कहानी- बांसुरीवाला 1 (Story Series- Bansuriwala 1)

सारे बच्चे बांसुरीवाले के ज़बर्दस्त प्रशंसक थे, किन्तु कक्षा 6 के कक्षाध्यापक शास्त्रीजी उसके सबसे बड़े दुश्मन थे. उन्हें लगता था कि अपनी बांसुरी बेचने के चक्कर में ये लड़का स्कूल के बच्चों को बर्बाद किए दे रहा है. उन्होंने कई बार उस लड़के को डांटा-फटकारा था, किन्तु वो जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि शास्त्रीजी की डांट खाने के बाद भी रोज़ स्कूल के बाहर आ डटता.

 

 

 

 

प्रधानाध्यापक ने घडी की ओर दृष्टि उठाई. भोजनावकाश का समय हो चुका था, किन्तु चपरासी ने अभी तक स्कूल की घंटी नहीं बजाई थी. वे चपरासी को आवाज़ देने जा ही रहे थे कि तभी बांसुरी की लंबी तान सुनाई पड़ी.
इसी के साथ जैसे चपरासी की नींद टूट गई. उसने दौड़ कर भोजनावकाश की घंटी बजा दी. सारे बच्चे शोर मचाते हुये बांसुरीवाले की ओर दौड़ पड़े.
वो बांसुरीवाला 12 वर्ष का एक लडका था. छोटी-सी बांसुरी से ऐसी मधुर धुन निकालता कि बच्चे झूम उठते. पिछले कुछ महीनों से वो भोजनावकाश के समय स्कूल के बाहर आ जाता था. चपरासी भले ही घंटी बजाना भूल जाए, लेकिन ठीक 11 बजे उसकी बांसुरी बजने लगती थी. उसके बाद बच्चों को कक्षा में रोक पाना मुश्किल होता था.
बांसुरीवाले ने स्कूल के बच्चों पर जैसे जादू-सा कर दिया था. अपना-अपना टिफिन लेकर वे उसके पास पहुंच जाते और उसे घेर कर बैठ जाते. वो झूम-झूम कर बांसुरी बजाने लगता, तो समय का पता ही नहीं चलता. बांसुरी की धुन पर कई बच्चे तो नाचने भी लगते थे. भोजनावकाश समाप्त होने के बाद वे बहुत मुश्किलों से स्कूल के भीतर वापस आते.
प्रतिदिन उस लडके की दो-चार बांसुरियां बिक भी जाती थीं. बच्चे स्कूल के भीतर उन बांसुरियों को बजाने की कोशिश करते, जिसके कारण अक्सर उन्हें डांट भी पड़ जाती थी. किन्तु बच्चों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता था. मौक़ा पाते ही वे फिर बांसुरी बजाने के प्रयास में जुट जाते थे.

यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)

सारे बच्चे बांसुरीवाले के ज़बर्दस्त प्रशंसक थे, किन्तु कक्षा 6 के कक्षाध्यापक शास्त्रीजी उसके सबसे बड़े दुश्मन थे. उन्हें लगता था कि अपनी बांसुरी बेचने के चक्कर में ये लड़का स्कूल के बच्चों को बर्बाद किए दे रहा है. उन्होंने कई बार उस लड़के को डांटा-फटकारा था, किन्तु वो जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि शास्त्रीजी की डांट खाने के बाद भी रोज़ स्कूल के बाहर आ डटता.
परेशान होकर शास्त्रीजी ने प्रधानाध्यापक से शिकायत करनी शुरू की. पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, किन्तु एक दिन भोजनावकाश में शास्त्रीजी के साथ स्कूल के बाहर पहुंच गए.
फटे पुराने कपड़े पहने बांसुरीवाला लड़का मगन हो कर बांसुरी बजा रहा था और बच्चे उसे घेरकर नाच रहे थे. यह देख शास्त्रीजी का पारा चढ़ गया. उन्होंने चीखते हुए कहा, ‘‘देख रहे हैं आप, ये छोकरा स्कूल के बच्चों को बर्बाद किए दे रहा है. पढ़ने-लिखने के बजाय सभी नचैय्या बने जा रहे हैं…’’

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

 

यह भी पढ़ें: झूठ बोलने पर बच्चे को डांटने-धमकाने की नहीं, समझाने की ज़रूरत है… (How To Deal With Your Kids Lying)

 

 

 

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

 

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli