कहानी- साथी हाथ बढ़ाना 1 (Story Series- Sathi Hath Badhana 1)

पार्टी शुरू होने पर मैं जल्द ही दोस्तों में मशगूल हो गया. कुछ ही देर बाद सावित्री का ख़्याल आया, तो पाया वह महिलाओं से घिरी हुई थी. एक दोस्त ने बताया, “भाभी ने तो महिलाओं पर रंग जमा दिया है. कोई गुलाब जामुन बनाना सीख रही है, तो कोई घर सजाना. कोई क्रोशिए का नमूना मांग रही है, तो कोई बाल लंबे करने के उपाय जान रही है.”

मुग्धा के संग बातों में डूबी नेहा को ध्यान ही नहीं रहा कि टिया कब चुपचाप अंदर खिसक ली थी. लॉबी में मुग्धा के ससुर टीवी में आंखें गड़ाए न्यूज़ देख रहे थे. टिया दबे पांव पीछे जाकर सोफे के एक कोने में दुबक गई और गंभीर मुद्रा में आंखें टीवी पर गड़ा दीं. उसके आश्‍चर्य की सीमा नहीं रही, जब कुछ ही पलों में सामने कार्टून शो आने लगा. उसने नज़रें घुमाई, तो मुग्धा के ससुर उसे ही देखकर मुस्कुरा रहे थे.

“आपको मेरे आने का पता चल गया था?” टिया ने आश्‍चर्य से पूछा.

“हां बिल्कुल! मुझे हर आने-जानेवाले की जानकारी रहती है और उसे क्या पसंद है इसकी भी जानकारी रहती है. ये बाल ऐसे ही धूप में स़फेद नहीं हुए हैं. तुम्हारे दादाजी की उम्र का हूं मैं!”

“किससे बतिया रहे हो?” अब तक मुग्धा की सास भी रसोई से चाय लेकर आ गई थी.

“यह कौन है?” उन्होंने अचकचाकर पूछा.

“मुग्धा की सहेली नेहा आई हुई है. उसी की बेटी है.”

“ओह!” मुग्धा की सास फिर से रसोई में चली गईं और उसके लिए कोल्ड ड्रिंक्स और केक लेकर लौटी.

“कौन-सी क्लास में हो बेटी?”

“सेवेन्थ.” टिया ने कोल्ड ड्रिंक्स थामकर ‘थैंक्यू’ कहा.

चाय की चुस्कियों के साथ दोनों पति-पत्नी बातचीत में रम गए थे. टिया का ध्यान कार्टून से ज़्यादा उनकी ओर था.

उधर नेहा का ध्यान बेटी की ओर गया, तो उसे नदारद पाकर वह चौंक उठी. दोनों सहेलियां उसे ढूंढ़ती हुई लॉबी में पहुंच गईं.

“तुम इधर कब आई?” नेहा ने टिया से पूछा.

तभी अंकल-आंटी पर नज़र पड़ी, तो उन्हें देखकर नेहा बोली, “नमस्ते अंकल-आंटी! कैसे हैं आप लोग? टिया, इन दादा-दादी से मिलीं? यह दादा बहुत बड़े साइंटिस्ट थे. इन्होंने डॉक्टरेट, पोस्ट डॉक्टरेट तक कर रखी है.” नेहा ने सगर्व परिचय करवाया.

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“और दादी आपने?” टिया के प्रश्‍न से सब चौंक से गए.

“मैं तो बेटी मात्र पांचवीं पास हूं.”

“फिर दादा ने आपसे शादी कैसे कर ली? और आप दोनों की इतनी अच्छी केमिस्ट्री कैसे है?”

“टिया!” नेहा ने डांटा. वह बेटी के दुस्साहस पर हैरान थी.

“इसे बोलने दो बेटी. बच्चों की जिज्ञासा का समाधान करना चाहिए, न कि उसे डांटकर चुप करा देना चाहिए.” दादा गंभीर हो उठे थे.

“हमारी शादी तो गुड़िया बचपन में ही तय हो गई थी. तब किसे पता था कि ये इतना आगे बढ़ जाएंगे और मैं गंवार ही रह जाऊंगी.” दादी ने समझाया.

“तुम्हारी दादी गंवार नहीं है बेटी. बहुत ही सुशील और सुसंस्कृत है. हालांकि आरंभ में मैं भी इन्हें नहीं समझ पाया था… तुम लोग भी बैठो न!”

नेहा और मुग्धा एक-एक कुर्सी खींचकर विराजमान हो गईं. नेहा की उत्सुक निगाहें अंकल के चेहरे पर जम गई थीं.

“सावित्री यानी तुम्हारी दादी जब गौना होकर आई, तब मेरी नई-नई नौकरी लगी थी. हमारा संयुक्त परिवार था. मैं नौकरी और आगे की पढ़ाई में लगा रहा और सावित्री घर के कामों में. हमारा मिलना रात को ही हो पाता था और वो भी केवल औपचारिक तौर पर और रिश्ता निभाने भर का, क्योंकि मन तो हमारे कोसों दूर थे. मैं सावित्री को ऑफिस की पार्टियों में भी नहीं ले जाता था. जब डॉक्टरेट पूरी हुई, तो घर पर एक शानदार पार्टी रखी गई. मैं बहुत घबरा रहा था. हालांकि इतने बरसों में सावित्री में बहुत परिवर्तन आ गया था. वह बहुत सलीके से रहने-बोलने लगी थी, पर फिर भी मुझे उसे सबसे मिलवाने में हिचकिचाहट हो रही थी.

पार्टी शुरू होने पर मैं जल्द ही दोस्तों में मशगूल हो गया. कुछ ही देर बाद सावित्री का ख़्याल आया, तो पाया वह महिलाओं से घिरी हुई थी. एक दोस्त ने बताया, “भाभी ने तो महिलाओं पर रंग जमा दिया है. कोई गुलाब जामुन बनाना सीख रही है, तो कोई घर सजाना. कोई क्रोशिए का नमूना मांग रही है, तो कोई बाल लंबे करने के उपाय जान रही है.”

मेरे दिमाग़ से मानो बोझ उतर गया था. पहली बार मैंने सावित्री को मन के क़रीब आते महसूस किया. व़क्त के साथ यह दूरी घटती गई. दोनों बच्चे ममता और फिर मनोज इस दूरी को पाटने का सबब बने.

हमारी शैक्षणिक योग्यता की दूरी इसमें कहीं आड़े नहीं आई, बल्कि दिनभर ऑफिस में तर्क और तथ्यों में उलझा दिमाग़ शाम को भावनाओं-संवेदनाओं की शरण में राहत महसूस करता था. मैं सोचता यदि घर पर भी वही वातावरण मिलता, तो मैं पागल हो जाता. कुछ बातें दिमाग़ से नहीं दिल से बेहतर महसूस की जाती हैं और उसके लिए किसी औपचारिक डिग्री की आवश्यकता नहीं है.”

“और यदि दोनों बराबर शिक्षित हों तो?” टिया का अगला प्रश्‍न था.

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“तब तो तालमेल बैठाना और आसान हो जाता है. दिमाग़ी स्तर समान होने पर दोनों एक-दूसरे की व्यस्तता और मजबूरी आसानी से समझ सकते हैं. एक-दूसरे को ऑफिस के काम में मदद कर सकते हैं, अपनी परेशानियां शेयर कर सकते हैं, सुलझा सकते हैं… नेहा बेटी, एक बात माननी होगी, आपकी बेटी अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा समझदार और परिपक्व है.”

      संगीता माथुर

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