रिश्तों को संभालने की फुर्सत क्यों नहीं हमें (Relationship Problems and How to Solve Them)
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फास्ट युग में समय की तेज़ रफ़्तार के साथ चाहे-अनचाहे हम सभी को तालमेल बैठाना ही है. यह मजबूरी भी है और ज़रूरत भी, लेकिन क्या यह सच नहीं कि इस तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी के आदी हो चुके हम, इसे ही अपनी ढाल बनाकर रिश्तों को और यहां तक कि ख़ुद को भी समय न दे पाने के बहाने बनाते हैं?भागदौड़ में कहां खो गई है फुर्सत?
* यह सच है कि हम पहले से कहीं ज़्यादा व्यस्त हो गए हैं, लेकिन यह व्यस्तता हमारी ख़ुद की ही बढ़ाई हुई है.
* हमने सुविधाओं और ज़रूरतों के अंतर को ख़त्म कर दिया है.
* सारी सुविधाएं जुटाने के चक्कर में पैसा कमाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि इन सुविधाओं को भोगने तक का समय नहीं रहता.
* हमें ख़ुद ही नहीं पता कि हम कहां और क्यों भाग रहे हैं. बस, सब भाग रहे हैं, इसलिए हमें भी भागना है.
* कहीं किसी से पीछे न रह जाएं, इसलिए भागना है. कहीं कोई आगे न निकल जाए, इसलिए भी भागना है. बहुत कुछ भोगने के लालच में भागना है. हर ख़्वाहिश पूरी करनी है, तो भागना है.
* अपनी ख़्वाहिश पूरी नहीं हुई, तो बच्चों की ख़ातिर भागना है. फिर भले ही उन बच्चों से बात तक करने की फुर्सत भी न हो.
भागें नहीं, तो क्या करें?
* थोड़ा रुककर सोचें कि क्या ज़रूरी है और क्या ग़ैरज़रूरी. ख़ुद से प्यार करने की कला सीखें.
* यह ज़रूरी नहीं कि जब तबीयत साथ न दे, बैंक का काम हो या किसी रिश्तेदार की शादी हो, तभी ब्रेक लिया जाए. किसी दिन यूं ही काम से छुट्टी लें, घर पर व़क्त बिताएं. म्यूज़िक सुनें. शॉपिंग करें या मूवी देखें.
* अपनी प्राथमिकताएं तय कर लेंगे, तो काफ़ी बोझ हल्का हो जाएगा.
* ब्रेक लेना सीख लेंगे, तो सुकून के कुछ पल अपने लिए भी मिलेंगे.
* प्रतिस्पर्धा जहां ज़रूरी हो, वहीं करें. हर बात में दूसरों से मुक़ाबला करना ज़रूरी नहीं.
क्या सच में समय नहीं हैं?
* समय कम है, लेकिन समय है ही नहीं, यह सच नहीं है.
* हम इतने तनाव में रहते हैं कि काम की थकान मिटाने के लिए वीकेंड्स पर दोस्तों के साथ क्लब जाना ज़रूरी लगता है.
* वहीं अगर वीकेंड पर किसी रिश्तेदार से मिलना हो या अपने पैरेंट्स को डॉक्टर के पास ले जाना हो, तो हम थकान का बहाना बनाते हैं.
* भले ही हम दावा करते हैं कि हमें सांस तक लेने की फुर्सत नहीं, लेकिन ऐसा है नहीं, क्योंकि अगर यह सच होता, तो हम घंटों लैपटॉप पर चैटिंग न करते.
* हम अपने मोबाइल पर देर रात तक लगातार दोस्तों से यहां-वहां की बातें न करते रहते.
* वीकेंड पर दोस्तों के साथ पार्टीज़ न करते यानी फुर्सत तो है, लेकिन अपनों के लिए नहीं है.
* अपनी परेशानियां, अपने दुख सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अनजान लोगों से शेयर करते हैं, लेकिन अपने पैरेंट्स, अपने पार्टनर या अपने बच्चों के साथ बात भी करने की फुर्सत नहीं.
ये तो एक बहाना है...
* समय न होने का यह बहाना नहीं तो और क्या है कि हम फिटनेस के लिए जिम जाते हैं. हॉबी के लिए डान्स क्लास भी जाते हैं.
* रिलैक्स होने के लिए स्विमिंग पूल जाते हैं, लेकिन अपनों को समय देने की बात से ही हम अपना तनाव बढ़ाते हैं. हालांकि हॉबी या फिटनेस के लिए व़क्त निकालना ग़लत नहीं है. लेकिन इतनी ही शिद्दत से अपनों के लिए भी समय निकालने की कोशिश ज़रूर की जानी चाहिए.
कैसे निकालें समय?
* ऑफिस जाते समय ट्रेन या बस में ज़रूरी फोन निपटा लें.
* अपने रिश्तेदारों का हालचाल पूछ लें. किसी दिन हाफ डे लेकर घरवालों को कहीं बाहर ले जाएं.
* शुक्रवार की शाम दोस्तों के नाम होती है, तो शनिवार की शाम अपनों के नाम पर रिज़र्व रखें.
* सारे ज़रूरी काम शनिवार को दिन में कर लें. संडे को घर पर रहकर सबके साथ समय बिताएं.
* फोन और लैपटॉप को भी छुट्टी के दिन छुट्टी मनाने दें. उन्हें स्विच ऑफ कर दें.
* जिस दिन हम इस बात से संतोष कर लेंगे कि सभी को सब कुछ नहीं मिलता, उस दिन हमें फुर्सत भी मिलेगी और सुकून भी. यह सकारात्मक सोच ख़ुशियों की चाबी ही नहीं, बल्कि मास्टर की है, जिससे तमाम ताले खुल सकते हैं. तो देर किस बात की, अपने दिल से बात करें, दिमाग़ को थोड़ा-सा रेस्ट दें और अपनी ख़ुशियों की चाबी ढूंढ़ लें... जहां फुर्सत के चंद नहीं, ढेर सारे पल छिपे आपका इंतज़ार कर रहे हैं.