… वेटर के जाते ही माहौल में चुप्पी फैल गई थी. मेघा मुझसे नज़रें चुराते हुए फोन में कुछ देखने लगी थी और मैं बेवजह घूंट-घूंट करके सामने रखा पानी पीने लगा था. हर बात पर अपनी चलानेवाला ये लड़का, मुझसे तो सहन नहीं हो रहा था. केवल मेघा के साथ ही नहीं, हर किसी के साथ विनीत का वही रवैया था. पहले तो डेकोरेशनवाले से एक किसी ख़ास फूल को लेकर लड़ लिया, फिर केटरिंगवाले से स्टार्टर्स की बात पर बिगड़ा और इस समय भी, अरे ख़ुद को हल्का खाना है, तो अकेले खाओ ना! बहस करके अपनी बात मनवाना. लोकेशन शेयर करना, जैसे नज़र रख रहा हो. मेघा चुपचाप सूप पी रही थी, लेकिन मुझे घुटन होने लगी थी. इस तरह जुड़ते हैं रिश्ते?
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अगली सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते समय मेघा की आवाज़ आ रही थी, “आशीष, जल्दी आओ.” मैं तुरंत गया तो देखा कि कोई पुरानी मूवी चलाकर, आलू के परांठे लिए मेरा वेट कर रही थी. आंटी मुझे हड़बड़ाया हुआ देखकर हंसने लगीं. मैंने आंखें तरेरीं, “ये खिलाने के लिए तुम इतना शोर मचा रही थी? ऑफिस के लिए निकल रहा था यार.”
वो अचानक गंभीर हो गई थी, “हां तो, साथ में नाश्ता कर लो, फिर चले जाना. कुछ दिनों की बात और है, फिर नहीं करूंगी परेशान.”
कहते हुए उसका गला रुंध गया था. आंटी की आंखें भी भर आई थीं. उन्होंने प्यार से मेघा का सिर सहलाते हुए उसको अपनी गोद में लिटा लिया था. मेघा मुंह छिपाकर शायद अपना रोना रोकने लगी थी और मेरे लिए वहां बैठना मुश्किल हो गया था. कैसा कठोर दिल दे देते हैं भगवान इन लड़कियों को. कैसे चली जाती हैं सब छोड़कर? और… और कितनी आसानी से कर लेती हैं ये अपने जाने की बात! मैं किसी तरह एकाध परांठा निगलकर वहां से चला आया था. मन में कुछ भर रहा था… मैं मानना नहीं चाह रहा था, लेकिन मेरी आंखें भरने पर आमादा थीं. एक दोस्त की शादी होने और उसके जाने को लेकर मुझको रोना क्यों आ रहा था?
वो एक पल था, जो मुझे मेघा के साथ मेरे रिश्ते, मेरी भावनाओं के बारे में सवाल करने लगा था…
अब मैं मेघा से थोड़ा कटने लगा था. वो आती, तो मैं पांच मिनट साथ बैठकर किसी काम से बाहर निकल जाता और उसके घर का कोई काम होता, तो टाल जाता. सगाईवाले दिन भी मैं सीधा वेन्यू पर पहुंचा था! स्टेज पर बैठे मेघा और विनीत एकदम राजकुमार-राजकुमारी जैसे लग रहे थे. पहले केक कटा, अंगूठी पहनाई गई. फिर सबको डांस करने के लिए बुलाया जाने लगा. इससे ज़्यादा देर मैं वहां रुक नहीं पाया. पता नहीं मन में क्या कचोटने लगा था. बचपन के दिन जैसे दुबारा सामने आ रहे थे. मेघा एक बार फिर मुझसे अलग होनेवाली थी. घर आकर मैं उन्हीं कपड़ों में बिस्तर पर ढेर हो गया था, जैसे कोई थकान मुझ पर हावी थी.
“आशीष, जल्दी उठो… आशीष…” मां मुझे घबराई हुई आवाज़ में जगा रही थीं. मैं चौंककर उठा. रात के ढाई बजे थे.
“जल्दी चलो, मेघा के यहां बड़ा बवाल हो गया है. पापा वहीं हैं तुम्हारे.”
मां घबराई हुई थीं. उन्होंने बस मुझे चप्पल पहनने का मौक़ा दिया और मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकलने लगीं, “एक मिनट मां, बताओगी कुछ, हुआ क्या है? इतनी रात को उठाकर इस तरह मुझे ले जाया जा रहा है.” मैंने बात जानने की कोशिश की. मां ने बुझी आवाज़ में बताया, “पता नहीं क्या हुआ? सगाई तो ख़ूब बढ़िया ढंग से हुई. घर आकर मेघा कह रही है, वहां शादी नहीं करेगी.”
मैं गेट के बाहर आते-आते एकदम से रुक गया, “क्या कह रही हैं मां? मेघा ने शादी के लिए मना कर दिया? वो भी सगाई के तुरंत बाद?” मेरी नींद एक झटके में हवा हो चुकी थी.
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