कहानी- इंजूरियस टु हेल्थ 1 (Story Series- Injurious To Health 1)

कॉलेज की लाइफ स़िर्फ और स़िर्फ क्लास, स्पोर्ट्स ग्राउंड, कल्चरल मीट और किसी मोड़ पर चाय पी लेने भर से पूरी नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें लाइफ का वह एंगल न जुड़े, जिसे प्यार कहते हैं. उस प्यार की सीमा हर किसी के लिए अलग होती है, किसी के भीतर वह एक सुखद एहसास, एक अनछुआ-सा पहलू बनकर रह जाता है, कोई इस सागर के किनारे बैठकर मोतियों का इंतज़ार करता है और कोई अंगूर खट्टे हैं, के मुहावरे को चरितार्थ कर कैंपस से बाहर निकल जाता है.

ज़िंदगी स़िर्फ यादों का खेल है क्या?

एक उम्र के बाद जीने के लिए स़िर्फ अतीत ही क्यों बचता है… वह जिस तेज़ी से अपनी कार से सड़क पर गुज़र रहा था, उससे भी तेज़ मन में विचार व भावनाएं दौड़ रही थीं.

अभी-अभी बाईं तरफ़ जो पार्क गुज़रा है, इसमें कहीं एक बड़ा-सा पेड़ था, बहुत घना, इतना कि बस उसके नीचे कहीं छुप जाएं, तो कोई ढूंढ़ ही न सके. और यह रोड, इस रोड पर साइकिल से वह कितना दौड़ा है. इसी रोड पर तो आगे जाकर दाहिनी तरफ़ उसका कॉलेज था. आह! कॉलेज, कौन-सा कॉलेज, वही जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी या वह कॉलेज, जिसने उसे ज़िंदगी दी. कॉलेज तो सभी ज़िंदगी बदलने के लिए बने होते हैं. बात कॉलेज की कम, उस उम्र की ज़्यादा होती है, जो किसी को बना और बिगाड़ देती है.

इसी मोड़ पर चार की दुकान से चार पीते, बिस्किट और समोसे खाते न जाने कितने स्टूडेंट्स इंटरनेशनल फ्लाइट पकड़ देश छोड़ गए, कितने ही शहर छोड़ गए. हां कुछ ऐसे भी हैं, जो आज भी यहीं बने हुए हैं, जस के तस.

वह… वह… उसे हंसी आई. वह कॉलेज छोड़कर दुनि या घूम आया है और एक बार फिर अपने शहर लौटा है, अपनी पोस्टिंग की वजह से.

उसे लगा उसके भूतकाल के चिंतन में और कॉलेज की थ्योरी में कुछ अधूरापन है, जैस कि मैथ्स का कोई सवाल हल तो हो जाए, लेकिन उसका उत्तर किस-किस स्टेप से गुज़रकर आया यह न पता हो, तो वह उत्तर अधूरा-सा लगता है, जैसे कि पाइथागोरस की थ्योरम में जब तक यह न बताया जाए कि एक लाइन पर, जब दूसरी परपेंडिकुलर लाइन पड़ती है ट्राएंगल के लिए, तभी हाईपोटिनस स्न्वैर लेंथ और बिड्स के स्न्वैर जोड़ के बराबर होता है. यह थ्योरम अगर ट्राएंगल में एक एंगल 90 डिग्री नहीं है, तो सही नहीं हो सकती. उसी तरह कॉलेज की लाइफ स़िर्फ और स़िर्फ क्लास, स्पोर्ट्स ग्राउंड, कल्चरल मीट और किसी मोड़ पर चाय पी लेने भर से पूरी नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें लाइफ का वह एंगल न जुड़े, जिसे प्यार कहते हैं.

उस प्यार की सीमा हर किसी के लिए अलग होती है, किसी के भीतर वह एक सुखद एहसास, एक अनछुआ-सा पहलू बनकर रह जाता है, कोई इस सागर के किनारे बैठकर मोतियों का इंतज़ार करता है और कोई अंगूर खट्टे हैं, के मुहावरे को चरितार्थ कर कैंपस से बाहर निकल जाता है. हां कुछ होते हैं, जो उम्र के इस पड़ाव पर नदी के बहाव में डरे बिना गोता लगा प्रेम के मोती समेट लाते हैं. उनकी लाइफ कॉलेज में कई तरह से बदलती है. एक तरफ़ जहां सचमुच करियर के लिए लाइफ बदलती है, तो वहीं न जाने कितने दर्द और मिठास के अनुभव उसे पूरी ज़िंदगी जीने की ताक़त दे देते हैं.

हां, व़क्त बीतने के साथ न साथियों के नाम याद रहते हैं, न चेहरा, पर ऐसा भी नहीं होता कि उम्र हर चेहरे और हर नाम पर मिट्टी डाल दे. कुछ नाम, कुछ चेहरे, कभी भूले भी तो नहीं जाते. हां, फिर वही चेहरे इतने बदल जाते हैं कि पहचाने नहीं जाते. ‘आईना वही रहता है, चेहरे बदल जाते हैं’ यह सच बात है. हां, दिल का आईना कभी नहीं बदलता और उस आईने में जब इंसान अपने कॉलेज की लाइफ देखता है, तो सचमुच उसे अपने दिल के आईने में अपने चाहनेवालों के चेहरे बदले नज़र आते हैं.

यह अलग बात है कि दिल हर बदले चेहरे को पहचान तो लेता है, लेकिन उसके बदल जाने को स्वीकार नहीं करना चाहता.

यह भी पढ़ेरिश्तों में बदल रहे हैं कमिटमेंट के मायने… (Changing Essence Of Commitments In Relationships Today)

सामने कॉलेज का गेट नज़र आ रहा है, ओह गॉड! यह ऑडिटोरिरम बिल्डिंग है- इसी में तो एनुअल फंक्शन में उसने गाया था- ‘अब के हम बिछड़े, तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें…’

उसे हंसी आ गई, जब उसने स्टेज पर यह ग़ज़ल गाई थी, तो उसे कहां एहसास था कि एक दिन उसे अपनी यह ग़ज़ल सचमुच ज़िंदगी में इस रूप में मिलेगी.

ड्राइवर गाड़ी चला रहा था और वह दिल के भीतर साइकिल से गुज़र रहा था, “सुनो सुनील, गाड़ी ज़रा धीरे चलाओ.”

“साहब, गाड़ी तो बहुत धीरे है, स्पीड पंद्रह से ऊपर तो की ही नहीं मैंने.”

“ओह! ठीक है, ठीक है, तुम चलाओ. ग़लती तुम्हारी नहीं है, मेरी है.” वह सोचने लगा इस व़क्त तो उसके चिंतन की स्पीड साइकिल की स्पीड से भी कम हो गई है. लगा जैसे वह इस शहर के हर मोड़ पर एक बार फिर रुक-रुककर ज़िंदगी गुज़ार रहा है.

 

 

 

 

 

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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