कहानी- प्रिया का घर 4 (Story Series- Priya Ka Ghar 4)

मैंने उसके पास जाकर कहा, “प्रिया, तुम सोचती होगी ना कि आंटी ने कहां शादी करवा दी…” उसने तुरंत मेरी हथेली थाम ली, “नहीं आंटी, मैं कभी ऐसा नहीं सोचती. आपको वहां के बारे में पता होता, तो आप शादी होने ही ना देतीं…” प्रिया का ये यक़ीन मेरे दिल पर बोझ की तरह आकर बैठ गया था! काश कि मैं बता पाती कि असलियत क्या थी…

 

मैं घर आकर निढाल होकर बिस्तर पर लेट गई थी! प्रिया की बताई गई सारी बातें दिमाग़ में शोर मचाने लगी थीं. सोने के पिंजरे में क़ैद करके रखा था बहू को, चीखना-चिल्लाना, खाना फेंकना, उसके ससुराल में आम बात थी… जैसे-जैसे मैं सब कुछ याद करती जा रही थी, अपराधबोध के दलदल में फंसती जा रही थी. मेरा मन मुझसे सवाल कर रहा था, क्या मुझे नहीं पता था कि उसके ससुराल का माहौल कैसा था? मेरी सहेली यानी की प्रिया की सास ने मुझे नहीं बताया था कि उनके यहां औरतों की क्या हालत थी? यही तो कारण था कि कोई उनके यहां रिश्ता नहीं करना चाहता था, और मेरे रिश्ता भेजते ही चटपट शादी हो गई थी. विक्की के पापा ने उस वक़्त भी टोका था,

“क्यों सुषमा, तुम्हें जम रहा है ये रिश्ता? वो परिवार प्रिया के लायक तो है नहीं.”
मैंने तमककर उनको शांत करा दिया था, “रहने दीजिए आप तो, बिना दान-दहेज इतने रईस घर में जा रही है, वो नहीं देख रहे आप.”
अब सब कुछ याद आता जा रहा था. प्रिया का चेहरा आंखों के सामने से हट नहीं रहा था. उसके मासूम चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं और इन लकीरों को खींचने में मेरा ही हाथ था.
उस दिन के बाद से प्रिया के घर की सारी बातें खुलकर मेरे सामने आने लगी थीं. प्रिया इस रिश्ते को और ढोना नहीं चाहती थी‌, लेकिन उसकी मम्मी ये शादी तोड़ने को तैयार नहीं थीं… वो मुझसे आकर कहतीं कि दोनों तरफ़ बात करके चीज़ें ठीक की जा सकती हैं, प्रिया की ज़िद ग़लत है. बात करते-करते मुझसे हामी भरवाने की कोशिश भी करतीं, लेकिन मैं जानती थी उस नर्क में दोबारा लड़की को भेजने का कोई मतलब नहीं था. उनके घर की बहस का मैं भी हिस्सा बनने लगी थी. प्रिया की मम्मी ने एक शाम फिर बात छेड़ दी, “दामादजी ख़ुद बहुत शर्मिन्दा हैं चायवाली बात से. कह रहे हैं गुस्से में हो गया, आइंदा नहीं होगा… तब भी ये ज़िद नहीं छोड़ रही.”
प्रिया ने कमरे की छत देखते हुए जैसे अपने आप को ही जवाब दिया, “बात एक बार की है ही नहीं. इस चोट की भी नहीं है. कितनी बातें, कितनी चोटें गिनाऊं? हर चोट दिखती थोड़ी है…”
आगे की बात उसके आंसुओं में डूब गई थी. मैंने उसके पास जाकर कहा, “प्रिया, तुम सोचती होगी ना कि आंटी ने कहां शादी करवा दी…”
उसने तुरंत मेरी हथेली थाम ली, “नहीं आंटी, मैं कभी ऐसा नहीं सोचती. आपको वहां के बारे में पता होता, तो आप शादी होने ही ना देतीं…”
प्रिया का ये यक़ीन मेरे दिल पर बोझ की तरह आकर बैठ गया था! काश कि मैं बता पाती कि असलियत क्या थी… काश मैं सबके सामने खड़े होकर अपनी ग़लती स्वीकार पाती. उस दिन के बाद से जैसे मुझे कोई रोग लग गया था. मन में कोई कीड़ा आकर बैठ गया था, जो मुझे खोखला करने लगा था. मुझे अपनी सोच से घिन आने लगी थी. केवल अपनी ज़िद की ख़ातिर मैंने इन दोनों को दूर किया सो किया, उस बच्ची को भी एक ग़लत रिश्ते में ढकेल आई थी मैं! ये हद नहीं थी स्वार्थ की? इतना नीचे गिरते हुए मुझे एक बार भी डर नहीं लगा?
मन की ये बीमारी मेरे चेहरे पर फैलने लगी थी. किसी काम में जी नहीं लगता था. विक्की ने एक दिन टोका, तो मेरी आंखें डबडबा आईं.

यह भी पढ़ें: शादी से पहले और शादी के बाद, इन 15 विषयों पर ज़रूर करें बात! (15 Things Every Couple Should Discuss Before Marriage)

मैंने अटकते हुए बताया, “प्रिया के ससुरालवाले ठीक नहीं हैं, वो‌ बहुत परेशान है…”
विक्की के चेहरे पर अचानक परेशानी उभर आई थी,
“ठीक नहीं हैं मतलब?”
मैंने खुलकर बताया, “इसके साथ बर्ताव अच्छा नहीं है… चीखना-चिल्लाना, मारपीट सब होता है इसके साथ…”
जैसे-जैसे मैं ये सब बताती जा रही थी, ग़ुस्से से उसका चेहरा लाल पड़ता जा रहा था, मैंने आगे बताया,
“प्रिया मना कर रही है वापस जाने को, लेकिन उसकी मम्मी कह रही हैं बात करके सब ठीक किया जा सकता है, थोड़ा एडजस्ट करे…”
विक्की ने आख़िरी लाइन पर मुझे घूरकर देखा, “आंटी कह रही हैं एडजस्ट करे? कब तक… जब तक मर ना जाए?..”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

लकी राजीव

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Usha Gupta

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