“हमें क्यों शर्मिंदा करेगी अपने साथ…?” नलिनी के बोलते ही वह उखड़ गई.
“इसमें शर्मिंदा होने जैसा क्या है मम्मी. शादी का सक्सेस रेट तभी हाई होता है, जब दोनों पार्टनर्स में अंडरस्टैंडिंग हो… शादी करनी ही है, इसके लिए मैं समझौतावादी रवैया नहीं अपना सकती.”
“तुम लोगों की यही प्रॉब्लम है, समझौते को अपने अहं से जोड़ लेते हो…” नलिनी ने अपूर्वा से कहा, तो वह चिढ़कर बोली, “यहां अहं नहीं, मॉरल की बात है… वो लड़का है, तो कुछ भी कर सकता है और मैं लड़की होने के नाते समझौते की राह पर चलूं. स़िर्फ एक शादी के लिए…’’
“अपूर्वा, हम जानना चाहते हैं कि छह महीने पुराने तुम्हारे प्यार के पौधे को अचानक ऐसी कौन-सी हवा लगी, जो वो मुरझा गया है.”
“मम्मी, फ्यूचर में हम लोगों को एक-दूसरे के फैसलों से प्रॉब्लम होगी. आगे आनेवाले झमेलों से बचने के लिए यहीं क़दम रोक लें, तो अच्छा
होगा. बस, अब इसके आगे कुछ मत पूछना…” चिढ़ी हुई-सी अपूर्वा नलिनी और प्रशांत को स्तब्ध छोड़कर अपने कमरे में चली गई. इस रूखे-अटपटे से जवाब को सुनकर विचलित-सी नलिनी को प्रशांत ने इशारे से प्रतिक्रिया देने से रोक दिया. स्थिति विषम थी. कल तक वो अपने रिश्तेदारों के, ‘चलिए देर आए दुरुस्त आए,’ ‘बधाई हो अपूर्वा शादी के लिए मानी तो सही,’ ‘अच्छा हुआ अपूर्वा ने लड़का पसंद किया है, तुझे कोई टेंशन नहीं रहेगा…’ कुछ ऐसे ही जुमलों से दो-चार होते हुए राहत की सांस ले रहे थे और कहां, अब ‘हम शादी नहीं करना चाहते…’ कहकर बेटी ने उन्हें सकते में डाल दिया. ना-ना करते हुए बत्तीस पार करने को आ गई अपूर्वा को देख लगता था कि इस जनम में वह शादी करेगी भी या नहीं… पर इधर कुछ महीनों से उसकी और अभिमन्यु की सोशल साइट में डली कुछ तस्वीरों को देख मौसम बदलने का अंदाज़ा लग गया था. बड़ी जल्दी ही सिंगल से… स्टेटस इन ए रिलेशनशिप अपडेट हुआ और साथ ही ’हम शादी करना चाहते हैं’ के इस बहुप्रतीक्षित वाक्य से दोनों पक्षों में जुड़े नव रिश्तों के तार झंकृत हो उठे.
अपूर्वा और अभिमन्यु के माता-पिता यूं घुले-मिले जैसे बरसों से दोस्ताना हो. घंटों साथ बैठे योजनाओं पर चर्चा, साथ-साथ ख़रीदारी, आपसी समझ और बातचीत से औपचारिकताओं को दरकिनार करते हुए आपसी रिश्ते को सुवासित और मज़बूत किया. एक महीना शादी को रह गया, तो अपूर्वा ने ऐलान कर दिया कि वो शादी नहीं करना चाहती है. इस बाबत अभिमन्यु से बात की गई, तो उसने ‘अपूर्वा ऐसा चाहती है, तो मैं क्या बोलूं आंटीजी… ’ कहकर मसले को और उलझा दिया.
“नलिनी, शुभ्राजी का फोन है.” प्रशांत के कहने पर नलिनी सोच-विचार के घेरे से बाहर आई… होनेवाली समधिन की आवाज़ सुनते ही शुभ्राजी की रुआंसी-सी आवाज़ आई, “कुछ पता चला, दोनों के बीच कोई लड़ाई हुई है क्या?”
“मैं क्या कहूं शुभ्राजी, हमारा-आपका ज़माना नहीं, जो माता-पिता समझाएं और ये समझ जाएं… परसों तो बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी अभिमन्यु से मिलने गई थी, वहां क्या हुआ पता नहीं. अपूर्वा का स्वभाव जानती हूं मैं… अचानक आवेश में आ जाती है.” नलिनी ने ना चाहते हुए भी बेटी के प्रति रोष व्यक्त किया तो “नहीं-नहीं, जहां तक मैंने उसे जाना है वह सुलझी हुई, मन की साफ़ है. ज़रूर अभिमन्यु ने कोई ऐसी बात की होगी, जो उसे चुभ गई, पर ऐसा क्या हुआ होगा पता करिए. अगर कुछ इश्यू है, तो हम सुलझाएंगे….” कहकर शुभ्रा ने हमेशा की तरह अपूर्वा की तरफ़दारी की तो “मैं आपको कुछ देर में फोन करती हूं…” कहते हुए नलिनी ने चैन की सांस लेते हुए फोन रख दिया.
अपनी तरह अभिमन्यु के पैरेंट्स को चिंतित देखकर उसने राहत की सांस ली.
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उम्मीद की किरण अभी भी बाकी थी. वो दिन इसी सोच-विचार में निकल गया कि क्या हुआ होगा दोनों के बीच… दूसरे दिन ऑफिस से आने के बाद अपूर्वा बोली, “मम्मी, शुभ्रा आंटी का फोन आया था, मुझसे मिलना चाहती हैं, पर मेरा मन नहीं है. क्या करूं? साफ़ मना भी नहीं कर सकती हूं.” उसकी दुविधा पर प्रशांत और नलिनी ख़ामोश रही, तो वह बोली, “आप लोग चलेंगे मेरे साथ…”
“हमें क्यों शर्मिंदा करेगी अपने साथ…?” नलिनी के बोलते ही वह उखड़ गई.
“इसमें शर्मिंदा होने जैसा क्या है मम्मी. शादी का सक्सेस रेट तभी हाई होता है, जब दोनों पार्टनर्स में अंडरस्टैंडिंग हो… शादी करनी ही है, इसके लिए मैं समझौतावादी रवैया नहीं अपना सकती.”
“तुम लोगों की यही प्रॉब्लम है, समझौते को अपने अहं से जोड़ लेते हो…” नलिनी ने अपूर्वा से कहा, तो वह चिढ़कर बोली, “यहां अहं नहीं, मॉरल की बात है… वो लड़का है, तो कुछ भी कर सकता है और मैं लड़की होने के नाते समझौते की राह पर चलूं. स़िर्फ एक शादी के लिए… आपको क्या पता उसकी सोच कैसी है.” कहते हुए अपूर्वा आवेश में यूं उठकर गई मानो उसका कोई ज़ख़्म खुरच गया हो. ‘आख़िर ऐसे कौन-से समझौते से उसे रू-ब-रू होना पड़ा और अभिमन्यु की सोच में कौन-सा खोट देख लिया अपूर्वा ने. चार दिन पहले दोनों डेट पर गए थे, कहीं वहां अभिमन्यु ने कोई अमर्यादित व्यवहार तो नहीं किया.’ सोच के घोड़े दौड़ाते दिन निकल गया.
दूसरे दिन रविवार था, तय हुआ कि एक मीटिंग होनी ज़रूरी है. हो सकता है बिगड़ी बात बन जाए… प्रशांत और नलिनी अपूर्वा को लेकर अभिमन्यु के घर गए. एक-दूसरे के संकोच में कुछ देर सब चुप रहे, फिर चुप्पी को अभिमन्यु के पिता विमलजी ने ही तोड़ा.
मीनू त्रिपाठी
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