कहानी- मन्नत के सिक्के 1 (Story Series- Mannat ke sikke 1)

 

अतीत में डूबती दमयंतीजी को अपनी आवाज़ सुनाई दी. “सुन साकेत, पहली बार पोती हुई, तो मैं कुछ ना बोली, “महक तुम्हारी पहली संतान थी. सब ठीक-ठाक निपट गया, उसके लिए
ईश्‍वर को धन्यवाद. लेकिन देख, अब की बहू को बेटी नहीं होनी चाहिए. जांच करवा ले. जो बेटी पेट में हो तो…”
“तो…” आश्‍चर्य से साकेत ने पूछा. वे बोलीं, “अब आगे क्या कहूं, तू ख़ुद समझदार है, क्या करना है.” पोते की ज़िद लिए दमयंतीजी की इस मांग पर साकेत ने कड़ी आपत्ति दर्ज की.

”अमृता, अम्मा कहां है?”
“कहां होंगी, वहीं पूजाघर में बैठी शिकायत कर रही होंगी ईश्‍वर से… कि काश! पोती की जगह पोते के कंधे पर तारे लगते देखती…” अमृता की बात पर साकेत बिना किसी प्रतिक्रिया के पूजाघर की ओर चला आया, तो देखा सच में अम्मा पूजाघर में बैठी हुई चांदी के कुछ सिक्कों को हथेलियों में धरे सोच में डूबी हुई थीं.
“क्या हुआ अम्मा? और हां, ये क्या आजकल जब-तब ये थैली निकाल लेती हो. क्या है इसमें?”
“अं-हां… कुछ नहीं…” सोच-विचार के घेरे से निकलते हुए दमयंतीजी हाथ में पकड़े सिक्कों को ध्यानपूर्वक थैली में डालने लगीं. उन्हें ध्यान से देखते हुए साकेत हंसते हुए बोला, “जानता हूं बहुत दिनों से अपनी पोती को डांट नहीं लगाई, इसलिए उदास हो. अब चलो, देहरादून में अपना महीनों का कोटा पूरा करना.” साकेत की बात का बिना कोई जवाब दिए दमयंतीजी बाहर आ गईं.
कुछ समय बाद सब ट्रेन में बैठे थे. खिड़की से बाहर झांकते हुए दमयंतीजी तेज़ी से छूटते पेड़-खलिहान, बस्ती-गांव, नदी-पहाड़ देखती रहीं. कुछ देर बाद आंखें मुंदने लगीं. जितनी तेज़ी से दृश्य-परिदृश्य निकल रहे थे, उतनी ही तेज़ी से अतीत की घटनाएं भी आंखों के सामने से निकल रही थीं.
अतीत में डूबती दमयंतीजी को अपनी आवाज़ सुनाई दी. “सुन साकेत, पहली बार पोती हुई, तो मैं कुछ ना बोली, महक तुम्हारी पहली संतान थी. सब ठीक-ठाक निपट गया, उसके लिए ईश्‍वर को धन्यवाद. लेकिन देख, अब की बहू को बेटी नहीं होनी चाहिए. जांच करवा ले. जो बेटी पेट में हो तो…”

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“तो…” आश्‍चर्य से साकेत ने पूछा. वे बोलीं, “अब आगे क्या कहूं, तू ख़ुद समझदार है, क्या करना है.” पोते की ज़िद लिए दमयंतीजी की इस मांग पर साकेत ने कड़ी आपत्ति दर्ज की.
“अम्मा, अमृता के गर्भ में जो भी है, वो बस स्वस्थ हो. बेटी-बेटा जो भी आए, उसका स्वागत…”

पर दमयंतीजी के सामने साकेत की नहीं चली. उनकी अन्न-जल छोड़ देने की धमकी पर दोनों अवैधानिक रूप से लिंग जांच केंद्र गए, पर क़िस्मत देखो, लड़के की रिपोर्ट के बाद भी पलक ने जन्म लिया. हाय-तौबा के बाद दमयंतीजी के पास उसे अपनाने के अलावा कोई चारा नहीं था.

दमयंतीजी ने पलक के जन्म पर डॉक्टरों और लिंग जांच मशीनों को जी भर कोसा. वे तो क़ानूनी मुक़दमा करने की तैयारी में थीं, पर साकेत ने ये कहकर उन्हें शांत कराया कि लिंग जांच करवाकर ग़ैरक़ानूनी काम हमने किया है. जो किसी को पता चल गया, तो लेने के देने पड़ जाएंगे. हम सब लंबे समय के लिए जेल में जाएंगे. यह सुनकर दमयंतीजी पोती होने की टीस मन में दबाए चुप हुईं, पर रह-रहकर उनकी भड़ास कभी ना कभी बेटे-बहू पर निकल जाती. दमयंतीजी की इन हरकतों को नज़रअंदाज़ किए अमृता-साकेत नन्हीं बिटिया को पलक पर बिठाए रखतेे थे, शायद इसी वजह से उसका नाम पलक हुआ…

         मीनू त्रिपाठी

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