… मैं एक बार तो उसे झिड़क देता, फिर उसकी उतरी सूरत देखकर, “हां, बताओ क्या पूछ रही थी.” कहकर सरेंडर भी कर देता था. फिर तो कभी पर्स का कलर दिखाया जाता, कभी चूड़ियों के सेट. वैसे ये कोई नई हरकत नहीं थी मेघा की. बचपन में भी कोई नया सामान आया नहीं कि बिना मुझे दिखाए उसे चैन नहीं पड़ता था. अब चाहे वो नई गुड़िया हो या हेयर क्लिप! मेघा अब भी वही थी, उतनी ही मासूम. लेकिन एक बात मुझे खटकती थी. एक लिहाज़ था या दुनियादारी की समझ, कुछ था जो मुझसे छुपा हुआ था… मेघा कभी-कभी बहुत उदास दिखती थी, एकदम चुप!
बिल्कुल उस पहले दिन की तरह, जब वो यहां आई थी.
एक शाम मैं ऑफिस से आकर उससे मिलने गया, तो चेहरा एकदम उतरा हुआ था, खिड़की से बाहर देखते हुए बोली, “सोशल मीडिया पर नहीं हो ना तुम?”
“नहीं हूं.. क्यों, क्या हुआ?” मैंने पूछा तो मेघा उसी तरह उदासी में डूबी हुई बोली, “अच्छा है, नहीं हो.. अपनी बीवी की जासूसी तो नहीं किया करोगे, किसकी पोस्ट पर क्या कमेंट किया, किसकी पोस्ट पर दिल बनाया, क्यों बनाया?”
मेघा इतना बोलकर चुप हो गई थी. मैं कुछ-कुछ समझ तो रहा था, इन दोनों यानी मेघा और विनीत के बीच कुछ खटपट हुई होगी. मेघा ख़ुद ही थोड़ा रुककर बोली, “विनीत हर बात पर परेशान हो जाता है. पैनिक होने लगता है.. कुछ ज़्यादा ही…”
मेघा मुझे अपनी उदासी का कारण बता चुकी थी, लेकिन मैं अपनी दोस्ती, अपने रिश्ते के दायरे में क़ैद था, मैं चाहकर भी इस बारे में कुछ नहीं कह सकता था.
अगले दिन शाम को, मेघा ने आकर मुझसे पूछा, “आज फ्री हो? बुटीक तक चलो ना प्लीज़. विनीत का फोन आया था. कह रहा है एंगेजमेंट गाउन में फुल स्लीव्स लगवानी हैं.”
“एक बात बताओ मेघा, ये तुम्हारा विनीत, तुम्हारी ड्रेस की चिंता में लगा है? जीने दो यार बेचारे को. क्यों परेशान कर रही हो उसे?”
मेरी बात पर वो हंसी नहीं, बस बाहर देखते हुए बोली, “मैं नहीं कर रही. एक्चुअली वो बहुत पर्टिकुलर है चीज़ों को लेकर, कुछ भी दाएं-बाएं नहीं चलता उसे. अब जैसे वो बुटीक आएगा गाउन की स्लीव्स की लंबाई बताने.”
ये बताते हुए मेघा कहने को तो मुस्कुरा रही थी, लेकिन अजीब उदासी घुली हुई थी. मैंने बात संभाली, “चलो कोई बात नहीं. अपनी-अपनी पसंद है. कितने बजे पहुंचना है वहां? विनीत कब आएगा?”
मेघा थोड़ा सकपकाते हुए बोली, “मैं लोकेशन शेयर करती हूं उसके साथ. वो देखता रहता है. आ जाएगा अकार्डिंगली.”
मुझे सुनकर थोड़ा अटपटा तो लगा, लेकिन कुछ कहने की बजाय मैं मेघा का गाउनवाला बैग लिए दरवाज़े की ओर बढ़ चुका था.
क़रीब दो घंटे से मैं, मेघा और विनीत इस दुकान से उस दुकान. इस शोरूम से उस शोरूम बीसों चक्कर काट चुके थे. वो दोनों हर छोटी बात को लेकर बहस करने लगते थे और हर बहस के अंत में मेघा हथियार डाल देती थी. बड़ा बोझिल माहौल था. भूख अलग परेशान कर रही थी. मैंने मेघा से कहा, “डिनर कर लेते हैं यार, नौ बज रहा है.”
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मेघा ने विनीत की ओर देखा और इससे पहले कि वहां से हां या ना आता, मैं सामने दिख रहे रेस्तरां की ओर बढ़ गया था. विनीत मेन्यू के पन्ने पलटता हुआ बोला, “कुछ हल्का ही खाते हैं. ऐसा करिए पहले दो वेज क्लियर सूप, उसके बाद रशियन सैलेड.”
उसने मेरी ओर मेन्यू बढ़ा दिया था.
“एक प्लेट छोला-भटूरा.” मैंने बिना मेन्यू देखे कह दिया.
मेरा ऑर्डर सुनते ही मेघा की आंखों में चमक आ गई थी, वेटर को रोकते हुए बोली, “मेरे लिए भी छोला-भटूरा.”
इससे पहले कि वेटर नया ऑर्डर लिखता विनीत ने उसको मना कर दिया, “नहीं, वो पहलेवाला ठीक है… छोला-भटूरा केवल एक प्लेट.”
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