कहानी- खोया हुआ-सा कुछ 4 (Story Series- Khoya Hua-Sa Kuch 4)

‘’जिस तड़प और तकलीफ़ से तुम्हें गुज़रना पड़ा होगा, उसे सोचता तो आत्मा तक कांप उठती मेरी. इसी से आज तक अपने को माफ़ नहीं कर सका मैं! न जाने कितनी बार मैंने ईश्‍वर से दुआ मांगी कि बस एक बार मुझे पीहू से मिला दो. तुमसे मिल पाता तो कहता कि पीहू मुझे माफ़ कर दो! मैं सचमुच कायर था, जो कुछ न कर सका, न अपने प्यार के लिए, न तुम्हारे विश्‍वास के लिए.’’

मां बिना कुछ कहे बस मेरे सिर पर हाथ फेरती रही. शायद वह भी समझ गई थी कि अब इसके लिए भी देर हो गई है.

तुम्हारे भरोसे पर पूरा न उतर सकने के अपराधबोध ने मुझे व्यथित कर दिया था. हर पल बस एक ही ख़याल रहता मेरे मन में कि मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ दिया पीहू…! जिस तड़प और तकलीफ़ से तुम्हें गुज़रना पड़ा होगा, उसे सोचता तो आत्मा तक कांप उठती मेरी. इसी से आज तक अपने को माफ़ नहीं कर सका मैं! न जाने कितनी बार मैंने ईश्‍वर से दुआ मांगी कि बस एक बार मुझे पीहू से मिला दो. तुमसे मिल पाता तो कहता कि पीहू मुझे माफ़ कर दो! मैं सचमुच कायर था, जो कुछ न कर सका, न अपने प्यार के लिए, न तुम्हारे विश्‍वास के लिए. और जब मैं पूरी तरह टूट गया, तो एक रात न जाने कहां से आकर तुमने ही मुझसे कहा, “समीर, मैंने सदा तुम्हें एक पेंटर के रूप में देखना चाहा था. मेरा यह सपना पूरा कर दो न समीर…” और उस सुबह जब मैं उठा तो मन में तुम्हारा सपना पूरा करने का लक्ष्य बना चुका था… बस यही है इस मामूली-से पेंटर का सफ़र पीहू…!” इतना कहकर वह ख़ामोश हो गया, तो अपनी आंखों से बह चले आंसुओं को पोंछते हुए मैंने कहा, “क्यों दी अपने आपको इतनी बड़ी सज़ा समीर…? क्यों अपने साथ मुझे भी गुनहगार बना दिया तुमने?” समीर ने मेरा हाथ थामकर कहा, “मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं पीहू, वह तो मैं ही था जो तुम्हारी अपेक्षाओं पर खरा न उतर सका, और जब यह बात समझ आई तब तक व़क़्त मेरे हाथों से फिसल चुका था.

फिर कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद बोला, “अच्छा हुआ तुम मुझे मिल गईं, बहुत इच्छा थी तुमसे मिलने की, तुमसे माफ़ी मांगने की और यह बताने की कि देखो पीहू मैं तुम्हारा सपना पूरा कर रहा हूं…” तभी मेरी 5 साल की नन्हीं-सी बिटिया ‘मां…मां…’ कहती हुई आकर मेरे गले में झूल गई. मैंने समीर से उसे मिलवाते हुए कहा, “समीर… यह है मेरी बिटिया परी…” परी को गोद में लेते हुए वह चौंक उठा, “परी…?” मैंने उसकी बात समझकर कहा, “हां समीर, परी… वही नाम जो तुम हमारी बिटिया का रखना चाहते थे. तुम्हें तो न पा सकी, पर परी के नाम में तुम्हें सदा अपने क़रीब पाती हूं मैं.” मेरी बात पर समीर मुस्कुरा उठा. तभी दरवाज़े की घंटी बजी. देखा तो नील थे, आते ही उन्होंने पूछा, “समीर आ गए?” “हां…”

अंदर आकर वे समीर से बोले, “जानता हूं कि आप सोच रहे होंगे कि जान-पहचान न होने पर भी मैंने आपको घर खाने पर क्यों बुलाया है?” उनकी बात पर मैंने समीर की ओर देखा. फिर उत्सुकता से नील के आगे कहने का इंतज़ार करने लगी, “कल जब मैं आपकी पेंटिंग देख रहा था तो मैंने वहां पीहू की भी एक पेंटिंग देखी. उसे देख मैं चौंक पड़ा. फिर जब आपके सेक्रेटरी से मैंने उस पेंटिंग को ख़रीदने की इच्छा जताई, तो उसने यह कह कर इंकार कर दिया कि समीर साहब ने इस पेंटिंग को बेचने से मना किया है. वहीं आपके शादी न करने के बारे में, अच्छी-ख़ासी नौकरी छोड़ पेंटर हो जाने के बारे में सुना, तो लगा कि कहीं इसका संबंध पीहू से ही तो नहीं? प्यार किसी का भी हो, सम्मान करने लायक होता है और फिर जो कुछ आपने अपने प्यार के लिए किया था, उसने आपको मेरी नज़रों में बहुत ऊंचा उठा दिया था. तब सोचा कि जिसके लिए यह सब किया जा रहा है, कम-से-कम उसका तो हक़ बनता ही है यह सब जानने का! बस यही सोच कर आपको यहां बुलाया था. आशा है आप मुझे अन्यथा न लेंगे.”

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समीर ने नील का हाथ पकड़ कर कहा, “आप सोच भी नहीं सकते नीलजी कि आपने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है. आठ बरस से अपनी आत्मा पर एक बोझ लिए जी रहा था और आज उससे कुछ हद तक निजात पा सका हूं, तो स़िर्फ आपके कारण! अगर पीहू से माफ़ी न मांगता तो शायद चैन से मर भी न पाता. नीलजी, कई बार अपनी नासमझी में इंसान जान ही नहीं पाता कि उसके पास कुछ अनमोल है, वह तो उसके चले जाने के बाद ही समझ में आता है कि उसने क्या खो दिया है? आप सच में बहुत क़िस्मत वाले हैं, जो आपके पास पीहू जैसी जीवनसाथी है.”

नील ने मुस्कुराकर मेरे गले में बांह डालते हुए कहा, “वह तो मैं हूं, क्यों पीहू?” उनकी बात पर हम मुस्कुरा पड़े. तभी समीर ने कहा, “अब मैं चलता हूं. आज की शाम जीवन भर मीठी याद बनकर मेरे साथ रहेगी. समीर को छोड़ने मैं और नील बाहर तक आये, तो मैंने समीर से कहा, “समीर, बहुत सज़ा दे चुके अपने आपको, अब तो कोई अच्छा-सा जीवनसाथी चुन लो.” समीर ने मुस्कुरा कर कहा, “पीहू, तुम बहुत क़िस्मतवाली जो तुम्हें नील जैसा समझदार पति मिला है. जो सम्मान, जो प्यार तुम्हारा हक़ था, जो मैं तुम्हें नहीं दे सका था, वह नील तुम्हें दे रहा है. पर अगर मुझे भी वैसा ही साथी न मिला जो तुम्हारे प्रति मेरी भावना को वही सम्मान दे सके तो…? इसलिए मैं अकेला ही ठीक हूं. बस एक इच्छा है कहो, पूरी करोगी?” मैंने अपनी प्रश्‍नचिह्न-सी आंखें उसकी ओर उठा दीं, “चाहता हूं कि एक बार, बस एक बार तुम मेरी पेंटिंग देखने आओ… देखो कि मैं तुम्हारा सपना पूरा कर सका या नहीं? आओगी पीहू?”

“आऊंगी, ज़रूर आऊंगी समीर…” मेरी बात सुन समीर के चेहरे पर तृप्ति के भाव उभर आए. हम दोनों दूर तक समीर को जाता देखते रहे. मैंने हौले से अपना सिर नील के कंधे पर टिका दिया तो नील ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

– कृतिका केशरी

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