‘जूते एक साथ उतारकर क्यों नहीं रखते?’ भड़कती नेहा और यश की ठंडी बयार-सी बातें, ‘पूरा दिन तो बेचारे साथ ही रहते हैं, घर पर तो उन्हें कुछ स्पेस दो, पता है दोनों शिकायत कर रहे थे कि जब देखो हमें साथ-साथ चिपकाए रखते हो, हमें भी एक-दूसरे से थोड़ा ब्रेक चाहिए. तुमको अपनी बीवी से हर व़क्त चिपके रहना है तो चिपको, पर हमें माफ़ करो…’ उसकी ऐसी ही न जाने कितनी बातों को यादकर नैना भीगी आंखों से मुस्कुरा उठी, अब वे बातें बचकानी नहीं लग रही थीं, प्यार आ रहा था उन पर.
“होना क्या था. वही समझौता एक्सप्रेस दौड़ानी पड़ी, तुम्हारे मौसाजी ने कूलिंग कम की और हम मोटा कंबल तान के सोने लगे… कह रहे थे ना, पिसती औरत ही है.”
“रहने दो मौसी, कूलिंग तो मौसाजी ने भी कम की ना…” नैना हंसते हुए बोली.
“यही तो बात है बिट्टो, ख़ुशी-ख़ुशी साथ रहना है, तो बीच का रास्ता तलाशना ही पड़ता है.”
“पर मौसी, यश और मैं हर बात में अलग हैं, मुझे ही पता है, कैसे झेल रही हूं उसे… ”
“वैसे ही झेल रही है जैसे वह तुझे झेल रहा है और वह तो तुझे कितने प्यार से झेल रहा है, जबकि तू कितनी शिकायतें करके, ठिनक-ठिनककर झेल रही है…” सुनकर नैना तुनकी, “मुझे झेल रहा है?”
“और नहीं तो क्या, अगर वह तुम्हारी आदतों के हिसाब से नहीं चलता, तो तुम भी कहां उसकी आदतों के हिसाब से चलती हो, पर वह तुम्हें ऐसे छा़ेडकर नहीं भागा, न ही किसी से तुम्हारी शिकायत करता है.”
“वाह, वो शिकायत क्या करेगा… मेरे बिना उसका एक दिन काम ना चले”
“यह तेरी ग़लतफ़हमी है बिट्टो, तू देखना तेरे बिना भी उसके सब काम आराम से हो जाएंगे.”
“देखना तो आप मौसी, कैसे हर घंटे में कॉल आएगी, यह कहां रखा है… वह कहां रखा है… यह कैसे करूं, वह कैसे करूं…”
“इस ग़लतफ़हमी में मत रहना, जब तेरा ब्याह नहीं हुआ था, तब से जानती हूं उसको, हॉस्टल में रहा, अलग-अलग शहरों में नौकरी की. सालों से अकेले ही सब संभाल रहा था. उसकी मां नहीं जाती थी उसकी गृहस्थी जमाने… जानती है, एक दिन तेरी सास मुझे क्या कह रही थी? ”
“क्या कह रही थी?” नैना के कान खड़े हो गए.
“कह रही थी, रज्जो, तुमने बहू के नाम पर थानेदार पल्ले बांध दी. जब देखो मेरे बेटे के पीछे पड़ी रहती है, उसे नियम-क़ानून सिखाती रहती है. अपने घर में भी चैन से नहीं रह सकता बेचारा. यह तो वही है, जो सब हंसते-हंसते झेल रहा है, फिर भी कभी शिकायत नहीं करता.” सुनकर नैना की त्यौरियां चढ़ गईर्ं मगर चुप रही.
यूं ही मौसी-भांजी की अंतहीन बातों में समय आगे बढ़ता गया, मगर इन दो दिनों में यश का ना कोई मैसेज आया, ना मिस कॉल. नैना का मन वहीं लगा हुआ था, अतः बार-बार फोन चेक कर रही थी. “नहीं आया ना फोन कुछ पूछने के लिए. कर रहा है ना सब ख़ुद. देखा बिट्टो, तुम्हें लगता था वह तुम पर निर्भर है, मगर- असलियत में तो तुम उस पर बुरी तरह निर्भर हो.
“क्या कह रही हो मौसी, आई एम फुली इंडिपेंडेंट.” नैना अकड़ी.
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“अच्छा, सच-सच बताओ, जब से आई हो दो मिनट भी ऐसे गुज़ारे हैं, जो उसके बारे में नहीं सोचा. तुम उस पर इतनी निर्भर हो कि उसके सिवाय न कुछ सोच सकती हो और न देख सकती हो. तुम्हारी पसंद की कढ़ी बनाई थी, मगर तुमने बेमन से खाई, तुम्हारी दी हुई साड़ी पहने हैं और तुमने नोटिस भी नहीं किया.” मौसी शिकायती लहजे में बोलीं. “तुम्हारी पूरी सोच ही उसकी आदतों में उलझकर रह गयी है और देखो वह आराम से यूएस चला गया. मेरे पास फोन आया था कि मैं तुम्हारा ख़्याल रखूं, वह तुम्हें फोन करके डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था.”
सुनकर नैना का दिल रो पड़ा. यश को सज़ा देकर आई थी और अब ख़ुद ही सज़ायाफ्ता बनी बैठी थी. मन भीतर से कसमसा रहा था. यश का मुस्कुराता मासूम चेहरा याद कर उसका अहंकार पिघल रहा था. ख़ुद को कोस रही कि उसे सीऑफ किए बिना यूं ही चली आई. अब महीनाभर कैसे रहेगी उसके बिना…?
मौसी की ममताभरी छांव में दो दिन बिता नैना वापस घर की राह चल पड़ी. अनमने से घर का दरवाज़ा खोला, तो हर तरफ़ यश ही यश खड़ा नज़र आ रहा था. हंसता-मुस्कुराता यश… बातें बनाता यश… नैना ने टेबल पर बैग रखा, तो कुर्सी की बैक पर फैले टॉवल पर नज़र पड़ी. एक स्मृति उभरी, ‘कितनी बार कहा है टॉवेल बालकनी में सुखाया करो’ नैना के ग़ुस्से पर यश का जवाब, ‘क्या कह रही हो जान, पता है यह टॉवेल मुझसे मिन्नतें कर रहा था कि मुझे पूरा दिन बाहर टांगे रखते हो, कितनी गर्मी है बाहर, ज़रा 5 मिनट ख़ुद खड़ा होकर देखो, सूखा अचार बन जाओगे, इसीलिए मैंने उसको यहां डाल दिया, वो भी ख़ुश और मैं भी.’
थोड़ा आगे चली, एक जूता इधर, तो एक जूता उधर पड़ा था. एक और स्मृति कौंधी, ‘जूते एक साथ उतारकर क्यों नहीं रखते?’ भड़कती नेहा और यश की ठंडी बयार-सी बातें, ‘पूरा दिन तो बेचारे साथ ही रहते हैं, घर पर तो उन्हें कुछ स्पेस दो, पता है दोनों शिकायत कर रहे थे कि जब देखो हमें साथ-साथ चिपकाए रखते हो, हमें भी एक-दूसरे से थोड़ा ब्रेक चाहिए. तुमको अपनी बीवी से हर व़क्त चिपके रहना है तो चिपको, पर हमें माफ़ करो…’ उसकी ऐसी ही न जाने कितनी बातों को यादकर नैना भीगी आंखों से मुस्कुरा उठी, अब वे बातें बचकानी नहीं लग रही थीं, प्यार आ रहा था उन पर. मौसी के शब्द कानों में गूंज रहे थे, ‘ऊपरवाला ऐसी उलट जोड़ियां ही बनाता है, जिनमें एक की कमी दूसरा पूरी कर दे और दोनों मिलकर संपूर्ण हो जाएं. परफेक्ट हो जाएं.’
‘आप सही कहती हो मौसी, उनकी जोड़ी भी परफेक्ट बनेगी, वह यश की लापरवाही संभाल लेगी और उससे खिलखिलाते हुए जीना सीख लेगी, सोचते हुए नैना भी मौसी-मौसाजी की तरह समझौता एक्सप्रेस में सवार हो गई, जिसका एक ही स्टॉप था- एक सुखी-आनंदित जीवन.
दीप्ति मित्तल
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