कहानी- एक फांस 2 (Story Series- Ek Phans 2)

प्रीति की छठी इंद्रिय जगने लगी थी, पर उसे उन्नत में आया बदलाव इतना अच्छा लग रहा था कि वो उन्हें टोकना नहीं चाहती थी. जहां तक वो उन्नत से शिखा के बारे में जान पाई थी, वो बिल्कुल उसी की तरह लगती है- चंचल, शोख, बिंदास, बहिर्मुखी, उन्नत के बिल्कुल विपरीत. इतने विपरीत स्वभाव के व्यक्ति से चंद घंटों में दोस्ती कैसे हो गई उनकी?

उसके बाद सामान समेटना, बाय बोलना, मोबाइल नंबर लेना, फ्लाइट में बैठना, सब कुछ ऐसे महसूस हुआ, जैसे वो ख़ुद न करके किसी चलचित्र पर देख रहा हो. शायद एक फांस निकल जाने का सुकून उसके मन को प्रफुल्लित कर रहा था.

घर पहुंचने पर पत्नी प्रीति ने हमेशा की तरह गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. “तुम्हारी बहुत याद आई.” कहकर वो उन्नत से लिपट गई. घर प्रीति और बच्चों की सम्मिलित आवाज़ से चहकने लगा. “पापा, आप अपना गिटार ताखे पर से उतार दो, मैं बजाऊंगी. मैंने सीख लिया है.” बेटी नीना बोली, तो प्रीति ने उसे ये कहकर टोका कि पापा

थके-मांदे आए हैं, पर उन्नत ने ख़ुशी से तुरंत स्टूल लेकर गिटार उतार दिया. यही नहीं, कुछ ही देर में उन्नत के हाथ पूरे घर में गिटार का मधुर स्वर गुंजायमान कर रहे थे. प्रीति तो ख़ुशी से विभोर हो गई.

जल्द ही प्रीति ने महसूस किया कि संजीदा और अंतर्मुखी उन्नत एकदम से बिंदास और चंचल हो गए हैं. उसे ये परिवर्तन बहुत अच्छा लगा. मगर वो सोचती रह गई कि चार दिन के ऑफिशियल टूर में ऐसा क्या हो गया कि ……? वो उन्नत को अक्सर किसी से फोन पर बहुत देर तक बातें करते सुनती. एक दिन उन्हें फोन पर बहुत ही धीमे स्वर में बातें करते देखकर पूछा, तो उन्नत ने जवाब दिया कि एयरपोर्ट पर एक नई दोस्त बनी है.  पर उन्नत का तो पुरुष और महिला दोस्तों से बात करने का लहज़ा एकदम समान है. फिर बिना मतलब तो वे किसी से एक शब्द भी नहीं बोलते. फिर इससे बात करते समय ही स्वर इतना धीमा और लहज़ा इतना गोपनीय क्यों हो जाता है?

उन्नत उसे और बच्चों को लेकर पार्क जाने लगे थे, सारी शाम गिटार बजाने लगे थे और सोशल नेटवर्किंग साइट खोलते समय या मोबाइल पर बातें करते समय अलग कमरे में जाने लगे थे. उनके फोन पर हर थोड़ी देर में चुटकुले व मैसेज आने लगे थे. उन्नत चुटकुले प्रीति को सुनाते और मैसेज का उत्तर देते समय उनके चेहरे पर चहक और शरारत होती.

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प्रीति की छठी इंद्रिय जगने लगी थी, पर उसे उन्नत में आया बदलाव इतना अच्छा लग रहा था कि वो उन्हें टोकना नहीं चाहती थी. जहां तक वो उन्नत से शिखा के बारे में जान पाई थी, वो बिल्कुल उसी की तरह लगती है- चंचल, शोख, बिंदास, बहिर्मुखी, उन्नत के बिल्कुल विपरीत. इतने विपरीत स्वभाव के व्यक्ति से चंद घंटों में दोस्ती कैसे हो गई उनकी?

इसी ऊहापोह में डेढ़-दो महीने निकल गए. प्रीति की डायरी लिखने की आदत थी.  वह मन के सभी भाव डायरी में लिखती थी. उन्नत एक समझदार, संवेदनशील और ज़िम्मेदार पति रहे हैं. दस वर्ष के वैवाहिक जीवन में उसे पति से कोई शिकायत नहीं रही, पर एक खालीपन हमेशा से सालता रहा. उसे लगता कि जैसे उसके पति ने ख़ुद को एक कवच में बंद कर रखा है. जैसे वो एक अच्छे बेटे, पिता, सरकारी अधिकारी होने का दायित्व निभाते हैं, वैसे ही एक अच्छा पति होने का भी दायित्व ही निभा रहे हैं.

पहले वो इस ख़्याल को झटक देती थी कि इंसान का स्वभाव अभाव ढूंढ़ने का होता है. जीवन में कोई अभाव नहीं, तो मन ने ये सोच लिया, पर अब उसका यह विश्‍वास दृढ़ हो गया कि उन्नत स्वभाव से अंतर्मुखी नहीं थे. कुछ हुआ था उनके जीवन में, मगर क्या? उसे इस बात की चुभन भी थी कि उन्नत को उनके कवच से निकालने का जो काम वो बरसों शिद्दत से कोशिश करने के बाद भी नहीं कर पाई, उस महिला ने चंद घंटों में कैसे कर दिया?

वो इन भावों को ज्यों का त्यों डायरी में उतार ही रही थी कि उसकी प्रिय सखी साधना का फोन आ गया. “फटाफट सोसायटी के गेट पर मिल.” उसने पूछा, “किसलिए?”

“हद हो गई. शॉपिंग मॉल नहीं चलना क्या? अरे! आज तेरह फरवरी है.”

“ओह नो, मैं तो भूल ही गई थी. तू बस पंद्रह मिनट का टाइम दे.” कहकर प्रीति फुर्ती से उठी, तैयार हुई, बच्चों को तैयार किया, मगर जल्दी में मोबाइल भूल गई और डायरी भी खुली छोड़कर चली गई.

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एक चाभी उन्नत के पास रहती ही थी.  बच्चों को पास ही में मायके में छोड़ा, भैया से कहा कि छह बजे के बाद उन्हें घर छोड़ दें और साधना के साथ मेट्रो में बैठ गई. दोनों को एक साथ याद आया कि वो मोबाइल भूल आई हैं.

उन्नत इस मामले में बहुत कंजूस थे. इसलिए प्रीति हर साल वैलेंटाइन डे के एक दिन पहले उन्नत को बिना बताए, उनके लिए शॉपिंग कर लाती थी. वैसे प्यार जताने का कोई मौक़ा वो छोड़ती नहीं थी, पर ये दिन उसे बहुत पसंद था. वो इस दिन उन्नत की मनपसंद डिशेज़ बनाकर कैंडल लाइट डिनर सजाती और एक-एक कर गिफ्ट्स खोलकर दिखाती. फिर उलाहना देती कि कभी मेरे लिए भी कोई गिफ्ट लाया करो.

“हां, हां, बिल्कुल! जब चाहो, जो चाहो ख़रीद लो. सारा वेतन तो तुम्हें दे देता हूं,  फिर गिफ्ट कहां से लाऊं?” उन्नत मासूमियत से कहते.

   भावना प्रकाश

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Usha Gupta

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