मैं सहम गई. मेरे और मिलन के साथ-साथ पापा के लिए भी साहिल जैसे शिष्ट और मृदुभाषी बच्चे का ऐसा व्यवहार चौंकानेवाला था. लेकिन मेरी मम्मी सब समझ गईं. उन्होंने न मालूम साहिल से क्या कहा. लेकिन उस घटना के बाद साहिल आश्चर्यजनक रूप से शांत हो गया. वह मुंबई चलने के लिए भी मान गया. मिलन ने साहिल में आए इस अप्रत्याशित बदलाव पर मेरा ध्यान ले जाना चाहा.
जब एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले साहिल मेरी मम्मी से लिपटकर रो पड़ा, तब मिलन ने मुझे समझाने का असफल प्रयास भी किया. लेकिन मैं नहीं समझ पाई. जैसे वीर्यदान से कोई पुरुष पिता नहीं बन जाता, वैसे ही जन्म दे देने से कोई स्त्री मां नहीं बन जाती. मेरा मां बनना अभी शेष था.
लोग कहते हैं कि शिशु जन्म के साथ ही स्त्री में एक मां का जन्म होता है. झूठ कहते हैं. प्रसूति स्त्री का दूसरा जन्म अवश्य है, क्योंकि यह एक अत्यंत पीड़ादायक प्रक्रिया है. किंतु स्त्री के अंदर मां का जन्म मात्र एक प्रक्रिया नहीं, सम्पूर्ण जीवन है. स्त्री धीरे-धीरे मां बनती है, वैसे ही जैसे पुरुष धीरे-धीर पिता बनता है. कुछ स्त्रियों में यह प्रक्रिया शिशु जन्म के पूर्व, किसी में जन्म के तुरंत बाद, तो कुछ में चंद दिनों बाद आरंभ होती है. हां, मैं ज़रूर अपवाद रही. मेरे अंदर मां को जन्म लेने में दस वर्ष लग गए.
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आज इसी एयरपोर्ट पर बस कुछ देर पहले मैंने वास्तव में प्रसवपीड़ा का अनुभव किया. कब? तब जब मेरे ‘बेटा’ कहने पर साहिल ने कहा था कि मैं उसकी मां नहीं! उस समय से आरंभ हुई वह पीड़ा धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है.
अपनी बात समाप्त कर साहिल ने मोबाइल मेरी तरफ़ बढ़ा दिया. एक क्षण को हमारी दृष्टि मिली. उसकी मासूम आंखें मेरी तरफ़ देखते हुए भी, मुझे नहीं शून्य को ताक रही थीं. उसकी निर्दोष आंखों में मुझे अपना ही चेहरा कितना स्वार्थी नज़र आया. मुझे मम्मी याद आईं. यदि यह ज़िंदगी मां बन जाए, तो बिन मांगे ही सब मिल जाए. मां! कितना छोटा शब्द! पर कितना बड़ा अर्थ! साहिल की पीड़ा मेरे रोम-रोम में घुलती रही और मैं मां बन गई.
“तुम ठीक तो हो?” मिलन के प्रश्न ने मुझे यथार्थ में ला पटका. मेरे बहते आंसुओं ने उसे उत्तर दिया. वह सब समझ गया. मौन सबसे अच्छा संवाद है.
मैं अपनी जगह से उठी और साहिल के सामने ज़मीन पर बैठ गई. उसने सकुचा कर मुझे देखा. अपनी रुलाई को गले में घोंटते हुए मैंने कहा, “चलो घर चलें!”
पल्लवी पुंडीर
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