कहानी- जैनिटर से मिला गुरु ज्ञान 6 (Story Series- Jenitor Se Mila Guru Gyan 6)

“हां, मुझे समाजशास्त्र का ज्ञान बिल्कुल नहीं है, पर तुम्हारा शास्त्र जो बतलाता है वह तुम्हे ही मुबारक हो. मैं एक औरत हूं, समाजशास्त्र तो नहीं जानती, पर किसी दूसरी महिला या लड़की को समझने के लिए मुझे किसी मनोविज्ञान की डिग्री नहीं चाहिए. और मैं कह रही हूं यह लड़की बहुत अच्छी है, हमारे रोहन के लिए इससे ज़्यादा उपयुक्त रिश्ता हो ही नहीं सकता.”

 

 

… शुभांगी को हमारे यहां के सामाजिक परिवेश का बिलकुल ज्ञान नहीं था, पर मेरा बचपन तो गांव में ही गुज़रा था, अतः मैं पूरी सामाजिक व्यवस्था से परिचित था. मुझे अचानक चुप होता देख शुभांगी का मन आशंका से भर उठा, “क्या हुआ जी कुछ गड़बड़ है क्या?”
“अब मैं क्या बताऊं, तुम्हारी समाज-विज्ञान की जानकारी तो शून्य है. समझती भी हो हमारी तरफ़ वाल्मीकि उपाधि किसकी होती है?”
“तुम्हारा मतलब उसकी बिरादरी से है; तुम्हारा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया है. इस मुल्क में आकर भी तुम अपने मुल्क की 18 वि० सदी की बातों में उलझे हो.”
मुझे बड़ा तेज ग़ुस्सा आया.
“अरे मुरख, ये समाज के सबसे निचले तबके से आनेवाले लोग होते हैं, इनका पेशा दूसरों के घरों का संडास साफ़ करना रहा है. पढ़-लिख जाने से संस्कार नहीं बदलता, अन्दर की गंदगी पर केवल दिखावे का मुलम्मा चढ़ जाता है. इनके भीतर हम ऊंचे जातियों वालों के प्रति बड़ी गहरी घृणा भरी होती है. पर तुम इन तथ्यों से एकदम अनजान हो. ऐसी लड़की से शादी करके रोहन अपनी ज़िंदगी तबाह कर लेगा.”
“ हां… हां… बड़े समाजशास्त्री हो न तुम, इस लड़की से नहीं तुम्हारी सोच के कारण रोहन की ज़िन्दगी तबाह हो जाएगी. ऐसी अच्छी लड़की केवल इसलिए तुम्हे अस्वीकार्य है कि उसके पूर्वज हमारे-तुम्हारे जैसे कुलीन लोगों के घर की गंदगी साफ़ करते थे. कमाल है यार, गन्दा करनेवाला कुलीन और उसकी सफ़ाई करने वाला नीच.
हां, मुझे समाजशास्त्र का ज्ञान बिल्कुल नहीं है, पर तुम्हारा शास्त्र जो बतलाता है वह तुम्हे ही मुबारक हो. मैं एक औरत हूं, समाजशास्त्र तो नहीं जानती, पर किसी दूसरी महिला या लड़की को समझने के लिए मुझे किसी मनोविज्ञान की डिग्री नहीं चाहिए. और मैं कह रही हूं यह लड़की बहुत अच्छी है, हमारे रोहन के लिए इससे ज़्यादा उपयुक्त रिश्ता हो ही नहीं सकता. तुम तो बड़ा दावा करते हो हिन्दू धर्म के ग्रंथों की जानकारी रखने की, भूल गए क्या वह श्लोक- जन्मना जायते शूद्रः जो स्पष्ट बतलाता है कि जन्म से तो सभी शुद्र ही होते हैं. यह तो हमारा कर्म है, जो हमे अलग-अलग श्रेणियों में रख देता है.”
ऐसा कहते हुए वह उठ खड़ी हुई और हमारी बहस एक तिक्त नोट पर ख़त्म हो गई. मुझे याद नहीं भारत से लेकर यहां तक मेरी शिवांगी से ऐसी कटु वार्ता हुई हो, पर क्या करता सवाल मेरे बेटे का था और मैं जातिगत संस्कार का पूरी तरह से कायल था. मैं समझ रहा था रोहन कुछ और बता कर गया होगा, शायद संचिता के माता-पिता से मिलने और बात करने के लिए कहा होगा, लेकिन मैं ऐसे रिश्ते को कैसे अपनी मंजूरी दे सकता था.
रोहन को गए कई दिन गुज़र गए. हर रात वह अपनी मां से बातें करता, मगर शुभांगी शादी या संचिता की कोई चर्चा नहीं करती. मैं ख़ुद परेशान था, समझ नहीं पाता था क्या करूं. इसी मानसिक स्थिति में उस दिन जब मैं विभाग पहुंचा, तो दरवाज़ा खोलते कंप्यूटर के अपशिष्ट काग़ज़ों से भरा डस्ट बीन मुझे मुंह चिढ़ाता लगा. बस, मेरा पारा चढ़ गया और मैं तुरत विभागीय सचिव मिस ग्वेनसे लड़ने चल पड़ा.
एक तो घर से चलते समय शुभांगी से होनेवाली रोज़ के बहस ने मूड ख़राब कर रखा था, दूसरे इस डस्ट बीन के दर्शन ने आग में घी का काम कर दिया. दो दिनों से उसे फोन कर बतला रहा था कि मेरे कमरे की सफ़ाई नहीं हो पा रही है और प्रतिदिन ग्वेन के पास एक नया बहाना होता. आज क्रोध में मैं अपना विवेक पूरी तरह खो चुका था; वहां पहुंचते ही मैं उस पर उबल पड़ा, “ये क्या है ग्वेन, तीन दिन हो गए मुझे तुम से शिकायत करते पर तुम केवल बहाना बनाती रही. आज तक मेरा कमरा ज्यों का त्यों बना है, क्या विभाग ने जैनिटर को ‘पिंक स्लिप’ थमा दिया है.”
ग्वेन बेहद शांत और सौम्य महिला थी, जो सदैव एक ताजे खिले गुलाब के फूल की तरह दिखती. उसने मुझे आश्चर्य से देखा; शायद सोचने लगी आज इस प्रोफेसर को क्या हो गया है. जो इन्सान अपने मृदु शब्दों के लिए पूरे विश्वविद्यालय में विख्यात था आज ऐसे बुरे मूड में क्यों था. उसने मेरी बातों पर बिना ध्यान दिए मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या बात है डॉ. सिंह, आज शुभांगी से आते समय झगड़ा हो गया था.”

यह भी पढ़ें: दूसरों की ज़िंदगी में झांकना कहीं आपका शौक़ तो नहीं? (Why Do We Love To Gossip?)

उसकी मुस्कुराहट मेरी मूर्खता बयान कर रही थी. मैंने झेपते हुए सॉरी कहा और बताया कि मेरा डस्ट बीन बेकार के कंप्यूटर आउटपुट पेपर से भर चुका था और हमारी जैनिटर ‘तल्मा’ तीन दिनों से नहीं आई थी. ग्वेन ने उसी लहजे में बताया कि उसे एक छोटी-सी दुर्घटना के कारण अस्पताल में दाख़िल किया गया था और एचआर ने वादा किया था कि कल कोई नई जैनिटर अवश्य आ जाएगी, प्लीज बिअर विथ मी.
मैंने अपनी कड़वी बोल के लिए क्षमा याचना की, पर तब तक वह मेरे लिए कॉफी का कप तैयार कर चुकी थी, जिसे उसने मुझे बड़े प्यार से थमाया; ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. यही तो ग्वेन की विशेषता थी, चेहरे पर सदैव बनी रहनेवाली मुस्कुराहट उसके मृदु स्वभाव को और प्रभावशाली बना देती थी.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


प्रो. अनिल कुमार

 

 

 

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli