… कभी-कभी किसी ज़ख़्म को दी गई ज़्यादा तवज्जो उसे भरने नहीं देती. बेहतर है उन्हें समय पर छोड़ दिया जाए. यही सोचकर मैंने पूरे दिन नमन की दुखती रग नहीं छेड़ी. रात को फ़ुर्सत के लम्हों में जब वह टैरस पर गुमसुम-सा बैठा था, तो मैं भी उसके पास बैठ गया.
“बेटा, आर यू ओके?” उधर नमन की ख़ामोशी बरक़रार रही, इधर मेरी कोशिशें ज़ारी थी.
“बेटा, हमारे बीच तो कभी जेनरेशन गैप की दीवार नहीं रही. जब तुम्हें रिया से प्यार हुआ था, तो सबसे पहले मुझे बताया था और जब ब्रेकअप हुआ तब भी… मैं जानता हूं तीन साल के साथ को यूं भूलाना आसान नहीं हैं, मगर अब वो जा चुकी है और वो भी अपनी मर्ज़ी से… तो तुम क्यों वहीं ठहरे हो… यू शुड ऑल्सो मूव ऑन.” मेरी बातें सुनकर नमन ने अपने आंसू भीतर ही कहीं जज़्ब कर लिए.
“नॉट सो ईज़ी पापा… मेरे लिए ये चलता रिलेशन नहीं था. मैं ज़िंदगीभर उसके साथ रहना चाहता था. ऐसे जैसे आप और मम्मी रहते हैं. पिछले तीन सालों से वो मेरी हर फ्यूचर प्लानिंग का हिस्सा थी. उसके साथ मैं ऐसे कंप्लीट फील करता था जैसे आप करते हो मम्मी के साथ…” कहते हुए नमन की आवाज़ भरभरा गई.
“आई अंडरस्टैंड बेटा बट…”
“नो पापा, यू डोंट… मेरा जो लॉस हुआ है, उसे आप कभी नहीं समझोगे… मम्मी ने तो आपको कभी एक दिन के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा, सो यू कांट अंडरस्टैंड…” कहकर वो गहरी ख़ामोशी में डूब गया.
मैं जानता था कि मेरा बेटा इस वक़्त भावनाओं के जिस पायदान पर खड़ा है, मैं कितनी भी उछालें मार लूं, वहां तक नहीं पहुंच सकता… मेरे जीवन में 30 साल पहले जो लडकी प्यार बनकर आई थी, वो आज तक मेरे साथ खड़ी है. जीवन में कितने तूफ़ान, कितनी आंधी आई, मगर वो इंच भर नहीं हिली. सच ही कह रहा है नमन, मैं नहीं समझ सकता उसकी तकलीफ़ को, उसकी तड़प को, क्योंकि मैंने वो कभी नहीं भुगती…
बेटे को संभालने की मेरी कोशिशें नाकाफ़ी पड़ रही थी ‘शायद आहना इसमें कुछ मदद कर पाए. वह हमउम्र है, नमन की सिच्यूएशन मुझसे बेहतर समझ सकती है. उम्मीद का एक सिरा पकड़े मैं आहना के कमरे की ओर चल दिया.
“आहना, तुम्हारी नमन से कुछ बात हुई क्या? उससे कुछ बात करो बेटा, उसे संभालो.”
“मैं क्या संभालूं उसे… अब वो बच्चा तो है नहीं, उसे ख़ुद ही सीखने, संभलने दो… आगे काम आएगा, वरना क्या पता अगली बार भी…”
आहना कुछ बड़ा कहते-कहते रूक गई, मगर मेरे कान खड़े हो गए…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
दीप्ति मित्तल
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