कहानी- खुली किताब का बंद पन्ना… 2 (Story Series- Khuli Kitab Ka Band Panna 2)

तन्वी आश्चर्यचकित होकर प्रसन्नता से मुझे घूरे जा रही थी.

“ऐसे क्या देख रही है? तू नहीं पटाती क्या अपने पति को इमोशनली ब्लैकमेल करके या चिकनी चुपड़ी बातें करके?” मैंने उपहास उड़ानेवाले अंदाज़ में तन्वी को छेड़ा.

 

 

 

… “अरे गेस्टहाउस को मार गोली. तेरा सूटकेस उठाते हैं और मेरे घर चलते हैं. अभी तो तू एक सप्ताह यहीं है, तो फिर घर पर बतियाते रहेंगे.”
“पर घर पर तेरे…” तन्वी को संकोच तो हुआ, पर मेरे साथ हो ली.
“अरे विनय की तू चिंता मत कर. उसे कोई फ़र्क नहीं पड़नेवाला. वह अपने में मस्त रहनेवाला प्राणी है. फिर इन चार सालों में तो मैंने उसे पूरी तरह अपनी शीशी में उतार लिया है. बस तू देखती जा.” कहते हुए मैंने विनय को फोन लगा दिया था.
“हां डार्लिंग, आज ऑफिस में काफ़ी काम था. बहुत थक गई हूं. अब घर लौट रही हूं. एक सहेली भी है साथ में… नहीं.. नहीं.. बाहर से आई है. एक सप्ताह हमारे साथ ही रुकेगी. बड़ी मुश्किल से मना पाई हूं… हां.. हां.. तुम्हें भूख लगी होगी. डोंट वरी! अभी आकर कुछ खाने का बंदोबस्त करती हूं. क्या… तुम बाहर से ला रहे हो? अच्छा चलो ठीक है! उसके सोने का भी इंतज़ाम कर देना. बाय डार्लिंग, थैंक्यू!..
चलो हो गया तुम्हारा इंतजाम!”
तन्वी आश्चर्यचकित होकर प्रसन्नता से मुझे घूरे जा रही थी.
“ऐसे क्या देख रही है? तू नहीं पटाती क्या अपने पति को इमोशनली ब्लैकमेल करके या चिकनी चुपड़ी बातें करके?” मैंने उपहास उड़ानेवाले अंदाज़ में तन्वी को छेड़ा.
“हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. सासू मां, देवर सब साथ ही रहते हैं. रिश्तों में थोड़ी मर्यादा आ ही जाती है. वैसे पवन बहुत अच्छे हैं. बिना बोले ही मेरे मन की सब बातें समझ जाते हैं.” तन्वी का मुख आरक्त हो उठा था.

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“ओ हो, तू तो नई नवेली की तरह शर्माने लगी.” एक-दूसरे को छेड़ते विगत को कुरेदते पूरा सप्ताह कैसे निकल गया कुछ पता नहीं चला. जाते हुए तन्वी ने बताया कि उसका काम अभी पूरा नहीं हुआ है. अगले महीने फिर आना होगा. मैंने उससे वादा लिया कि इस बार वह सूटकेस समेत सीधे घर आएगी.
अगले महीने उसने अपने आने की तिथि सूचित की, तो मैंने उससे एक दिन पहले आने का आग्रह किया, ताकि वह भी हमारे साथ संडे की पिकनिक पर चल सके. उसने कहा वह प्रयास करेगी, पर वह मंडे को ही आ पाई थी.
मैं ऑफिस निकलने की जल्दी में थी. मैंने उसे भी आधे कॉमन रास्ते तक छोड़ने के इरादे से साथ ले लिया. ट्रैफिक सिग्नल पर यातायात अवरूद्ध था. तन्वी बार-बार गाड़ी का कांच खोलने, बंद करने लगी थी. मैंने टोका, तो उसने कहा उसे बहुत घुटन हो रही है.
ख़ैर,जल्द ही रास्ता खुल गया था और मैंने तन्वी को उसकी बस तक ड्राॅप कर दिया था. लौटते में भी वह मेरे साथ हो ली.
“कल आ जाती न, हमने पिकनिक पर तुझे ख़ूब मिस किया.”…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संगीता माथुर

 

 

 

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Usha Gupta

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