… मिर्च की झार फैलते ही नक्कू मियां की नाक नगाड़े की तरह सात सुरों में बजने लगती और छींक-छींक कर लाल हो जाती और उनके गले की नसें फूल जातीं. उनकी पत्नी लाल मिर्च का एक पैकेट हमेशा अपने साथ रखती थी. इस कारण वह बेचारे उससे बहुत घबराते थे.
उन्हीं दिनों शहर में एक शातिर चोर ने आतंक मचा रखा था. वह बिना नागा किसी न किसी के घर हाथ साफ़ कर देता था. उसे पकड़ने की सरकार ने बहुत कोशिश की. रात में पुलिस की गश्त बढ़ा दी गई, पर सब बेकार. चोरियां पहले की ही तरह जारी थीं. परेशान होकर सरकार ने उस चोर को पकड़नेवाले को 2 लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा की.
एक रात चोर नक्कू मियां के घर में घुसा. आहट पा उनकी पत्नी जाग गई. उसने नक्कू मियां को जगाकर फुसफुसाते हुए कहा, “दूसरे कमरे में चोर घुसा है. जा कर उसे पकड़ लो. दो लाख का ईनाम मिलेगा.’’
‘‘मुझे बहुत डर लग रहा है. मैं नहीं जाऊंगा उसे पकड़ने.” नक्कू मियां ने कांपते स्वर में इन्कार कर दिया.
उनकी पत्नी ने काफ़ी समझाया-बुझाया, जोश दिलाया, पर नक्कू मियां चोर के क़रीब जाने की हिम्मत न जुटा सके. उनकी पत्नी को बहुत ग़ुस्सा आया. जाड़े के दिन थे. अतः कमरे में अंगीठी रखी थी. उसने ढेर सारी लाल मिर्चें एक साथ अंगीठी में डाल दी. पूरा घर मिर्चों की तेज झार से भर गया.
छीं… छीं…ऽ….ऽ… …आ…ऽ…क्…छीं… आक्षीं…ऽ….ऽ… आ…ए…क्…छीं… छीं….छूं…छीं… आ..एक्… छीं…यां… छि…छि…छूं… नक्कू मियां सातों तरह की छींके निकालने लगे. मिर्चे की झार से बचने के लिए वह एक कमरे से दूसरे कमरे में भाग रहे थे, लेकिन झार पूरे घर में भर गई थी. अतः उन्हें राहत नहीं मिल पा रही थी. छींक छींक कर उनकी हालत ख़राब हो गई.
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झार अब तक उस कमरे तक भी पहुंच चुकी थी, जिसमें चोर था. लाख रोकने पर भी चोर की एक छींक निकल गई. उधर नक्कू मियां अपनी सात सुरों की छींक का दो चक्र पूरा कर चुके थे.
वह तीसरा चक्र शुरू करने जा ही रहे थे कि तभी उनकी पत्नी ने डपटते हुए कहा, ‘‘तुम सातों भाई अपने-अपने कमरे में खड़े हो कर छींकते ही रहोगे या चोर को पकड़ोगे भी?..”
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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