… बात मेथी-आलू के भरवां परांठों पर आकर ठहरी. सबने साथ बैठ नाश्ता किया. इसके बाद मालती हमेशा की तरह चाय बनाने उठ खड़ी हुई, तो मैंने उसे हाथ पकडकर बैठा दिया.
“आज मैं बनाता हूं…” मालती के चेहरे पर फिर सवाल खडे हो गए, मगर मैं उसे यूं ही छोड़ रसोई की और बढ़ चला.
“नमन ये तुम्हारी ब्लैक टी, आहना के लिए ज़्यादा दूध की चाय, मेरी फीकी और मैडम आपकी स्पेशल कड़क मीठी मसाला चाय… पसंद है ना तुम्हें…” अब तो मालती की जैसे बेहोश होनेवाली हालत हो गई थी. इतने में नमन का फोन घनघनाया, तो वो बाहर बात करने चला गया.
“पापा बैंकेट हॉल वाले का फोन आया था, कह रहा था आपने सारी बुकिंग कैंसल कर दी?”
“हां, तुम्हारी मम्मी की बर्थडे पार्टी कैंसल हो गई है… उस दिन कोई पार्टी-वार्टी नहीं होगी, बल्कि सुबह हम सब मंदिर जाएंगे, फिर अनाथाश्रम जाकर बच्चों को खाना और नए कपड़े देंगें.“
“क्या..?” सभी बुरी तरह चौकें.
“आप और मंदिर..? पर आप तो पक्के नास्तिक हो, भगवान को नहीं मानते..” मालती स्तब्ध थी.
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“मै नहीं मानता, मगर तुम तो मानती हो और मैं तुम्हें बहुत मानता हूं… एक्च्युली जब गार्डन में था, तो तुम्हारी बहन से फोन पर बात हुई. वह बता रही थी कि शादी से पहले तुम्हें जन्मदिन पर पार्टी-वार्टी करना पसंद नही था, बल्कि तुम सुबह मंदिर में दर्शन करने के बाद अनाथाश्रम जाया करती थी और बच्चों के साथ अपनी ख़ुशियां बांटती थी. तो मैंने सोचा क्यों ना इस बार ऐसे ही बर्थडे मनाएं…”
मालती अभी भी पत्थर बनी मुझे ऐसे घूरे जा रही थी जैसे मैं कोई एलियन हूं. तभी मेरे मोबाइल पर नोटिफिकेशन बजा. आहना का मैसेज था.
“पापा X लूप से बाहर आ चुका है, अब बेचारे Y को एक साथ इतने शॉक मत दो कि वो बेहोश होकर गिर पड़े और आपकी सारी इक्वेशन फेल हो जाए…” आगे एक स्माइली इमोजी थी, जिसकी मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर भी फैल गई.
दीप्ति मित्तल
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