपने दोनों हाथों से चेहरे को ढांपकर रो पड़ी. ऊपर से ख़ुद को कठोर दिखाते वो तब घबरा उठे. सुकीर्ति घर पर नहीं थी, कहीं किसी ने देख लिया, तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा. कुछ समझ में नहीं आया, तो घर से बाहर निकल गए. कुछ देर खुली हवा में बैठे रहे. मेघा कब वहां से गई पता नहीं. आधे घंटे बाद आए, तो मेघा जा चुकी थी. सुकीर्ति इस तरह घर खुला देखती, तो बहुत नाराज़ होती, पर आज सर को भौतिक चीज़ों से अधिक अपने मान-सम्मान और आज तक कमाए नैतिक मूल्यों की फ़िक्र थी.

बार-बार मूल्यांकन करके इस एकतरफ़ा तथाकथित प्यार में ख़ुद की भूमिका ढूंढ़ते. इस घटना के बाद मेघा स्कूल नहीं आई. एक हफ़्ते बाद उसके परेशान माता-पिता आए और बताया कि वह मानसिक रूप से टूट गई है. काउंसलर से मिलने की बात हुई, पर मेघा काउंसलर से मिलने को तैयार नहीं हुई. समीर सर का मन उन्हें कचोटने लगा था. उनकी अमनोवैज्ञानिक तरी़के से डांट उनकी छात्रा की ज़िंदगी खराब करने जा रही थी. एक दिन हिम्मत जुटाकर मेघा के घर पहुंचे.

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उसके माता-पिता के व्यवहार से ज़ाहिर था कि मेघा ने कुछ भी नहीं बताया है. “इन बच्चों के मन की बात जानना भी तो मुश्किल है. आप अगर उससे बात करके समस्या का पता लगा पाएं, तो कुछ हो… डर है, कहीं प्यार-व्यार के चक्कर में ना पड़ गई हो. मेघा पहले जैसी हो जाए बस…” वो बहुत देर तक मेघा की मम्मी की उम्मीद भरी नज़रों का सामना नहीं कर पाए.

     मीनू त्रिपाठी

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