कहानी- परिधान 3 (Story Series- Paridhan 3)

रीमा की बातों ने केतकीजी को झकझोर कर रख दिया. वाक़ई वे मंजू के लिए बहन के घर से कैसा काल्पनिक परिधान तैयार कर ले आई थीं, जो पूरे परिवार के लिए कितना बड़ा अभिशाप बन सकता था. अपनी ग़लती समझकर उसकी आंखों से आंसू छलक आए और उन आंसुओं ने भ्रमित अपेक्षाओं का परिधान तार-तार कर दिया. बहुत दिनों के बाद केतकीजी को पहले की तरह ही सब कुछ सहज लग रहा था.

“अच्छा-अच्छा ठीक है. फिर से नहीं तैयार करूंगी कोई सूट, पर ये तो बता अब इस अनारकली का क्या होगा?…” केतकीजी ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की.

उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर रीमा ऐसी ज़िद क्यों कर रही है. उसने आज तक कभी सूट नहीं पहना. वो भी इतनी फैशनेबल स्टाइल का सूट तो वे पहन ही नहीं सकतीं. लेकिन इसे कैसे समझाएं. ये तो जैसे बालहठ लेकर बैठ गई है. केतकीजी ने उस सूट की कमर देखी, “लेकिन बेटा ये तो बहुत टाइट फिटिंग का है, मैं तो इसमें फिट ही नहीं हो पाऊंगी.”

“ओह! अच्छा.” रीमा ने सूट को उलट-पुलटकर देखा, सूट केतकीजी के हिसाब से वाक़ई टाइट फिटिंग का था. वह वापस से मनुहार करने लगी. “मेरी प्यारी ममा, यह सूट थोड़ा ही तो टाइट है. आप ऐसा कीजिए कल से थोड़ी डायटिंग, वॉक वगैरह शुरू कर दीजिए. फिर देखिए महीनेभर में कैसे यह आपको पूरा फिट आ जाएगा.” इस बार केतकीजी बुरी तरह से झल्ला गईं.

“ये क्या मज़ाक है रीमा. मुझे नहीं पहनना कोई अनारकली-वनारकली.” केतकीजी को आख़िरकार ग़ुस्सा आ गया.

“ममा, क्या आप मुझसे प्यार नहीं करतीं? क्या आप मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकतीं?” रीमा ने बच्चों की तरह मुंह फुला लिया.

“मैं तुम्हें प्यार करती हूं बेटा. बहुत प्यार, पर तुम्हारी ये मांग बिल्कुल बचकानी है कि तुम्हारे लिए मैं जबरन इस सूट में फिट होकर इसे पहनने लगूं, जबकि मैं ऐसे कपड़े पहनने की न तो आदी हूं, न ही कंफर्टेबल हूं.”

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“तो ममा, फिर आप मंजू भाभी के लिए मौसी के यहां की लता स्टाइल सूट क्यों बनाकर ले आई हैं. और चाहती हैं कि वे उसमें फिट हो जाएं, जबकि वो सूट उनकी प्रकृति व स्वभाव से बिलकुल मेल नहीं खाता.” रीमा ने केतकीजी की तरफ़ ठहरी हुई नज़रों से देखते हुए कहा.

“ये क्या कह रही हो? मैं तो कोई सूट नहीं लाई हूं उसके लिए.” केतकीजी को रीमा की कही बात कुछ समझ नहीं आई.

“लाई हो ममा, लता जैसी बहू बनने की अपेक्षा का सूट लाई हो और भाभी को जबरन उसमें फिट करने की कोशिश कर रही हो. वो नहीं हो रही हैं, तो आपको उनसे शिकायत होने लगी है, वरना अब से पहले तो आपको उनसे कभी कोई शिकायत नहीं हुई. उल्टा आप उनकी तारीफ़ ही किया करती थीं कि कैसे उन्होंने अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के आगे करियर को महत्व नहीं दिया. कैसे धीरे-धीरे आपसे घर की ज़िम्मेदारियों को अपने कंधों पर ले लिया.

अब वह सब भूलकर आपको ये सब नज़र आने लगा कि वे लता जैसी सुबह नहीं उठतीं, पूजा-पाठ नहीं करतीं. आपके पैर नहीं दबातीं. बहुओं की तरह पहन-ओढ़कर नहीं रहतीं. और मान लिया जाए कि वो ये सब करने भी लग जाएं, तो आपका क्या भरोसा फिर किसी और की बहू को देख लेंगी और उनके लिए फिर से अपेक्षाओं का नया परिधान तैयार कर देंगी और चाहेंगी कि वे उसमें भी फिट हो जाएं. ऐसी अपेक्षाओं का तो कोई अंत नहीं है ममा.” केतकीजी चुपचाप रीमा की बात सुन रही थीं.

“एक बात और ममा, भाभी हंसमुख हैं, अभी तक आपकी बातों को सहजता से ले रही हैं. यह तो मैंने आज ख़ुद देख लिया. लेकिन अगर आपका यही रवैया रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब वे आपको पलटकर, कठोरता से जवाब भी देने लगेंगी. ठीक ऐसे ही जैसे अभी आपने मुझे दिया था. और फिर इस घर की शांति भंग होते देर नहीं लगेगी.”

रीमा की बातों ने केतकीजी को झकझोर कर रख दिया. वाक़ई वे मंजू के लिए बहन के घर से कैसा काल्पनिक परिधान तैयार कर ले आई थीं, जो पूरे परिवार के लिए कितना बड़ा अभिशाप बन सकता था. अपनी ग़लती समझकर उसकी आंखों से आंसू छलक आए और उन आंसुओं ने भ्रमित अपेक्षाओं का परिधान तार-तार कर दिया. बहुत दिनों के बाद केतकीजी को पहले की तरह ही सब कुछ सहज लग रहा था.

“अच्छा-अच्छा ठीक है. फिर से नहीं तैयार करूंगी कोई सूट, पर ये तो बता अब इस अनारकली का क्या होगा?…” केतकीजी ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की.

“इसका क्या होना है. इसे तो वही पहनेगा जिसके लिए यह बना है.”

“किसके लिए?” केतकीजी ने रीमा को शक की नज़रों से देखा.

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“मेरे लिए और किसके लिए.” कहकर रीमा खिलखिलाकर हंस पड़ी, उसकी हंसी में केतकीजी का हास्य स्वर भी शामिल हो गया.

  दीप्ति मित्तल

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