… ‘‘ठोंक-बजा कर देख लेना.’’
‘‘देख लिया. संजू ने प्रारब्ध से कह दिया है शादी के बाद जॉब कंटीन्यू रखेगी. बोला जॉबवाली लड़की ही चाहिए. मैंने देखा है सोहनी ख़ूब पढ़ी-लिखी लड़कियां भी बेलन और बच्चों में उलझ कर रह जाती हैं. अच्छा हुआ संजू ने स्पष्ट बात कर ली.’’
‘‘संजू इतनी आधुनिक हो…”
‘‘आधुनिक जैसी क्या बात है सोहनी? हम लोग समय के बदलाव को मंज़ूर नहीं करेंगे, तो अपने बच्चों को वे मौक़े नहीं दे पाएंगे, जो उन्हें मिलने चाहिए.’’
‘‘हां, पर…”
‘‘मोबाइल पर सब जान लोगी? एक-दो दिन का समय निकाल कर आओ. देखो यहां कितना अच्छा माहौल है. मोहिनी और रोहन आए थे. दोनों बहुत ख़ुश हैं.”
सोहनी चौंक रही है. रोहिणी क्या इतनी सहज है, जितनी जान पड़ती है? इसमें इतना बदलाव कैसे आ गया? यह तो परंपराभंजक लोगों, तरीक़ों, स्थितियों की विरोधी रही है. मोहिनी को लड़केवाले देखने आए थे. बाबूजी के दबाव, अम्मा के आग्रह के बावजूद मोहिनी ने निम्न औसत कद के लड़के को नापसंद कर दिया था. रोहिणी का द्रोह थमता न था, ‘‘अम्मा, मैं ख़ुद से आठ साल बड़े आदमी से शादी नहीं करना चाहती थी. तुमने कुल की मर्यादा, बाबूजी की ज़बान पता नहीं कितना बोझ मुझ पर डाल दिया था. मैं चुप रह गई थी. मोहिनी को कोई कुछ नहीं कह रहा है. इसे हमेशा मुझसे और सोहनी से अधिक मिला. इस घर में हम दोनों रिफ़्यूजी की तरह रहे हैं. मनमर्जी रोहन और मोहिनी ने की.’’
रोहिणी का द्रोह ग़लत नहीं था. रोहिणी और सोहनी का परिणय क्रमशः सम्पन्न कर अध्यापक बाबूजी पर दबाव कम हो गया था. मोहिनी के प्रति कुछ नरम हो गए. जीवन बीमा निगम के अधिकारी के साथ मोहिनी का विवाह इस तरह उदारता से किया था जैसे बड़ी बेटियों के विवाह में अधूरे रह गए अरमानों की पूर्ति कर रहे हैं. भाई-बहनों में मोहिनी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है. सोहनी चौंक रही है. द्रोह करनेवाली रोहिणी संजू की नेट मैरिज पर सहज कैसे हो सकती है? रोहन उससे मिल आया है. वस्तुस्थिति जानना होगा. सेाहनी ने रोहन को फोन किया. वह मोहिनी की तरह मुदित था.
‘‘सोहनी, तुम मंशा का प्रोफाइल साइट पर क्यों नहीं डाल देती? संजू से सालभर बड़ी है. उसकी शादी अब हो जानी चाहिए.’’
‘‘मंशा का तो तुम जानते हो रोहन. होमियोपैथ डॉक्टर है. सरकारी नौकरी है. डॉक्टर से शादी करना चाहती है. ब्राह्मण डॉक्टर मिले तो बात बने.’’
‘‘इसीलिए कह रहा हूं. नेट पर सिलेक्शन प्रोसेस बढ़ जाती है. ग्लोबलाइजेशन का कुछ लाभ हमें भी तो मिले. अच्छा मैच ढूंढ़ना कठिन होता है. किसी से कहो लड़का बताएं, तो लोग परे हो जाते हैं. दोनों पक्षों को साधने की मेहनत कोई नहीं करना चाहता. शादी सफल न हो, तो दोनों पक्ष बिचैलिए को कोसते हैं. पहले नउआ और पंडित की पहुंच घर के भीतर तक होती थी. वे मैरिज ब्यूरो का काम कर लेते थे. अब यह काम इंटरनेट करता है.’’
‘‘नेट मैरिज में धोखा हो सकता है.’’
रोहन ठीक वैसे ही हंसा जैसे मोहिनी हंसी थी.
“कस्बा कल्चर से बाहर निकल कसौटी बदलो सोहनी. नई पीढ़ी तुम्हारे लिहाज़ से नहीं चलेगी. लड़कियां अपने लिए मौक़े रच रही हैं. लड़का पसंद कर रही हैं. ज़बरदस्त घटना है.’’
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‘‘लड़कियां, लड़का पसंद कर रही हैं यह सोच भ्रामक है रोहन. प्रेम विवाह की बात मैं नहीं कर रही हूं, लेकिन लड़की अपना जीवनसाथी चुनने के लिए कभी स्वतंत्र नहीं रही. राजकन्याएं भी नहीं. वे मनुष्य नहीं शील्ड की तरह थीं. स्वयंवर पाखंड की तरह था. राजा अपने से अधिक शक्तिशाली, समर्थ राजाओं, राजपुत्रों को बुलाते थे. उनकी तकनीक, बुद्धि, पराक्रम जांचने के लिए कठिन लक्ष्य रखते थे. लक्ष्य पर विजय पाने वाला कुरूप, कपटी, बूढ़ा, धूर्त जो भी हो राजकन्या को उससे शादी करनी पड़ती थी. हमेशा यही हुआ है. लड़का लड़की को पसंद करता है. लड़की फूली नहीं समाती कि उसे अच्छे लड़के ने पसंद कर लिया है.’’
सुषमा मुनीन्द्र
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