कहानी- सुपर किड 5 (Story Series- Super Kid 5)

“आपने कभी दक्ष के मन की टोह न लेकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी है….” कुछ रूककर सोचते हुए डॉ. प्रवीण बोले, “… खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है… दक्ष एक क़ामयाब इंसान बन सकता है बशर्ते आप उसे एक स्वतंत्र इकाई समझें…. उसे दक्ष की ज़िंदगी जीने दें…. उसे अपने टूटे सपनों को पूरा करने का माध्यम भर न समझें तो…” डॉ. प्रवीण के मुंह से सारी बातें जानकर रिया व रोहन दोनों ही चकित थे और उससे भी ज़्यादा लज्जित!

फिर मुस्कुराकर कुछ सहज होते हुए बोले, “आपको पता है दक्ष ने मुझे क्या-क्या बताया. यही कि पापा-मम्मी मुझे तो रोज़ सुबह उठते ही नहा-धोकर योग करने को कहते हैं, गायत्रीमंत्र का जाप और रामायण पाठ करने को कहते हैं, पर आपको पता है अंकल, पापा तो बिना ब्रश किये बेडटी पी लेते हैं. कभी-कभी तो ऑफ़िस को देर हो जाती है, तब जूते पहनकर ही पूजा-घर में घूस जाते हैं और मम्मी तो ख़ुद बारा बजे से पहले कभी नहीं नहाती…..”

रोहन व रिया दोनों ही डॉ. प्रवीण की बातें सुनकर निःशब्द हो गए. कहीं तो वे दक्ष में सुधार को लेकर डॉक्टर से परामर्श लेने आए थे और डॉक्टर ने तो उन्हें ही ग़लत सिद्ध कर दिया.

पर डॉ. प्रवीण कुछ ग़लत भी तो नहीं कर रहे थे. अब रिया व रोहन दोनों ही ये महसूस कर रहे थे… हम लोग ही न जाने कैसे मां-बाप होने श्रेष्ठता के दंभ में अपनी त्रुटियों को नज़रअंदाज़ कर केवल बच्चे पर चील की तरह नज़रें गड़ाए बैठे थे, ताकि वह जैसे ही कोई ग़लती करे तो हम तुरंत उसके सुधार में जुट जाए…. एक ‘सुपर किड्’ के निर्माण की प्रक्रिया में, पर इस धुन में यह भूल ही गए कि हमें भी तो पहले ‘सुपर पेरेन्ट्स’ बनना पड़ेगा.

रिया व रोहन को विचारों में खोया देखकर डॉ. प्रवीण बोले- “आप तो भाग्यशाली हैं रोहन जी कि आपके बेटे में कई अद्भुत योग्यताएं है जिन्हें अब तक आप नज़रअंदाज़ करते रहे हैं. आपके बेटी के सोच बिल्कुल एक दार्शनिक की तरह है… साहित्य व संगीत में वह रूचि रखता है…. भारत के इतिहास तथा विश्‍व की भौगोलिक स्थितियों को जानने के लिए अति जिज्ञासु है वह…. देशसेवा के भाव उसके मन में हैं…. बड़े होकर आई.ए.एस. ऑफ़िसर बनने की दबी-घुटी चाह है मन में…. पर जब से आपने उसे अपने अभाव भरे अतीत व इस कारण इंजीनियर बनने के टूटे सपने के बारे में बताकर ये जताया कि ये सपना अब उसे पूरा करने है… ये सारी सुविधाएं उसी टूटे सपने को पूरा करने की ख़ातिर है, तब से वह अनजाने भय के दबाव में जीने लगा कि कहीं यह सपना पूरा न कर पाया तो वह गुनहगार बन जाएगा. अपनी स्वाभाविक रूचि के विरुद्ध जाकर भला कोई कैसे क़ामयाब हो सकता है. बार-बार की नाक़ामयाबी से वह स्वयं तनाव में आ गया है. इस तनाव की निरंतरता से तो वह अपनी वास्तविक क्षमता व आत्मविश्‍वास भी खोता जा रहा है. जिसे समय रहते बचाना बहुत ज़रूरी है.

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“आपने कभी दक्ष के मन की टोह न लेकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी है….” कुछ रूककर सोचते हुए डॉ. प्रवीण बोले, “… खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है… दक्ष एक क़ामयाब इंसान बन सकता है बशर्ते आप उसे एक स्वतंत्र इकाई समझें…. उसे दक्ष की ज़िंदगी जीने दें…. उसे अपने टूटे सपनों को पूरा करने का माध्यम भर न समझें तो….”

डॉ. प्रवीण के मुंह से सारी बातें जानकर रिया व रोहन दोनों ही चकित थे और उससे भी ज़्यादा लज्जित! अपने सपने… अपनी आकांक्षाएं पूरी करने के जुनून में वे दक्ष को सुपर किड बनाने में तो जुट गए पर यह नहीं सोच पाए कि दक्ष केवल उनकी ज़िंदगी का हिस्सा भर नहीं है… वह भी एक स्वतंत्र इंसान है जिसे अपनी इच्छा से सपने चुनने का अधिकार है. मां-बाप का काम बच्चों पर सपने लादना नहीं, बल्कि बच्चों के सपनों को पूरा करने में उनके मार्गदर्शक की भूमिका निभाना व सहयोगी की तरह उनकी मदद करना होता है.

“डॉ. प्रवीण, हम सचमुच महाभूल कर बैठे थे… हम वादा करते हैं कि दक्ष को ‘दक्ष’ बनाएंगे पर उसकी इच्छानुसार, उसके सपने के अनुरूप…..” रोहन ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा तो रिया की आंखों में भी गहरे भाव उतर आए… रोहन की ओर मुखातिब होर रिया शरारत से मुस्कुरा दी और बोली- “अब समझे, छड़ी पड़े छमछम… वाला ज़माना नहीं रहा.”

डॉ. प्रवीण का धन्यवाद कर दोनों ही खिलखिलाते हुए चिंतामुक्त होकर बाहर निकल पड़े….. नई राह पर… नए ‘सुपरकिड’ के निर्माण के लिए.

 

स्निग्धा श्रीवास्तव

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