सहसा शुभ्राजी ने अपूर्वा के दोनों हाथों को थामते हुए कहा, “अपनी समझदारी को छोटे-छोटे मसलों पर यूं कुर्बान करना बेव़कूफ़ी है अपूर्वा… कल हम तुम्हारे साथ रहेंगे, रहेंगे कि नहीं रहेंगे, कब रहेंगे… कब तक रहेंगे, कल होनेवाले इन मसलों पर आज जिरह करके रिश्तों पर यूं धूल डालना कहां की समझदारी है. अभी कितना तुमने हमें या हमने तुम्हें जाना है. शुरुआत ही पूर्वाग्रह और संशय से भरी होगी, तो जीवन कैसे बीतेगा…” शुभ्रा की बात सुनकर अपूर्वा बोली, “आंटी, मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है. मुझे ग़लत मत समझिए… आप लोग हमारी ज़िम्मेदारी हैं. मैं समझती हूं, पर अभिमन्यु नहीं समझता है कि मेरे पैरेंट्स भी मेरी ज़िम्मेदारी हैं.’’
“ये रिश्ता तुम दोनों की रज़ामंदी से जुड़ा था… तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो, ये वजह हमारे लिए बहुत थी. हमने तुरंत हां की… शादी की तैयारी में जुट गए, तो अचानक पता चलता है कि तुम दोनों शादी नहीं करना चाहते हो. अब इतना जानने का हक़ है हमें कि आख़िर हुआ क्या..?” इस प्रश्न पर दोनों असहज से बैठे रहे.
सबकी नज़रें ख़ुद पर टिकी देख अपूर्वा ने बोलना शुरू किया, “अंकल, मैं अपने पैरेंट्स की इकलौती संतान हूं. मेरे पैरेंट्स ने मुझसे काफ़ी उम्मीदें जोड़ी हैं. मेरी पढ़ाई-लिखाई, मेरा करियर सब उनकी देन है. आज मैं जिस मुक़ाम पर हूं, उन्हीं की बदौलत हूं. ऐसे में मेरी उनके प्रति कुछ ज़िम्मेदारियां बनती हैं.” कहकर वह कुछ चुप हुई, तो अभिमन्यु का चेहरा थोड़ा स्याह हुआ…
“हां तो फिर…” बात के सिरे को खोजती अपूर्वा को शुभ्राजी ने आगे बोलने के लिए उकसाया… तो वह अटपटाकर फिर बोली, “शादी के बाद मैं अपने पैरेंट्स को पूरा सपोर्ट देना चाहती हूं, अपने साथ रखना चाहती हूं. इसका मतलब ये भी नहीं कि मैं आप लोगों के प्रति अपने दायित्व को नहीं समझती हूं. आप लोग भी मेरे लिए उतने ही महत्वपूर्ण हो जिस तरह से मम्मी-पापा हैं.” उसकी उलझी हुई बात पर सब के चेहरों पर उलझन दिखाई दी, तो अभिमन्यु ने बात का सिरा पकड़ा. “दरअसल, उस दिन डेट पर हम दोनों अपने फ्यूचर के बारे में डिसकस करने लगे. मैंने बताया कि मैं अपनी सेविंग से थ्री बेडरूम फ्लैट लेना चाहता हूं, इस पर अपूर्वा को ऐतराज़ था. ये फोर बेडरूम फ्लैट चाहती है, ताकि उसमें मम्मी-पापा के साथ आप लोग भी रहें… पर फोर बेडरूम मेरे बजट में नहीं है. मैंने उस पर आपत्ति दर्ज की तो…” अभिमन्यु की बात पूरी होती, उससे पहले ही अपूर्वा आवेश में बोली, “हां तो, उसके लिए मैं तुम्हारी फाइनेंशियल मदद करती, पर बात स़िर्फ इतनी कहां थी? तुमने उस दिन ये क्यों बोला कि मेरे पैरेंट्स हमेशा हमारे साथ थोड़ी रहेंगे, कुछ दिन आकर चले जाएंगे. सोचो, मुझे कितना बुरा लगा होगा ये सोचकर कि मैं लड़की हूं स़िर्फ इसलिए मेरे पैरेंट्स मेहमान की तरह आएंगे-जाएंगे… क्यों? वो हमेशा हमारे साथ क्यों नहीं रह सकते हैं.”
“ऐसा नहीं है अपूर्वा, हर बात को जेंडर के साथ जोड़ना ब्लैकमेलिंग है… अंकल-आंटी के पास अपना घर है, पर मेरे पैरेंट्स अभी भी किराए के घर में हैं, एक घर तो चाहिए फ्यूचर में… कल जब हम़ारा घर होगा, तब अंकल-आंटी जब चाहे आएं-जाएं, कोई रोक-टोक थोड़ी थी.”
“रोक हो भी नहीं सकती मिस्टर अभिमन्यु, मेरे और तुम्हारे लिए नियम-कायदे जेंडर के हिसाब से नहीं बदलेंगे…” अपूर्वा कुछ अटकी फिर बोली, “शुभ्रा आंटी, आप लोग प्लीज़ मुझे ग़लत मत समझिए, मेरी आपत्ति किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध नहीं, बल्कि विचारधारा के विरुद्ध है.” अपूर्वा के कहने पर अभिमन्यु बोला, “तुमने मेरी बात का क्या अंदाज़ा लगाया, ये तुम्हारी प्रॉब्लम है, पर सच तो ये है कि मेरे लिए मेरे-तुम्हारे पैरेंट्स एक बराबर हैं. मन में एक-सी इज़्ज़त है. तुमने मेरी भावनाओं का ग़लत आकलन किया और बेवजह मुझ पर भड़क गई.”
एक-दूसरे पर आक्षेप लगाकर उन्हें यूं उलझते देखकर दोनों पक्ष के पैरेंट्स बुत से बने बैठे रह गए, पर माजरा समझते ही दोनों पक्षों ने सिर पकड़ लिए. अपूर्वा अभी भी बोल रही थी, “कोई जेंडर के आधार पर मुझे कमतर आंके मुझे बर्दाश्त नहीं होता.”
सहसा शुभ्राजी ने अपूर्वा के दोनों हाथों को थामते हुए कहा, “अपनी समझदारी को छोटे-छोटे मसलों पर यूं कुर्बान करना बेव़कूफ़ी है अपूर्वा… कल हम तुम्हारे साथ रहेंगे, रहेंगे कि नहीं रहेंगे, कब रहेंगे… कब तक रहेंगे, कल होनेवाले इन मसलों पर आज जिरह करके रिश्तों पर यूं धूल डालना कहां की समझदारी है. अभी कितना तुमने हमें या हमने तुम्हें जाना है. शुरुआत ही पूर्वाग्रह और संशय से भरी होगी, तो जीवन कैसे बीतेगा…” शुभ्रा की बात सुनकर अपूर्वा बोली, “आंटी, मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है. मुझे ग़लत मत समझिए… आप लोग हमारी ज़िम्मेदारी हैं. मैं समझती हूं, पर अभिमन्यु नहीं समझता है कि मेरे पैरेंट्स भी मेरी ज़िम्मेदारी हैं. छोटी-छोटी बातें कल झगड़े का कारण ना बनें, इस वजह से आज इन पर बात करना ज़रूरी था और देखिए हमारे बीच विवाद सामने आ ही गया. अच्छा हुआ, जो फ्यूचर डिसकस करते हुए कल होनेवाले झगड़े आज ही सामने आ गए.”
अपूर्वा चुप हुई, तो प्रशांत रोष के साथ बोले, “दरअसल, आजकल की ज़रूरत से ज़्यादा मेच्योर और प्रैक्टिकल जनरेशन की यही प्रॉब्लम है. ऐडजेस्टमेंट को अहं के चलते दरकिनार कर देती है. जब तक हम लोग शारीरिक रूप से सक्षम हैं, कम से कम तब तक तो हमें अपने तरी़के से स्वच्छंद जीने दो. हमारी अपनी क्या प्राथमिकता है, क्या ये जानना तुम लोगों ने सही नहीं समझा…”
मीनू त्रिपाठी
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