कहानी- ईएमआई 2 (Story Series- EMI 2)

मुझे आज भी याद है. आलिया स़िर्फ 3 साल की थी. जब मैं ऑफ़िस के लिए तैयार होती तो वो रोने लगती और मैं उसे वैसा ही रोता छोड़ चली जाती. आज मेरी आलिया को मेरी ज़रूरत नहीं है और क्यों हो? जब उसे मेरी ज़रूरत थी तो मैं नहीं थी.
बाद में जब मुझे होश आया तो मैंने देखा कि मेरे पास बंगला है, महंगे कपड़े, ज्वेलरी सब कुछ है, पर एहसास हुआ कि मेरा बंगला, बंगला है, घर नहीं… मैं, तिलक और आलिया तीनों मशीन बन चुके हैं, भावनाओं की आर्द्रता अब हममें नहीं बची.

रोज़ बेटी आलिया घर से निकलते समय स़िर्फ इतना बताती है कि वह जा रही है, पर कहां जा रही है, किसके साथ जा रही है, ये न तो वह मुझे बताती है और न ही मैं उससे पूछ पाती हूं. कैसे पूछूं? आख़िर यह लाइफ़स्टाइल मैंने ही तो उसे दिया है. अब अचानक उसमें किसी बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा करना शायद ग़लत होगा. बच्चों को अच्छी मानसिकता, अच्छे संस्कार और अच्छी आदतों के साथ बड़ा करना एक निरंतर चलने वाली क्रिया है. बच्चे कोई कम्प्यूटर नहीं और न ही अच्छी आदतें कोई प्रोग्राम, जो एक दिन में उनमें फीड कर दिया.
मैं और तिलक दोनों ही एंबीशस नहीं थे. अपने रिश्तों को, ख़ुशियों को हमने अपनी हथेलियों में बहुत सहेजकर रखा था, पर ये सब कब रेत की तरह हाथों से फिसल गया, पता ही नहीं चला. धीरे-धीरे हम भी हर लाइफ़स्टाइल पाने की भेड़चाल में शामिल हो गए.
सोसायटी की सोकॉल्ड कॉम्पटीशन में जीतने के लिए हम दिन-रात दौड़ने लगे. धीरे-धीरे ईएमआई (इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट) पर हमने टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, कार, घर सब कुछ ले लिया और फिर इस ईएमआई को चुकाने के लिए अपने जीवन को किश्तों में बांट दिया. उस समय ये सारी चीज़ें बहुत ज़रूरी लगीं. ऐसा लगा एक-दूसरे का साथ एंज्वॉय करने के लिए तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है, पर अगर अभी हमने पैसा नहीं कमाया, तो सोसायटी हमें जीने नहीं देगी.

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मुझे आज भी याद है. आलिया स़िर्फ 3 साल की थी. जब मैं ऑफ़िस के लिए तैयार होती तो वो रोने लगती और मैं उसे वैसा ही रोता छोड़ चली जाती. आज मेरी आलिया को मेरी ज़रूरत नहीं है और क्यों हो? जब उसे मेरी ज़रूरत थी तो मैं नहीं थी.
बाद में जब मुझे होश आया तो मैंने देखा कि मेरे पास बंगला है, महंगे कपड़े, ज्वेलरी सब कुछ है, पर एहसास हुआ कि मेरा बंगला, बंगला है, घर नहीं… मैं, तिलक और आलिया तीनों मशीन बन चुके हैं, भावनाओं की आर्द्रता अब हममें नहीं बची.
तिलक ने कुछ साल पहले ख़ुद का बिज़नेस शुरू किया था. मेरा और तिलक का साथ लगभग तभी छूट गया. अब उसका बिज़नेस देशभर में है, जहां वह ह़फ़्ते भर घूमता रहता है. टीवी पर दिखाए जानेवाले किसी वीकली सोप की तरह हम ह़फ़्ते में स़िर्फ एक बार संडे को मिलते हैं. उसमें भी आलिया अक्सर नदारद रहती है.

 

  विजया कठाले निबंधे

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Usha Gupta

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