… बारूद की गंध जब नक्कू मियां की नाक तक पहुंची, तो ज़ोरदार छींक आई. उनका दुबला-पतला शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप उठा. अगर पीछे खड़े दोस्तों ने उनकी कमर को पकड़ न लिया होता, तो वह दुल्हन के ऊपर ही गिर पड़ते.
दोस्तों की मेहरबानी से नक्कू मियां गिरे तो नहीं, पर एक चूक हो गई. हड़बड़ाहट में उन्होंने जयमाला दुल्हन की बजाय उसकी बगल में खड़ी उसकी ख़ूबसूरत सहेली के गले में डाल दी. यह देख चारों ओर सन्नाटा छा गया. कन्या पक्ष में तो खलबली मच गई. दुल्हन की मां तो हाय-तौबा मचाने लगीं. पर नक्कू मियां दीन-दुनिया से बेख़बर सात सुरों में छींक-छींक कर बारात के साथ आए बैंड से कम्पटीशन करने में जुटे हुए थे.
वक़्त की नज़ाकत भांप नक्कू मियां के पिताजी ने अक्ल से काम लिया. वे शेर की तरह दहाड़ उठे, “मैंने पहले ही बता दिया था कि मेरे बेटे को बारूद से एलर्जी है, इसलिए शादी में आतिशबाज़ी नहीं चलनी चाहिए. फिर किस माई के लाल ने आतिबाज़ी चलवाने की हिमाकत की है. छींक-छींक कर मेरे फूल जैसे बेटे का बुरा हाल हो गया है.”
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इतना कह वे दुल्हन के पिता के पास पहुंचे और पूरी ताक़त से चीखे, “जिस घर में मेरी छोटी-सी बात नहीं मानी गई वहां नहीं करनी मुझे अपने बेटे की शादी.’’
एक पल रूक कर उन्होंने अपनी बात की प्रतिक्रिया नापी फिर बारातियों की ओर मुड़ते हुए तोप का गोला दाग दिया, “चलो, बारात वापस ले चलो. जहां छोटी-सी बात की इज्ज़त नहीं, वहां रिश्तेदारी करने से क्या फ़ायदा.”
अब तो दुल्हन के पिता के तो देवता कूच कर गए. उस गरीब को याद ही नहीं आ रहा था कि समधी साहब ने आतिशबाज़ी के लिए कब मना किया था, पर सोच-विचार करने का वक़्त न था. इसलिए उन्होंने समधी साहब से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगने में ही भलाई समझी.
थोड़ी मान-मनौव्वल के बाद नक्कू मियां के पिताजी मान गए. फिर नक्कू मियां की शादी बिना किसी विघ्न-बाधा के सम्पन्न हो गई. वह दुल्हन को लेकर घर लौट आए, पर दो दिन बीतते-बीतते दुल्हन समझ गई कि उसके साथ धोखा हुआ है. उसका पति पक्का छींकू है.
अब जो हो गया, उसे तो वापस नहीं लौटाया जा सकता, पर उसने नक्कू मियां से बदला लेने की अनोखी तरक़ीब ईजाद कर ली. जब भी नक्कू मियां उसका कोई कहना न मानते या वह किसी अन्य कारण से उस पर नाराज़ होते, तो वह चुपके से आग में लाल मिर्च डाल देती.
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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