“अरे भाई आज की तारीख़ में चाय मिलेगी या नहीं.” देर होती देख मैंने तकादा किया.
“हां.. हां, लाती हूं दो मिनट रुको…” मालती भीतर से ही चिल्लाई.
“लो पकड़ो अपनी चाय. रोज़ दो कप बनती थी, वो भी एक साथ. आज चार कप बनी, वो भी तीन जगह… किसी को दूध ज़्यादा चाहिए, तो किसी को ब्लैक टी…और किसी को फीकी… टाइम नहीं लगेगा क्या?” बड़बड़ाते हुए मालती ने सबको चाय पकड़ाई.
“मम्मी, अगला डायलाॅग भी तो बोलो…” आहना ने मां को छेड़ा.
“कौन-सा?”
“अरे वही, ये तो मैं ही हूं, जो निभा रही हूं कोई और होती तो…” आहना ने मां की नकल उतारते हुए कहा, तो कमरा हंसी के ठहाकों से गूंज उठा.
मैं हूं प्रशांत शुक्ला. मेरठ यूनिवर्सिटी में गणित का प्रोफेसर हूं और ये है मेरी छोटी-सी गृहस्थी, जिसमें मेरे अलावा मेरी समझदार समर्पित पत्नी मालती और 25 साल के दो जुड़वा बच्चे हैं. बेटी आहना नोएड़ा में चार्टड अकाउंटेंट है और बेटा नमन गुडगांव में सॉफ्टवेयर इंजीनियर. दोनों बच्चे इस वीकेंड एक ख़ास मक़सद से आए हैं. अगले वीकेंड मालती की 50वीं सालगिरह है. सुबह से उसी की प्लानिंग चल रही है.
“आहना, तुमने मेहमानों की लिस्ट तो बना ली ना… और नमन आज मेरे साथ वैन्यू देखने चलना, सब कुछ आज ही डिसाइड करना है.” मैं चाहता था ज़्यादा से ज़्यादा काम बच्चों की मौजूदगी में निपटा लूं.
“अरे क्यों बेकार में इतना परेशान हो रहे हो, सालगिरह ही तो है, घर पर ही मना लेंगे…” मालती को हमेशा की तरह सालगिरह को लेकर कोई उत्साह नहीं था.
“ऐल्लो, मेरी इकलौती बीवी की 49वीं सालगिरह है घर पर क्यों मनाएंगे, ज़ोर-शोर से मनाएंगे?”
“49वीं… वो कैसे?” दोनों बच्चे चौंके.
“देखो भाई तुम्हारी मां की उम्र को मैंने एक ऐलजबरिक इक्वेशन A+B में ढाल दिया है. इसमें जो ए है, वो कांस्टेंट है. उसकी वेल्यू है 49 और B वेरिएबिल है, जो हर साल बदल जाएगा. तो इस साल तुम्हारी मम्मी पचास के बदले ‘उनन्चास जमा एक’ की होंगी. और आगे भी ‘उनन्चास जमा दो’, ‘उनन्चास जमा तीन’ के हिसाब से ही बढ़ेंगी… हम अपनी बेगम को पचास पार नहीं करने देंगे हां…” मैंने हंसते हुए अपना गणिती ज्ञान बखारा.
“वाह पापा, आप और आपके मैथ के फंड़े, बाय द वे, इस हिसाब से आपकी उम्र क्या है?” नमन ने पूछा.
“यही कोई 49 जमा 6… तो राउंड फिगर कर 49 ही पकड़ो।“ जवाब सुनकर नमन हंसी से फट पड़ा. यही तो मैं चाहता था. उसे इतने दिनों बाद यूं हंसता देख मेरी और मालती की जान में जान आई, वरना पिछले कुछ दिनों से जैसे हंसी उससे रूठकर कहीं दूर जा छिपी थी…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
दीप्ति मित्तल
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