कहानी- साथी हाथ बढ़ाना 3 (Story Series- Sathi Hath Badhana 3)

“कोई आपके साथ बुरा बर्ताव कर रहा है, आप आहत हो रहे हैं, तो तुरंत उसकी अच्छाइयों को याद करना आरंभ कर दो. उसने कभी तो आपके साथ सद्व्यवहार किया होगा. उसे मन ही मन दोहराओ. तुरंत अंदर कुछ पिघलने लगेगा और आप एक आत्मघाती निर्णय लेने से बच जाएंगे.”

“ममा, क्या पापा ने आपके साथ सद्व्यवहार नहीं किया? क्या वे पूरी तरह एक बुरे इंसान हैं? हमें क्या दूसरों की ग़लतियों को ही नज़रअंदाज़ करना सीखना चाहिए, अपनों की ग़लतियों को नहीं?” टिया की प्रतिक्रिया सर्वथा अप्रत्याशित थी.

अपनी प्रिय सखी मुग्धा द्वारा कल की गई प्रशंसा से वह अभी तक आत्ममुग्ध थी. चलो, इसी बहाने वह बिटिया को दुनियादारी का एक और पाठ पढ़ाकर अपनी समझदारी का सिक्का जमा लेगी.

“हां, ये वही खन्ना आंटी हैं, जिनकी चुगलखोरी की आदत की वजह से मैं इनसे नाराज़ हुई थी. पर बेटी, दुनियादारी में किसी से ज़्यादा समय तक नाराज़गी बनाए रखना बुद्धिमानी नहीं मानी जाती. फिर कोई भी इंसान न पूरी तरह अच्छा होता है और न ही पूरी तरह बुरा. तुम्हें शायद याद नहीं होगा तुम तब बहुत छोटी थी. एक कुत्ते ने तुम्हें काट लिया था. सबसे पहले इन आंटी ने तुम्हें देखा और फटाफट अपनी स्कूटी पर आगे बिठाकर तुम्हें अस्पताल ले भागी थीं. मुझे बाद में पता चला. मैं अस्पताल पहुंची, तब तक तो सारा उपचार हो चुका था. एक-दो बार मैंने इन्हें फोन कर आवश्यक दवा भी मंगवाई थी. इनकी चुगलखोरी से मैं आहत अवश्य हुई थी और कुछ समय के लिए बोलचाल भी बंद कर दी थी, पर अब देखो, अभी मैंने आगे बढ़कर बात की, तो वे भी प्रेम से मिलीं. तुम्हें चॉकलेट दिलवाई और घर आने का निमंत्रण भी दिया. आप किसी की तरफ़ यदि दोस्ती का एक हाथ बढ़ाओगे, तो वह आगे बढ़कर आपके दोनों हाथ थाम लेगा. इसलिए किसी से भी अपनी दुश्मनी को दोस्ती में बदलने से हिचकिचाओ मत. आप हाथ पकड़ोगे, तो वह बदले में हाथ ही पकड़ेगा, गला नहीं.”

टिया को गंभीर मुद्रा में सोचते देख नेहा प्रसन्न हो उठी.

‘मतलब बेटी पर उसकी बातों का असर हो रहा है. वह दुनियादारी समझ रही है.’ उसने समझाइश को आगे और विस्तार देने का प्रयास किया.

“कोई आपके साथ बुरा बर्ताव कर रहा है, आप आहत हो रहे हैं, तो तुरंत उसकी अच्छाइयों को याद करना आरंभ कर दो. उसने कभी तो आपके साथ सद्व्यवहार किया होगा. उसे मन ही मन दोहराओ. तुरंत अंदर कुछ पिघलने लगेगा और आप एक आत्मघाती निर्णय लेने से बच जाएंगे.”

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“ममा, क्या पापा ने आपके साथ सद्व्यवहार नहीं किया? क्या वे पूरी तरह एक बुरे इंसान हैं? हमें क्या दूसरों की ग़लतियों को ही नज़रअंदाज़ करना सीखना चाहिए, अपनों की ग़लतियों को नहीं?” टिया की प्रतिक्रिया सर्वथा अप्रत्याशित थी.

उसका हर सवाल नेहा के गाल पर तमाचे की भांति लगा था. समझदार और ज़िम्मेदार मां का मुखौटा एक क्षण में धरती पर औंधे मुंह गिरा था. नेहा स्तब्ध टिया को निहार रही थी. टिया शांत थी, लेकिन यह शांति वैसी ही थी जैसी समुद्र में भयंकर उथल-पुथल मचने के बाद किनारे की लहरों की हो जाती है. अब न किसी का शॉपिंग का मन कर रहा था, न घूमने व खाने-पीने का. मन तो ख़ैर पहले भी नहीं था. पर अब साथ देने की दिखावटी औपचारिकता का आवरण भी हट गया था. क्षुब्ध मन से दोनों ने घर की राह पकड़ ली थी.

टिया व्यथित थी कि उसने इतना देखभाल करनेवाली, हर क़दम पर खड़ी रहनेवाली मां का दिल दुखाया. नेहा दुखी थी यह सोचकर कि वह बेटी के दिल में पिता की खाली हुई जगह न भर सकी. मां-बेटी ने बेमन से थोड़ा-बहुत खाया और अपने-अपने बिस्तरों पर पड़ गईं. टिया का एक-एक सवाल नेहा के सीने में तीर की भांति धंस गया था. उसके आहत से हृदय में पहले अतीत के वे पल उभरेे, जब अमन ने अपना एकतरफ़ा निर्णय उस पर थोपकर उसे पीड़ा पहुंचाई थी. लेकिन उसके बाद अतीत की रील घूमना आरंभ हुई, तो अमन की एक के बाद एक अच्छाइयां आंखों के सामने आती चली गईं. बारिश में नेहा के इंतज़ार में भीगता, घरवालों के विरोध से क्षुब्ध नेहा को ढा़ंढस बंधाता, कोर्ट में उसे प्यार से वरमाला पहनाता, घर के कामों में उसकी मदद करता, उसकी प्रसूति के दौरान रातभर जागता, घोड़ा बनकर टिया को सवारी कराता.

“बस” नेहा ने घबराकर आंखें खोल दीं. उसे और टिया को इतना प्यार करनेवाले अमन को अपने से दूर कर वह बहुत बड़ी ग़लती करने जा रही थी. हम परायों की ग़लतियां माफ़ कर उदार होने का ढोंग रचते हैं. अपनों के सद्व्यवहार को अपना अधिकार मान सामान्य बने रहते हैं, पर जैसे ही अपने कोई ग़लती करें, तो उसकी मन में गांठ बांध ढोते चले जाते हैं. फिर चाहे वह बोझ उठाना कितना ही दुश्‍वार क्यों न हो जाए? कंधे लटक जाएं, पर गर्दन अकड़ी रहनी चाहिए. टिया उन दोनों के प्यार की निशानी है. उसे दोनों में से किसी के भी प्यार से महरूम रखना उसके साथ कितनी बड़ी नाइंसाफ़ी है, यह छोटी-सी बात वह अब तक क्यों नहीं समझ पाई? समझती कैसे? आंखों पर अहंकार की पट्टी जो लगी थी. लेकिन अब जब पट्टी उतर गई है, तो उसे आगे बढ़कर अमन का हाथ थाम लेना चाहिए? कहीं उसने दुत्कार दिया या मखौल बनाया तो? छीः कैसी अजीब सोच है तेरी नेहा! मिसेज़ खन्ना की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाते तू एक बार भी नहीं झिझकी और अब… जिस पर अधिकार समझती है, उस पर ऐतबार तो कर! याद है टिया को क्या सीख दी थी- हाथ बढ़ाएगी, तो सामनेवाला हाथ ही पकड़ेगा, गला नहीं.

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हाथ बढ़ाने के निश्‍चय के साथ नेहा के क़दम स्वतः ही टिया के कमरे की ओर बढ़ गए.

 

       संगीता माथुर

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