कहानी- पछतावा 1 (Story Series- Pachhtava 1)

बहुत देर में उसे होश आया. बड़ी मुश्किल से उसने फोन से एक्सीडेंट की ख़बर अपने रिश्तेदारों को दी. हंसते-खेलते घर की ख़ुशियां कुछ की समय में मातम में बदल गई. श्लोका की ख़ुशियों को पता नहीं किसकी नज़र लग गई थी. आंसू थे कि सूखने का नाम ही न ले रहे थे.

“मम्मी, आपको याद है ना आज शाम को बाज़ार जाना है.” स्कूल के लिए घर से निकलते हुए राजुल बोला.
“याद है बेटा आज शाम को तुम्हारे लिए हमे ढेर सारी ख़रीददारी करनी है.” श्लोका ने उत्तर दिया. उसने जल्दी से अपने पति रोमेश और बेटे राजुल को टिफिन बॉक्स थमाया अैर उनके साथ घर के गेट तक पहुंच गई. पिता-बेटे स्कूटर पर सवार हो गए. हाथ हिलाकर राजुल ने मम्मी को बाय कहा और पापा के साथ स्कूल के लिए चल पड़ा.
किसे पता था श्लोका की पति और बेटे से वह आख़िरी मुलाक़ात होगी. उन दोनो को विदा करके श्लोका ख़ुद तैयार होने लगी. उसे भी स्कूल जाना था. अभी आधा घंटा ही बीता था कि फोन की घंटी बज उठी.
“हैलो मिसेज़ रोमेश बोल रही हैं.”
“जी हां बोल रही हूं.”
“आपके लिए एक बुरी ख़बर है आपके पति का एक्सीडेंट हो गया है. आप तुरन्त बस स्टैंड के पास पहुंचे.” जब तक श्लोका कुछ समझ पाती दूसरी ओर से फोन कट गया. वह सन्न रह गई. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. उसने कॉल बैक किया, पर फोन नही उठा. उसने बस स्टैंड फोन मिलाया.
“हेलो, क्या यहां पर कोई एक्सीडेंट हुआ है?”
“जी हां, एक स्कूटर सवार बस से टकरा गया.” कहकर उसने फोन कट कर दिया. अब शक की गुंजाइश कम थी. वह बदहवास-सी जल्दी से घर से निकलकर सीधे बस स्टैंड पहुंच गई. वहां पर बहुत भीड़ लगी थी. धड़कते दिल से श्लोका एक्सीडेंट की जगह पर पहुंची. वहां पर राजुल और रोमेश के खून से लथपथ शरीर पड़े थे. टक्कर इतनी भंयकर थी कि स्कूटर के चिथड़े उड़ गए थे. उनकी हालत देखकर श्लोका को चक्कर आ गया और गिर पड़ी. उन दोनो को बचाया न जा सका.
बहुत देर में उसे होश आया. बड़ी मुश्किल से उसने फोन से एक्सीडेंट की ख़बर अपने रिश्तेदारों को दी. हंसते-खेलते घर की ख़ुशियां कुछ की समय में मातम में बदल गई. श्लोका की ख़ुशियों को पता नहीं किसकी नज़र लग गई थी. आंसू थे कि सूखने का नाम ही न ले रहे थे.
इस शहर से श्लोका के जीवन की अहम यादें जुड़ी थी. नौकरी की वजह से श्लोका तुरन्त यह शहर छोड़कर न जा सकी. ऐसे बुरे वक़्त पर उसके मुंह बोले भाई अनूप ने बहुत मदद की. काफ़ी भागदौड़ करके उसने श्लोका की प्रतिनियुक्ति बच्चों के एक आवासीय विद्यालय में करवा दी, ताकि वह अकेले रहने की बजाय बच्चों के बीच अपने दुख को भूल सके. वह ऐसी अभागी थी जिसकी कोख और मांग का सिंदूर एक ही दिन उजड़ा था. श्लोका का अपने आप पर से विश्वास ही उठ गया.

यह भी पढ़ें: कोरोना संक्रमित घर पर सेल्फ आइसोलेशन में कैसे रहें? जल्दी रिकवरी के लिए रखें इन बातों का ख्याल (Treating COVID-19 at home: Self Isolation Guidelines For Covid Positive Patients)

नई जगह सुल्तानपुर का वातावरण श्लोका को शुरू में ज़रा भी रास नहीं आया. यहां उसे अकेले अपने साथ वक़्त बिताने का मौक़ा न मिल पाता था. उसे स्कूल के हर बच्चे में अपना सात वर्षीय राजुल ही दिखाई देता.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


डॉ. के. रानी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli