“भाईजान तबीयत लालपन से नहीं, बल्कि अकेलेपन से ख़राब हो रही है आपकी… अगर आज कोई ख़ूबसूरत वैलेनटनिया साथ होती, तो आप भी लाल रंग में रंगे हुए लव बर्ड बने कहीं उड़े फिर रहे होते…” उसकी बात पर मैं तिलमिला कर रह गया. वैसे एक बात तो तय है, दूसरों की दुखती रग को और दुखाने में जो आनंद है, वो शायद दुनिया की किसी प्राप्ति में नहीं है. विशाल का खिला चेहरा इसी बात की गवाही दे रहा था.
“आज ऑफिस में इतना सन्नाटा क्यों है भई? कोई मर गया क्या?” मैंने चिढ़ते हुए अपने प्रोजेक्ट पार्टनर विशाल से पूछा.
“किसी के मरे पर ऑफिस ऐसे सजेगा क्या? बावलेपने की बात करते हो… ज़रा चारों ओर नज़रें घुमा कर देखो… पता चल जाएगा सन्नाटा क्यों है…” क्यों देखूं, उसी सजावट की खुन्नस, तो बाहर निकाली थी अभी. नहीं देखनी थी मुझे वो सब बकवास चीज़ें… यहां-वहां बिखरे दिलनुमा लाल गुब्बारे, लाल रिबन की लडियां, हर केबिन के फूलदान में सजे लाल गुलाब…
“अरे शुक्लाजी जानते नहीं क्या, आज वैलेंटाइन डे है.” मेरा चिढ़ा ख़ामोश चेहरा देख विशाल ने ज्ञान बघारा. सुनकर मन किया दो लाल गुब्बारे उठाऊं, उसके गालों पर पिचकाकर ठॉ से फोड़ दूं और फिर कहूं, हमें अनाड़ी समझे हो क्या? मगर वो अपनी धुन में बोला जा रहा था.
“आज ऑफिस से आधे से ज़्यादा जनता गायब है. सारे बाहर जाकर अपने-अपने वैलेंटाइन के साथ आंखें चार कर रहे हैं और हमारी तरह जिनका कोई नहीं… उनको बॉस जाते हुए एक्स्ट्रा काम चेप गए हैं.”
“बॉस भी गायब हैं… मगर वो तो शादीशुदा हैं?” मुझे हैरत हुई, क्योंकि मेरी समझ से वैलेंटाइन डे जैसे चोंचले अविवाहितों द्वारा ही उठाए जाते थे.
“हां, तो अपनी बीवी के साथ मना रहे हैं ना… उनकी सेकेट्ररी बता रही थी, ऑफिस पहुंचे ही थे कि बीवी का धमकीभरा मैसेज आ गया, या तो आज चुपचाप मेरे साथ वैलेंटाइन मनाने बाहर चलो, वरना इस साल से करवा चौथ रखना बंद कर दूंगी…”
कहकर विशाल हंसने लगा, मगर मेरे मुंह से झूठे को भी हंसी नहीं फूटी. अरे जब इन आशिकों के अब्बाओं को ऑफिस में रुकना ही नहीं था तो यहां ऐसी सजावट क्यों करवा गए, हम जैसे सिंगल के जले पर नमक छिड़कने को? मेरी चिढ़ हद पार करती जा रही थी.
तभी दो जूनियर स्टॉफ ऑफिस में दाखिल हुई. वो भी लालमलाल हुई पड़ी थी, लाल स्कर्ट-टॉप… लाल लिपस्टिक, झुमके, सैंडल… जिधर देखा बस लाल ही लाल. उन्हें देख पलभर को मन किया स्पेन में बुल फाइटिंग करनेवाला सांड बन जाऊं, दोनों को अपने सिंगों से हवा में इधर-उधर उड़ा दूं… मैंने महसूस किया कि वाकई ग़ुस्से से मेरे नथुने सांड की तरह फूलने लगे हैं… इससे पहले कोई खून-ख़राबा हो, मैंने झट से बोतल उठाई और गट से ढ़ेर सारा पानी पी लिया.
“यार एक बात बताओ, अगर आज ये दोनों लाल की जगह कोई और रंग पहन लेती, तो क्या इनका वैलेंटाइन व्रत भंग हो जाता? सुबह से हर जगह इस लाल रंग की सूनामी आई पड़ी है, सच कहें ये सब देख-देखकर जी मिचलाने लगा है, उल्टी आने को हो रही है…” कंप्यूटर ऑन करते हुए मैंने भड़ास निकालना ज़ारी रखा.
“भाईजान तबीयत लालपन से नहीं, बल्कि अकेलेपन से ख़राब हो रही है आपकी… अगर आज कोई ख़ूबसूरत वैलेनटनिया साथ होती, तो आप भी लाल रंग में रंगे हुए लव बर्ड बने कहीं उड़े फिर रहे होते…” उसकी बात पर मैं तिलमिला कर रह गया. वैसे एक बात तो तय है, दूसरों की दुखती रग को और दुखाने में जो आनंद है, वो शायद दुनिया की किसी प्राप्ति में नहीं है. विशाल का खिला चेहरा इसी बात की गवाही दे रहा था.
कड़वी थी, मगर बात सही थी, यही तो कारण था मेरे ग़ुस्से का, मेरी चिढ़ का… कि इस वैलेंटाइन पर भी पिछले तमाम वैलेंटाइन डे की तरह मेरा स्टेटस सिंगल का सिंगल ही था. 29वां लगते ही अब तो ये हालत हो गई थी कि दिल जब-तब गुनगुनाता रहता, पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही…
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कभी कभी एक छोटी सी चाहत हमारे लिए बड़ा अभिशाप बन जाती है… मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. वैसे मैंने चाहा भी क्या था खुदा से… उसकी कायनात तो नहीं मांग ली थी, बस इतना ही चाहा था कि अपनी जीवनसंगिनी का हाथ घरवालों द्वारा थोपी गई अरेंज मैरिज से नहीं, बल्कि लव मैरिज कर अपनी पसंद से थामूंगा… चाहता था एक बार मैं भी किसी से प्यार भरे रिश्ते में बधूं, रोमांस के समंदर में डूबूं, तरूं… और एक दिन उसके साथ प्रेम की लहरों पर सवार हो पार लग जाऊं.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
दीप्ति मित्तल
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