… ‘‘बस, बस, बस… ज्ञान की बातें सुनकर मैं घबरा जाता हूं. संजू की तो क़िस्मत खुल गई. रोहिणी से मिल आओ. वह बहुत ख़ुश है.’’
रोहिणी के घर पहुंच कर सोहनी ने देखा रोहिणी बहुत ख़ुश है. अक्सर विमुख दिखनेवाले उसके चेहरे में दीप्ति है. निष्काम योगी जीजाजी ज़रूर निष्काम जान पड़ते थे. सोहनी के बधाई देते ही कहने लगे, “मानता हूं संजू के लिए मैं प्रारब्ध जैसा लड़का न ढूंढ़ पाता, पर हम समाज में रहते हैं. सोचना पड़ता है. प्रारब्ध, संजू से दो महीने छोटा है. वे लोग अच्छे ब्राह्मण भी नहीं हैं.’’
रोहिणी ने कमान अपने हाथ में ले ली, ‘‘हां, सोहनी से प्रारब्ध दो महीने छोटा है. मैं डर रही थी इस बिंदु पर मामला न अटक जाए, पर वे भले लोग हैं. बोले फ़र्क नहीं पड़ता. विचार मिलने चाहिए. देखो न, अम्मा, बाबूजी से दस-बारह साल छोटी हैं. बाबूजी पार लगे. अम्मा बुढ़ापा और बीमारी ढो रही हैं. मैं इनसे आठ साल छोटी हूं. अब तो ठीक है, शुरू में विचार ही नहीं मिलते थे. अच्छे ब्राह्मण नहीं हैं… हद है. ब्राह्मण तो हैं. विजातीय होता तब भी मैं प्रारब्ध को प्राथमिकता देती. लड़कियों को पढ़ा रहे हैं, नौकरी करा रहे हैं. ये पुरानी परंपराओं को नहीं ढोएंगी.’’
सोहनी चौंक रही है. यह, वह रोहिणी नहीं है, जिसे वह जानती है. रोहिणी की छोटी बेटी जूही ने सोहनी का चौंकता मुख देख कर रोहिणी की बात का अनुमोदन किया.
‘‘मौसी, सोचने का तरीक़ा सकारात्मक और वैज्ञानिक होना चाहिए, वरना चीज़ों को मैनेज करने में दिक़्क़त होती है.’’
जीजाजी को अन्यमनस्क देख सोहनी ने प्रसंग बदल दिया.
‘‘संजू, कब से नहीं आई?’’
जूही ने लहक कर बताया, ‘‘आई थी न. वह चंडीगढ़ में, जीजू जयपुर में. ख़ूब चैटिंग चल रही है.’’
रोहिणी ने बात लपक ली. जैसे कितना अधिक बता देना चाहती है.
‘‘चैटिंग का चलन मुझे पसंद है. दोनों एक-दूसरे को जान-समझ लेंगे. हमारे समय में लड़के, लड़की का चाल-चलन जानने के लिए जासूसी की जाती थी. जासूसी अनैतिक लगती थी.”
खाना खाकर जीजाजी सोने चले गए. महिलाओं की संसद देर रात तक चली. रोहिणी प्रमुख वक्ता.
‘‘शादी जबलपुर जाकर करनी है. इंतज़ाम का आधा-आधा पैसा देना है. अच्छा है. इंतज़ाम उनका, जवाबदेही उनकी.’’
सोहनी कहना चाहती है- शुभ काम घर से करने पर नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है, पर अब लड़केवाले, लड़कीवालों को अपने दर पर बुला कर विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार को औपचारिक बना रहे हैं. ऐसा कहने पर रोहिणी सोच सकती है मंशा की शादी नहीं हुई इसलिए सोहनी ईर्ष्यालु हो रही है. सहादराओं में इस तरह के मतभेद और प्रतिकूलन पता नहीं कैसे आ जाते हैं. शायद इसलिए कि उनके अलग परिवार बन जाते हैं. प्राथमिकताएं उस परिवार से जुड़ जाती हैं. सोहनी ने रोहिणी की आश्वस्ति को मंद न कर यह कहा, “लड़की की बारात घर आए वह अलग उत्साह होता है.’’
जूही ने खंडन किया, ‘‘मौसी, रीमिक्सिंग का ज़माना है. लोगों को सब कुछ इन्सटेंट चाहिए. शादी पैकेज प्रोग्राम बन रही है. मुझे तो यह सुविधानजक लगता है. मां बताती हैं उनके समय में तिलक, माटी मागर, मंडप, मंत्री पूजन, शादी, विदाई का आठ दिवसीय कार्यक्रम होता था. आठ-दस दिन तक रह कर रिश्तेदार हालत बिगाड़ते थे. सोच कर मुझे दहशत होती है. मैं चाहती हूं संजू की शादी में रिश्तेदार शादी के दिन आएं, सुबह विदाई के बाद सटक लें.’’
सुषमा मुनीन्द्र
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