आपको लग रहा होगा कि मैं कोई परिस्थिति की मारी और बहुत दुखियारी स्त्री हूं, पर ऐसा कुछ नहीं है. मैं बहुत ख़ुश हूं. अच्छा पति, प्यारी-सी बच्ची और एक शानदार हाई सोसायटी. सब कुछ है मेरे पास. मेरा नाम है तृष्णा मतलब प्यास… अपने जीवन से दुखी तो नहीं हूं, पर हां, थोड़ी-सी खिन्न ज़रूर हूं, कुछ ढूंढ़ना चाहती हूं, पर ढूंढ़ नहीं पा रही हूं.
रेडी, स्टडी, गो… और बस शुरू हो गई जीवन की अंतहीन रेस. एक ऐसी रेस, जो न चाहते हुए आपको अपना हिस्सा बना लेगी. हर कोई दौड़ रहा है, क्योंकि समाज दौड़ रहा है, इसलिए आपको भी दौड़ लगानी ही होगी. नहीं तो आप पीछे रह जाएंगे. और फिर इस रेस में निरंतर गोलाकार में दौड़ना आपकी नियति बन जाएगी. भौतिक और आत्मिक सुख कभी एक साथ नहीं चल सकते, इस रेस की यही ख़ासियत है. इस रेस में ये दोनों ही सुख एक-दूसरे की क़ीमत हैं.”
रात के लगभग 8 बजे हैं. चांद शायद मेरी बालकनी से झांकने की कोशिश कर रहा है. पर इस फुली एयर कंडीशंड घर में तो हवा भी जैसे कैद है तो फिर चांद की रोशनी अंदर कैसे आएगी? मेरी बेटी के कमरे से कुछ लाउड म्यूज़िक सुनाई दे रहा है, कोई गाना चल रहा है, “किश्तों में क्या जीना लंबी सांस लो ज़रा…” लंबी सांस लिए हुए शायद ज़माना गुज़र गया और किश्त… जीना तो आजकल किश्तों में ही पड़ता है, यू नो ‘इज़ी इंस्टॉलमेंट्स.’
“ममा, एम गोइंग… आने में शायद देर हो जाएगी, आप प्लीज़ सो जाइएगा.” आलिया के इन शब्दों से मेरे विचारों की रेल रुक पड़ी. मैंने कहा, “ओके बेटा.”
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आपको लग रहा होगा कि मैं कोई परिस्थिति की मारी और बहुत दुखियारी स्त्री हूं, पर ऐसा कुछ नहीं है. मैं बहुत ख़ुश हूं. अच्छा पति, प्यारी-सी बच्ची और एक शानदार हाई सोसायटी. सब कुछ है मेरे पास. मेरा नाम है तृष्णा मतलब प्यास… अपने जीवन से दुखी तो नहीं हूं, पर हां, थोड़ी-सी खिन्न ज़रूर हूं, कुछ ढूंढ़ना चाहती हूं, पर ढूंढ़ नहीं पा रही हूं.
तिलक से शादी के कुछ साल बाद से मुझे डायरी लिखने की आदत पड़ गई और यही मेरा सबसे बड़ा सहारा भी है. हर सुख-दुख के बारे में अपनी डायरी से जीभर के बातें करती हूं. मेरी कहानी या मेरा जीवन… कुछ अलग नहीं है, पर आजकल यूं ही बार-बार अपने जीवन की कहानी को दोहराती हूं, समीक्षा करती हूं कि कहां, क्या कमी रह गई पता लगा पाऊं.
विजया कठाले निबंधे
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