कहानी- रिश्तों का दर्पण 1 (Story Series- Rishton Ka Darpan 1)

स्निग्धा को लगा कि बहनों को बुलाने के निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए पति रवीश को पटाना ज़रूरी था, सो ऑफिस से आते ही स्निग्धा ने रवीश के साथ चुहल शुरू कर दी, “कभी-कभी मेरे दिल की आवाज़ सुनकर जल्दी भी आ जाया करो. कब-से धड़क रहा है तुम्हारे लिए, मेरे हमदम मेरे दोस्त!”

“आज बड़ी मस्ती चढ़ रही है, क्या बात है?” रवीश ने भी उसे आलिंगन में बांध लिया. किसी तरह शरीर की गर्माहट से मुक्ति पाकर वह किचन में चली गई चाय बनाने. चाय लाकर वह फिर सोफे पर उससे सटकर बैठ गई, “कुछ दिन मेरे बिना रह लोगे ना?”

“क्यों, क्या हुआ, कहां जा रही हो?”

मोबाइल फोन की रिंगटोन सुनकर स्निग्धा कमरे की ओर भागी. ‘ज़रूर मनोज भइया का होगा. ऐसे मौक़ों पर तो वह उसे कभी नहीं भूलते हैं’ उसने सोचा, लेकिन दूसरी ओर फोन पर उसकी अंतरंग सहेली रूपसी थी, “सिनी, मैं हूं तुम्हारी रूप. कई दिनों से तुम्हारा फोन नहीं आया, तो सोचा मैं ही कसम तोड़ दूं.” फिर हंसती-सी बोली, “बुरा मत मानना. मैं तो ऐसे ही छेड़ रही हूं तुझे. एक तू ही तो अपनी है, जिससे कोई पर्दा नहीं है, तेरे दिल की सुन लेती हूं और अपना दिल तेरे सामने खोल देती हूं. अच्छा यह बता, होली की छुट्टियों में यहीं है या कहीं जा रही है?” वह प्यार से मुझे सिनी और मैं उसे रूप कहती हूं.

“सोच तो रही थी कि मनोज भइया के घर चली जाऊं, लेकिन उनका और नेहा भाभी का फोन ही नहीं आया अभी तक. अपने आप क्या फोन करूं. कोई बुलाए तो ही ठीक लगता है. बिन बुलाए अपने आप जाने से हेटी नहीं होती क्या?”

“बिज़ी होंगे भइया, वरना वह घर में अगर किसी को सबसे ज़्यादा चाहते हैं, तो वह तू ही तो है.” रूपसी ने बात हल्की कर तसल्ली देनी चाही.

“अरे यार, चार-पांच दिन बाद तो छुट्टियां आ ही रही हैं. जाने से पहले घर की सारी व्यवस्था करनी होती है. तू तो जानती ही है, पति नाम का प्राणी घर में सारी सुविधाएं चाहता है, लेकिन जब ख़ुद अकेला रहता है, तो घर को कबाड़ा बना देता है. आते ही फिर जुटो पहले की व्यवस्था बनाने में. देर से गई, तो छुट्टियां तो आई-गई हो जाएंगी. अच्छा बता तू जा रही है कहीं?”

“सिनी, माई डार्लिंग, मैं कहीं नहीं जा रही. सच कहूं, तो जाने की ज़रूरत ही नहीं है. मैंने दोनों ननदों को ही यहां बुला लिया है. घर में ही धमाचौकड़ी का आनंद मिलेगा, तो किसी और के घर जाने की क्या ज़रूरत है.”

यह भी पढ़ेलघु उद्योग- पोटैटो वेफर मेकिंग क्रंची बिज़नेस (Small Scale Industries- Start Your Own Potato Wafer-Making Business) 

“बहनों को बुलाती, ननदों में तो ऊपरवाले ने न जाने कौन-से जींस इनबिल्ट कर दिए हैं कि भाभी को खाने को दौड़ती हैं. सुना नहीं तूने, कहते हैं ननद यानी गले का फंदा.” वह हंसते हुए बोली, “मैं तो सोच रही हूं कि अगर मनोज भइया ने नहीं बुलाया, तो अपनी दोनों छोटी बहनों को बुला लूंगी.” स्निग्धा ने तर्क दिया.

फोन रखने के बाद स्निग्धा बाहर लॉन में चली गई मन हल्का करने. रूपसी के मस्तमौला अंदाज़ ने उसके मन में हलचल मचाकर रख दी थी. उसे रूपसी से कुछ चिढ़ भी हो गई थी. सबसे घनिष्ठ सहेली और उसी ने उसकी बात को सहारा नहीं दिया. भला बताओ, ननदें भी कभी भाभी के लिए बहन बन सकी हैं? सच्चाई से परे बात कर रही है रूप. होली आने में कुछ दिन थे, लेकिन बाहर सबने, विशेष तौर पर युवा शक्ति ने हुड़दंग मचा रखा था. लड़के भी सराबोर और लड़कियां भी. लड़कियों के बीच उसे अपनी बहनों के चेहरे नज़र आने लगे. मन में उमड़ते विचारों के बीच उसका निर्णय बार-बार फिसल रहा था. मनोज भइया के पास स्वयं चली जाए या फिर बहनों को बुलाए, लेकिन भइया का निमंत्रण नहीं आने पर दूसरा विकल्प अधिक उपयुक्त लगा. उसने निश्‍चय किया कि दोनों छोटी बहनों रीतू और मीनू को ही अपने पास बुला लेगी, फिर सब मिलकर ख़ूब गुल-गपाड़ा करेंगी. भइया के उपेक्षित व्यवहार के कारण वह अपना मन क्यों मारे? तभी तो भइया को भी पता चलेगी उसकी वैल्यू!

स्निग्धा को लगा कि बहनों को बुलाने के निर्णय को अमलीजामा पहनाने के लिए पति रवीश को पटाना ज़रूरी था, सो ऑफिस से आते ही स्निग्धा ने रवीश के साथ चुहल शुरू कर दी, “कभी-कभी मेरे दिल की आवाज़ सुनकर जल्दी भी आ जाया करो. कब-से धड़क रहा है तुम्हारे लिए, मेरे हमदम मेरे दोस्त!”

“आज बड़ी मस्ती चढ़ रही है, क्या बात है?” रवीश ने भी उसे आलिंगन में बांध लिया. किसी तरह शरीर की गर्माहट से मुक्ति पाकर वह किचन में चली गई चाय बनाने. चाय लाकर वह फिर सोफे पर उससे सटकर बैठ गई, “कुछ दिन मेरे बिना रह लोगे ना?”

“क्यों, क्या हुआ, कहां जा रही हो?”

“सोच रही हूं, होली की छुट्टियों में घर चली जाऊं. रीतू और मीनू को देखने का बड़ा मन हो रहा है. चली जाऊं?” स्निग्धा ने पति के बालों में उंगली फिराते हुए पूछा.

“जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, लेकिन डार्लिंग तुम जाओगी तो मैं यहां अकेले क्या करूंगा, मैं भी अपने घर निकल जाऊंगा.”

“आप भी चलिए मेरे साथ.” स्निग्धा ने तीर छोड़ा, “लेकिन फिर यह घर सूना हो जाएगा. ”

“ठीक कह रही हो तुम. अगर हम सभी चले गए, तो फिर अपने इस घर का क्या होगा? हमारे-तुम्हारे मायके, ससुराल और दूसरे लोगों के घर होली के रंगों से सजेंगे और अपना घर भूतों का डेरा बन जाएगा. लोग मिलने आएंगे, तो क्या सोचेंगे?”

“तो फिर रीतू और मीनू को बुला लूं यहां? कुछ समय की बात है, फिर तो वो पराए घर की हो जाएंगी. जितना साथ रह लें.” स्निग्धा ने धीरे से कहा.

“अरे भई, हम तो तुम्हारे और तुम्हारी बहनों के गु़लाम हैं. साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. वैसे भी डार्लिंग, पूरा घर तुम्हारा है, जिसे चाहो बुला लो.” रवीश ने अपनी उंगलियां उसकी उंगलियों में पिरोते हुए कहा. फिर थोड़ा रुककर बोला, “तुम कहो, तो इस बार अनन्या और मान्यता को बुला लें?” अनन्या और मान्यता रवीश की छोटी बहनें.

असलम कोहरा

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli