कहानी- खुली किताब का बंद पन्ना… 3 (Story Series- Khuli Kitab Ka Band Panna 3)

“तू मर्दों की मानसिकता नहीं जानती? उन्हें हमेशा रहस्य के आवरण में लिपटी औरत लुभाती है. एक बार में ही ख़ुद को उनके सम्मुख शतप्रतिशत खोलकर रख दिया, तो फिर रहस्य, रोमांच, आकर्षण कहां बचेगा? फूल की जब तक एक-एक पंखुड़ी नहीं खुलती भंवरा उसके आसपास मंडराता रहता है. पूरा खुलते ही तो वह रस पीकर छूमंतर नहीं हो जाएगा?” मैंने चमत्कारी अंदाज़ में रहस्योद्घाटन किया, तो तन्वी का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था.

 

 

 

 

… “मन तो बहुत था, पर हो नहीं पाया. वही घर-परिवार की ज़िम्मेदारी…”
“तेरी सास साथ ही रहती है न, फिर क्या दिक़्क़त है?”
“पहले तो सारा वही संभालती थीं, पर इधर जब से एक दुर्घटना में उनकी आंखों की रोशनी गई है, सारी गृहस्थी का बोझ मेरे कंधों पर आ पड़ा है. हालांकि अब भी वे बेचारी अपनी ओर से भरसक सहयोग करती हैं. कभी-कभी तो उनकी लाचारी पर मन बहुत भर आता है. इतनी स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर महिला और अब छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए हम सब पर आश्रित हो गई हैं…” तन्वी भावुक होने लगी, तो मैंने तुरंत विषय बदल दिया था.
“अरे कोई बात नहीं. मैं तो इसलिए कह रही थी कि पिकनिक में बहुत मज़ा आया. हमने अंताक्षरी खेली थी. य से मैंने ये काली काली आंखें… गाया तो सबको ख़ूब मज़ा आया. सब पूरा गाना गाने की गुज़ारिश करने लगे. सबके आग्रह पर आख़िर मैंने पूरा गाना गाया. गाना ख़त्म हुआ, तो तालियां और वंस मोर का ज़बर्दस्त शोर गूंज उठा था.”
“वो तो होना ही था. कॉलेज के ज़माने में भी सब तेरी सिंगिग के ज़बर्दस्त फैन थे.”
“ख़ास मज़े की बात तो सुन. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान विनय जिस तरह आंखें फाड़े मुझे घूरकर देख रहे थे, तू होती तो देखकर हंसी से लोटपोट हो जाती. क्योंकि उसे तो मैंने कभी भनक भी नहीं लगने दी थी कि मुझे गाना आता है.”
“क्या बात कर रही हे? ऐसा क्यों?”

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“तू मर्दों की मानसिकता नहीं जानती? उन्हें हमेशा रहस्य के आवरण में लिपटी औरत लुभाती है. एक बार में ही ख़ुद को उनके सम्मुख शतप्रतिशत खोलकर रख दिया, तो फिर रहस्य, रोमांच, आकर्षण कहां बचेगा? फूल की जब तक एक-एक पंखुड़ी नहीं खुलती भंवरा उसके आसपास मंडराता रहता है. पूरा खुलते ही तो वह रस पीकर छूमंतर नहीं हो जाएगा?” मैंने चमत्कारी अंदाज़ में रहस्योद्घाटन किया, तो तन्वी का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था.
“मैंने तो कभी इस एंगल से सोचा ही नहीं. उलटे मेरे दिमाग़ में तो हमेशा से यह रहा है कि पति-पत्नी के मध्य कोई दीवार नहीं होनी चाहिए. दोनों को एक-दूसरे से कुछ छुपाकर नहीं रखना चाहिए. मैंने तो शादी के दो-चार दिनों में ही पवन को अपने बारे में सब कुछ बता दिया था. और उन्होंने भी अपने, अपने घर-परिवार के बारे में सब कुछ बता दिया था.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संगीता माथुर

 

 

 

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Usha Gupta

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