“छड़ी पड़े छमछम विद्या आए धमधम…..” तभी रोहन बुदबुदाया, फिर कुछ सोचते हुए बोल पड़ा, “… यही पुराना तरीका ठीक था…. आजकल के मां-बाप ओव्हर केयरिंग हो गए हैं, ज़्यादा देखभाल और मान-मनुहार होती है तभी तो बच्चे सर चढ़ बैठते हैं. मैंने तुमसे पहले ही कहा था रिया कि केवल प्यार और पुचकार से काम नहीं चलेगा, पर तुम भी न जाने कहां से इस चाइल्ड सायकोलॉजी की पूंछ पकड़कर बैठ गई…”
‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो.’ बचपन से अम्मा-बाउजी से सुनता आया था रोहन, पर आज इस उपदेश के अनेक विरोधाभास रह-रहकर उसके मन में उभर रहे थे.
आख़िर कहां कमी रह गई उसे कर्मों-कर्त्तव्यों के परिपालन में. रोहन के विचारों की तरह उसकी कार भी तेज़ गति से सड़क पर दौड़ रही थी. आज द़फ़्तर के लिए निकलते-निकलते वह काफी लेट हो गया था. पिछले दो दिनों से रोहन व रिया में गर्मागर्म बहस चल रही थी. दोनों ही काफी तनाव में थे. कारण था वही एक मात्र उनका तेरह वर्षीय इकलौता पुत्र ‘दक्ष’.
पिछले दो-तीन वर्षों से लगातार दक्ष रोहन व रिया के लिए समस्या बनता जा रहा था. बचपन से कुशाग्र बुद्धि का उनका यह इकलौता लाड़ला. पिछले कुछ समय से लगातार पढ़ाई में पिछड़ता जा रहा था. परंतु इस वर्ष तो हद ही हो गई….. छः में से चार विषयों में फेल था.
ऐसे परिणाम की तो रिया व रोहन दोनों को ही अपेक्षा नहीं थी. दक्ष का पिछले कुछ समय से पढ़ाई से म उचट रहा है यह तो वे समझ रहे थे, परंतु वह इस क़दर नाक़ामयाब रहेगा यह तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था.
जब से दक्ष का आठवीं कक्षा का नतीजा घोषित हुआ तभी से रिया व रोहन के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी था. दक्ष की नाक़ामयाबी के लिए रोहन व रिया दोनों ही एक-दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे.
कितनी उम्मीद के साथ तीनों स्कूल में परिक्षा-परिणाम देखने पहुंचे थे, परंतु दक्ष की असफलता से रिया व रोहन दोनों के ही होश उड़ गए थे. रिया तो परिणाम देखते ही रूआंसी हो गई थी और रोहन आगबबूला. दक्ष का चेहरा तो भय से पीला पड़ गया था.
रोहन के तेवर देख दक्ष के साथ रिया भी सहम गई थी. रोहन के तेज़ गति से गाड़ी चलाने के अंदाज़ से ही उसके मन की उत्तेजना का अंदाज़ लगाया जा सकता था. वैसे भी रोहन शॉर्ट-टेम्पर्ड था….. ज़रा-ज़रा सी बात में उसका ग़ुस्सा भड़क उठता था. कहीं गुस्से के मारे गाड़ी पर से संतुलन न खो बैठे यही सोचकर रिया भी चुप्पी साधे बैठी रही.
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“छड़ी पड़े छमछम विद्या आए धमधम…..” तभी रोहन बुदबुदाया, फिर कुछ सोचते हुए बोल पड़ा, “… यही पुराना तरीका ठीक था…. आजकल के मां-बाप ओव्हर केयरिंग हो गए हैं, ज़्यादा देखभाल और मान-मनुहार होती है तभी तो बच्चे सर चढ़ बैठते हैं. मैंने तुमसे पहले ही कहा था रिया कि केवल प्यार और पुचकार से काम नहीं चलेगा, पर तुम भी न जाने कहां से इस चाइल्ड सायकोलॉजी की पूंछ पकड़कर बैठ गई…. एक तीखी व्यंग्यभरी मुस्कान रिया पर डालते हुए रोहन ने ग़ुस्से से गर्दन झटकी, “….बच्चों को ऐसे ट्रीट करो, वैसे ट्रीट करो… अब देखा नतीजा? ये सब तुम्हारा किया धरा है रिया…. समझी?” रोहन ने भौहें नचाकर आवेश के साथ कहा, तब तक गाड़ी घर के सामने आ चुकी थी.
दक्ष के नतीजे से रिया भी चिंतित व व्यथित थी, पर इस व़क़्त सबसे ़ज़्यादा ग़ुस्सा उसे रोहन पर आ रहा था. सीधे-सीधे स्वयं पर लगे आक्षेप से वह तिलमिला गई….. साथ मिल-बैठकर समस्या पर चर्चा कर हल निकालना तो दूर, रोहन ने तो दक्ष की असफलता के लिए एक झटके में उसे ज़िम्मेदार ठहरा दिया.
घर के अंदर पहुंचते ही दक्ष की तो जैसे शामत आ गई. अब तक रोहन ने दक्ष को सीधे-सीधे कुछ नहीं कहा था. बाहर सार्वजनिकता के लिहाज से शांत था, परंतु घर पहुंचते ही मन की भड़ास विस्फोटक रूप में बाहर निकलने लगी.
“अब क्या विचार है साहबजादे का?” रोहन दहाड़ा. पिता की रोैबीली आवाज़ से सिलबिलाकर दक्ष अपराधबोध से जकड़ा ज़मीन पर नज़रें गड़ाए वहीं जड़ सा खड़ा रहा.
“…. और किस चीज़ की कमी रह गई साहबजादे की सेवा में बता दीजिए…. तो वह भी ख़िदमत में हाज़िर हो जाएगी….” रोहन का व्यंग्य कड़वाहट उगलने लगा….” ….कंप्यूटर कहा. वो आ गया घर में. कोचिंग क्लास दूर है. स्कूल व कोचिंग क्लास जाते-जाते थक जाते हैं नवाबजादे इसलिए मनचाही गाड़ी दिलवा दी. जब जो चाहा सामने हाज़िर हो गया….. फिर भी नतीजा क्या रहा? सिफर…!!!”
“अब बस भी कीजिए..” रिया ने रोहन को शांत करने के उद्देश्य से कहा”…. जो हो गया उस पर बहस करने की बजाय हमें आगे के लिए सोचना चाहिए….”
“तुम इसी तरह अपने लाड़ले की वकालत करती रही तो आगे के लिए कुछ सोचा जाना संभव नहीं है…..” रोहन ने उखड़ कर कहा.
“अब मैंने क्या वकालत की उसकी? जो सही है वही तो कह रही हूं. कंप्यूटर और गाड़ी दिलवा दी हमने तो कौन सी बड़ी बात हो गई… आजकल तो ये चीज़ें आम हैं… हर बच्चे के पास होती हैं…”
“तभी तो महाशय को इनका महत्व नहीं समझ में आया….” रोहन ने रिया को बीच में ही टोक दिया.
स्निग्धा श्रीवास्तव
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