कहानी- साथी हाथ बढ़ाना 2 (Story Series- Sathi Hath Badhana 2)

‘वह कितनी भी कोशिश कर ले, पर ममा शायद नहीं समझ पाएंगी कि वह क्या चाहती हैं या शायद जानकर भी अनजान बनी रहना चाहती हैं. ममा क्यूं नहीं समझतीं कि शॉपिंग, घूमने-फिरने से मेरी ज़िंदगी में आया शून्य भर नहीं सकता है. ख़ैर, उनका दिल रखने के लिए ही सही, मुझे उनके साथ जाना होगा.’ टिया की सोच का सिलसिला चलता रहा.
कौन किसका दिल रख रहा था इस भ्रम में रहते हुए ही अगले दिन दोनों साथ-साथ हो ली थीं.

“थैंक्यू अंकल! टिया अब घर चलते हैं. बहुत देर हो गई है.”
मुग्धा बाहर तक छोड़ने आई, तो उसने अपनी सहेली की तारीफ़ों के पुल बांध दिए.
“तुझमें ग़ज़ब की हिम्मत और समझदारी है नेहा! घर-बाहर की ज़िम्मेदारियां तो संभाल ही रही हो, सिंगल पैरेंट की ज़िम्मेदारी भी बख़ूबी निभा रही हो. यह तेरा ही मार्गदर्शन है, जो टिया इतनी समझदार और ज़िम्मेदार हो गई है.”
“तुम लोगों का ऐसा ही सहयोग और समर्थन मिलता रहे बस…” नेहा मुग्धा का हाथ थामकर गाड़ी की ओर बढ़ ली. पूरे रास्ते ड्राइव करते वह अपने ही ख़्यालों में खोई रही. अमन से तलाक़ का केस अदालत में चल रहा था. दोनों आपसी सहमति से अलग हो रहे थे. अतीत की यादें आरंभ में मधुर, लेकिन बाद में कड़वाहट भरी थीं. दोनों सुशिक्षित और पेशे से इंजीनियर थे. एक ही कंपनी में होने के कारण रोज़ का मिलना-जुलना शीघ्र ही प्रणय संबंधों में रूपांतरित हो गया. विजातीय होने के कारण घरवालों का सहयोग नहीं मिला, लेकिन फिर भी दोनों ने कुछ दोस्तों के सहयोग से कोर्ट मैरिज कर ली. प्यार की ख़ुमारी में दोनों डूब गए थे. नन्हीं-सी कली टिया आंगन में आई, तो दोनों धन्य-धन्य हो गए. अमन के तो मानो टिया में प्राण बसते थे.

पूरी गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान अमन ने नेहा की ख़ूब देखभाल की. समस्या आरंभ हुई नेहा के फिर से ऑफिस जॉइन करने के बाद से. तब भी समस्या इतनी गंभीर नहीं थी. नेहा ने थोड़े कम पैकेज पर पास का ही एक दूसरा ऑफिस जॉइन कर लिया था. नेहा जाते व़क्त सामान सहित टिया को क्रेच में छोड़ जाती थी और अमन आते व़क्त उसे ले आता था. लेकिन इधर समय के साथ-साथ दोनों की ऑफिस की ज़िम्मेदारियां बढ़ती जा रही थीं और उधर टिया का स्कूल जाना आरंभ कर देने पर उसकी ज़िम्मेदारियां भी बढ़ती जा रही थीं. दोनों थके-थके और चिड़चिड़े से रहने लगे थे. ऑफिस से झिड़की सुनकर आते, तो ग़ुस्सा घर लौटकर एक-दूसरे पर उतारते.

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टिया की स्कूल रिपोर्ट ख़राब आती, तो परस्पर दोषारोपण करने लग जाते. उनके झगड़ों का सीधा असर टिया पर पड़ रहा था. उसका न केवल पढ़ाई से मन उचटने लगा, बल्कि स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा था. अमन और नेहा का प्रमोशन ड्यू था और दोनों हर हाल में इसे जल्द से जल्द पा लेना चाहते थे. लेकिन घरेलू ज़िम्मेदारियां रोज़ ही कोई न कोई अड़चन खड़ी कर देतीं. टिया गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. उस पर अमन का 15 दिन का ऑफिशियल टूर आ गया. नेहा ने उसे टूर पर न जाने की सख़्त हिदायत दे दी, पर अमन के प्रमोशन के लिए यह टूर अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए वह नहीं रुका. ज़िद में आकर नेहा ने भी छुट्टी नहीं ली. परिणाम भुगतना पड़ा मासूम टिया को, वो बीमार पड़ गई. उसे आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ा.

नेहा ने रात-दिन लगाकर टिया की देखभाल की, पर इस चक्कर में प्रमोशन किसी और को चला गया. चोट खाई नेहा ने तभी निश्चय कर लिया था कि अब उसके और अमन के रास्ते हमेशा के लिए अलग-अलग हो जाएंगे. लौटने के बाद अमन ने नेहा को मनाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. लंबे अरसे तक एक ही छत के नीचे दोनों अजनबी की भांति रहते रहे. आख़िर दोनों ने सहमति से तलाक़ की अर्ज़ी दे दी. अमन उसी दिन से बोरिया-बिस्तर लेकर अलग हो गया था.
घर आ गया, तो नेहा की विचार शृंखला भी सिमटकर वर्तमान में लौट आई. उसे अफ़सोस हुआ पूरे रास्ते उसने बेटी से कोई बात नहीं की. वीकेंड ही तो मिलता है दोनों को बात करने का, साथ व़क्त गुज़ारने का.
“टिया, हम कल मॉल चलते हैं. ख़रीददारी भी हो जाएगी और घूमना-फिरना भी.”
टिया यंत्रवत् गर्दन हिलाकर अपने कमरे में चली गई.
‘वह कितनी भी कोशिश कर ले, पर ममा शायद नहीं समझ पाएंगी कि वह क्या चाहती हैं या शायद जानकर भी अनजान बनी रहना चाहती हैं. ममा क्यूं नहीं समझतीं कि शॉपिंग, घूमने-फिरने से मेरी ज़िंदगी में आया शून्य भर नहीं सकता है. ख़ैर, उनका दिल रखने के लिए ही सही, मुझे उनके साथ जाना होगा.’ टिया की सोच का सिलसिला चलता रहा.
कौन किसका दिल रख रहा था इस भ्रम में रहते हुए ही अगले दिन दोनों साथ-साथ हो ली थीं. शॉपिंग करते हुए ही एक पुरानी पड़ोसन मिसेज़ खन्ना टकरा गईं, तो नेहा ने उनका मुस्कुराकर अभिवादन किया.
इधर-उधर की बातचीत के बाद दोनों ने एक-दूसरे को घर आने का निमंत्रण देते हुए विदा ली. जाते-जाते आंटी ने टिया को चॉकलेट भी ख़रीदकर दी.

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“ये तो वही आंटी थीं न, जिनसे आपकी लड़ाई हो गई थी. फिर अभी आप इनसे इतना हंसकर बात क्यों कर रही थीं? और घर आने का निमंत्रण क्यों दे रही थीं?” टिया चॉकलेट पाकर भी मानो ख़ुश नहीं थी. ममा का व्यवहार उसे उलझन में डाल रहा था.
लेकिन नेहा को बेटी को कुछ सीख देने का एक और सुअवसर मिल गया था.

        संगीता माथुर

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