कहानी- पैरों की डोर 6 (Story Series- Pairon Ki Dor 6)

“काका, तुम सब कुछ कर सकते हो. सड़क पर मेरी जिंदगी कब तक सुरक्षित रह सकती है? मुझे मंगती की बेटी के नाम से छुटकारा दिला दो काका. किसी को भी मेरे बारे में कभी कुछ नहीं बताना. कल जब मैं कुछ बन जाऊंगी, तो मां को खुद अपने साथ लेकर चली जाऊंगी. बोलो काका मेरी मदद करोगे ना?” सोनी बोली.

 

 

 

“तेरे हाईस्कूल के इम्तिहान हो गए हैं. तू अपना रिज़ल्ट आते ही यहां चली आना. तेरी मां तुझे आने तो देगी ना?”
“तू उसकी चिंता मत कर. मैं किसी तरीके से अपने आने का प्रबंध कर लूंगी. मैं हर हाल में एक मंगती की बेटी के नाम से छुटकारा पाकर अपनी अलग पहचान बनाना चाहती हूं.”
हाईस्कूल में सोनी बहुत अच्छे नंबरों से पास हो गयी. अपनी अंकतालिका लेने के बाद उसने अपनी टीसी निकलवा ली. उसने अपनी सारी समस्या रहीम काका को बताई. सुनकर वह बहुत चौंके, “यह क्या कह रही है तू? मंगती तेरे बगैर कैसे रहेगी?”
“काका वह किसी भी तरीके से रह लेगी. तुम हो ना उसे समझाने के लिए. बस, एक बार मुझे यहां से बाहर निकलने में मदद कर दो.”
“यह काम सरल नहीं है सोनी.”
“काका, तुम सब कुछ कर सकते हो. सड़क पर मेरी जिंदगी कब तक सुरक्षित रह सकती है? मुझे मंगती की बेटी के नाम से छुटकारा दिला दो काका. किसी को भी मेरे बारे में कभी कुछ नहीं बताना. कल जब मैं कुछ बन जाऊंगी, तो मां को खुद अपने साथ लेकर चली जाऊंगी. बोलो काका मेरी मदद करोगे ना?” सोनी बोली.
बहुत सोच-विचार करके रहीम ने हामी भर दी. वह भली भांति जानता था इसकी गाज उस पर भी गिरेगी. उसने अपने भतीजे को बुलाया और उसे सारी बात समझा दी.
दो दिन बाद रात के अंधेरे में पैर पर बंधी डोरी काटकर सोनी मां से दूर होकर आशा के पास पहुंच गयी. पैर पर बंधी रस्सी काटने के साथ ही उसे लगा जैसे वह इस सड़क की जिंदगी से आज़ाद हो गयी हो. आज उसने एक मंगती से बेटी का रिश्ता खत्म कर लिया था.

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सुबह सोनी को अपने साथ न पाकर प्रकाशी बौखला गई. वह भाग-भागकर उसे इधर-उधर ढूंढ़ रही थी. रो-रोकर उसका बुरा हाल हो गया था. वह हर एक से पूछ रही थी.
“किसी ने मेरी बेटी को देखा?”
“किसी के साथ भाग गई होगी.” एक राह चलता आदमी बोला.
“नहीं वह ऐसा नहीं कर सकती मेरी बेटी ऐसी नहीं है.”
“मंगती की बेटी का क्या भरोसा है? चली गई होगी कहीं.” लोग तरह-तरह की बात बना रहे थे. उसके कहने पर रहीम ने थाने में रिपोर्ट लिखवा दी.
मां का दिल किसी भी तरह से नहीं मान रहा था. उसे रहीम पर पूरा शक हो रहा था कि ज़रूर इसी ने उसकी बेटी के साथ कुछ किया है. वह बार-बार उससे पूछ रही थी.
“सच बता तूने भगाया है ना मेरी बेटी को?”
“कैसी बात कर रही है मंगती. वह मेरी भी बेटी जैसी है. मैं उसके बारे में बुरा कैसा सोच सकता हूं.”
“मुझे यकीन नहीं आता.” उसके कहने पर पुलिस ने रहीम की भी छानबीन की, लेकिन उसके खिलाफ ऐसा कोई सबूत नहीं मिला.
कुछ दिन तक वह रोती-बिलखती रही. उसने कई दिनों तक ठीक से खाना भी नहीं खाया. रहीम ने उसे बहुत समझाया, “सब्र रख मंगती. मेरा मन कहता है एक दिन तेरी बेटी ज़रूर लौटकर आएगी. वह सबसे हटकर है. ज़रूर कोई बात होगी, जो वह तुझे इस तरह छोड़कर अचानक कहीं चली गई.”
धीरे-धीरे मंगती की हालत बेटी के वियोग में ख़राब होती चली जा रही थी. वह उसके कपड़े सीने से लगाकर रात को रोती रहती. भोटू उसके पास बैठा रहता. वह उससे पूछती, “तेरे सामने तेरी बहन को कोई कैसे ले गया? ज़रुर कोई पहचानवाला रहा होगा. तभी तो तूने उसे जाने दिया.” भोटू बेचारा उसकी बातों का क्या जवाब देता? जानता तो वह था, लेकिन बता नहीं सकता था.
रहीम ने सोनी को विदा करते समय हिदायत दी, “सोनी मुझसे फोन पर कोई संपर्क न करना. पुलिस को शक हो सकता है. मुझे जब ज़रुरत होगी तुमसे संपर्क कर लूंगा.”
दो महीने में माहौल पहले जैसा हो गया था. सोनी को भी रहने के लिए छत मिल गई .वह बहुत खुश थी. जीवन में पहली बार उसने घर और रिश्ते देखे थे. मैडम को भी सोनी से कोई शिकायत न थी. उसने बहुत जल्दी अपना काम सीख लिया. उसे बस दिनभर छोटी बच्ची की देखभाल करनी होती थी. मैडम ने उसे पढ़ाई की भी छूट दे दी. मैडम के दिए रूपयों से उसने सबसे पहले एक मोबाइल फोन ख़रीदा. अब वह आराम से रहीम काका से हफ्ते में एक बार अपनी मां की खबर लेती रहती. कभी फोन ऑन करके वे मंगती से बात करने लगते, जिससे सोनी मां की आवाज़ सुन सके. उसे भी मां की बहुत याद आती, लेकिन उसकी मजबूरी थी. वह पूरी ज़िंदगी एक मंगती की बेटी बनकर नहीं गुज़ारना चाहती थी…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें… 

डॉ. के. रानी

 

 

 

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