कहानी- सुज़ैन 3 (Story Series- Suzanne 3)

“कुछ नहीं किया मामी…” वह बेशर्मी से हंसता हुआ बोला, “ज़रा-सी हंसी-मज़ाक में भी साली नाटक करती है. अपने देश में आए दिन बॉयफ्रेंड और हसबैंड बदलती रहती हैं. समुद्र के किनारे नंगे पड़े रहती हैं. सड़क पर चलते-चलते प्रेमालाप करती हैं. खुले सेक्स के आदी हैं और हमारे देश में आकर, लाजवंती बनने में हमारे देश की लड़कियों को भी मात कर देती हैं…”

“सूरज…” मैंने ग़ुस्से में चीखकर एक ज़ोर का चांटा उसके दाएं गाल पर जड़ दिया इतनी ज़ोर से कि उसकी आंखों के आगे सितारे नाच उठे होंगे.

“शर्म नहीं आती तुम्हें. उनके देश में कुछ भी होता है, पर जो कुछ होता है उनकी इच्छा से होता है. अपनी इच्छा और दूसरे की ज़बर्दस्ती में फ़र्क़ नज़र नहीं आता तुम्हें, पर तुम जैसे पुरुष नारी की इच्छा का सम्मान करना क्या जानो?

“सुज़ैन…” मैंने ज़ोर से सुज़ैन को आवाज़ दी. मेरी आवाज़ सुनकर शायद पकड़ ढीली होने के कारण सुज़ैन एकाएक छूटकर चिल्लाती हुई भागी, “रैमा…”

वह सीढ़ियों से भागती-दौड़ती उतरकर नीचे मेरे पास आकर मेरे गले से चिपक गई. उसकी सांसें बहुत ज़ोरों से चल रही थी और बदन डर से थर-थर कांप रहा था.

“कौन है ऊपर?” मैं पूरी ताक़त से चीखी, “जो भी है नीचे आ जाओ, वरना मैं अभी शोर मचा दूंगी.”

तभी सूरज के दोनों दोस्त तेज़ी से सीढ़ी उतरकर बाहर निकलकर गायब हो गए. मैं भौंचक्की-सी उन्हें देखती रह गई. ये दोनों ऊपर थे, तो इसका मतलब सूरज भी अवश्य ही ऊपर होगा.

“सूरज, नीचे आ जा… तेरी ख़ैरियत इसी में है, वरना तू मुझे जानता है. मैं शादीवालेे घर में हंगामा कर दूंगी. सबके सामने तेरी बेइज़्ज़ती हो जाएगी.”

सूरज धीरे-धीरे सीढ़ी उतरकर मेरे सामने खड़ा हो गया. उसे देखकर सुज़ैन मुझसे और भी चिपक गई.

“सच-सच बता… क्या किया तूने इसके साथ?”

“कुछ नहीं किया मामी…” वह बेशर्मी से हंसता हुआ बोला, “ज़रा-सी हंसी-मज़ाक में भी साली नाटक करती है. अपने देश में आए दिन बॉयफ्रेंड और हसबैंड बदलती रहती हैं. समुद्र के किनारे नंगे पड़े रहती हैं. सड़क पर चलते-चलते प्रेमालाप करती हैं. खुले सेक्स के आदी हैं और हमारे देश में आकर, लाजवंती बनने में हमारे देश की लड़कियों को भी मात कर देती हैं…”

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“सूरज…” मैंने ग़ुस्से में चीखकर एक ज़ोर का चांटा उसके दाएं गाल पर जड़ दिया इतनी ज़ोर से कि उसकी आंखों के आगे सितारे नाच उठे होंगे.

“शर्म नहीं आती तुम्हें. उनके देश में कुछ भी होता है, पर जो कुछ होता है उनकी इच्छा से होता है. अपनी इच्छा और दूसरे की ज़बर्दस्ती में फ़र्क़ नज़र नहीं आता तुम्हें, पर तुम जैसे पुरुष नारी की इच्छा का सम्मान करना क्या जानो? लेकिन आज अपनी बहन के विवाह में आई हुई मेहमान, वो भी दूसरे देश से, तुम्हारी इस हरकत ने न स़िर्फ पूरे परिवार को, बल्कि देश को भी शर्मसार कर दिया है. कम से कम देश की इज़्ज़त का ख़्याल तो किया होता…

“तुम चाहते हो कि मैं इस बात को लेकर घर में हंगामा न करूं, तो इन विदेशी मेहमानों के जाने तक तुम तीनों मुझे घर में नज़र नहीं आने चाहिए.” मैं भस्म करनेवाली आग्नेय दृष्टि से उसे घूरती हुई बोली. सूरज गाल पर हाथ रखकर चला गया. मैंने सुज़ैन को कमरे में ले जाकर बिस्तर पर बैठाकर पानी पिलाया. वह रोते-रोते लगातार बोल रही थी, “मैं पुलिस में जाऊंगी… छोडूंगी नहीं उन तीनों को…” उसे गले से लगाए पीठ सहलाते हुए मैं सांत्वना दे रही थी और मन ही मन मना रही थी कि कोई इस समय अंदर न आ जाए. थोड़ी देर बाद सुज़ैन रोकर शांत हो गई. फिर मैं धीरे-धीरे उसे समझाने लगी कि यदि वह इस समय इस बात को बढ़ाएगी, तो घर में बारात है, पूरे परिवार व दुल्हन की ज़िंदगी पर इस बात का क्या असर पड़ सकता है. दुल्हन के भाई की करतूत की सज़ा मानसिक रूप से सबको भुगतनी पड़ेगी.

“सूरज को सज़ा देने की बात तुम मुझ पर छोड़ दो सुज़ैन. तुम्हारे साथ जो अभद्रता उसने की है, उसकी सज़ा पुलिस व क़ानून उसको उतना नहीं दे पाएगा, जो उसका परिवार उसे देगा. मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूं सुज़ैन…” मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए.

“नो… नो रैमा…” उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए. तभी ऊली सुज़ैन को ढूंढ़ता हुआ अंदर आ गया. हमें ऐसे बैठा देखकर पूछ बैठा.

“क्या हुआ?” मैं अचकचाकर सुज़ैन को देखने लगी. अब सब कुछ सुज़ैन पर निर्भर था कि आगे आनेवाला घटनाक्रम क्या होगा.

“कुछ नहीं…” वह मुस्कुराती हुई बोली,

“मैं बिल्ली से डरकर सीढ़ी से गिर गई थी, बस…”

“ओह! बाहर आ जाओ आप लोग.”

“अभी आते हैं.” ऊली चला गया. मेरी आंखों में आंसू आ गए. सूरज को अपनी बहन, अपने परिवार, अपने देश की मान-मर्यादा का ख़्याल नहीं रहा और एक विदेशी लड़की ने, जो यहां से जाने के बाद कभी हमें मिलेगी भी या नहीं, कैसे मेरी बात का मान रखकर हम सबको भविष्य में आनेवाली एक अप्रिय स्थिति से बचा लिया था. मैंने सुज़ैन को गले से लगा लिया.

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शादी शांतिपूर्वक संपन्न हो गई. दूसरे दिन एक-एक करके सभी रिश्तेदार विदा होने लगे. सुज़ैन और ऊली के भी जाने का समय हो गया. ऊली ने अपना कैमरा निकाला और हम सबके साथ फोटो खींच ली. उनका हमारा नाता स़िर्फ एक इंसान का इंसान से नाता था, जिन्होंने इस धरती पर जन्म लिया था. प्यार, स्नेह, भावनाएं, इंसानियत कुछ भी देश की सीमाओं में बंधा हुआ नहीं होता. चाहे वह हमारे पड़ोसी देश हों या सात समंदर पार के देश. जब एक इंसान दूसरे इंसान से प्यार करता है, तो किसी भी देश की सीमाएं मिट जाती हैं. ऐसा न होता तो अलग देश, धर्म, भाषा, रंग-रूप होते हुए भी हमारा दिल सुज़ैैन और ऊली को विदा करते समय यूं न रोता और उनकी आंखें भी न भीगतीं.

कार काफ़ी दूर चली गई. सुज़ैन पीछे देखकर देर तक हाथ हिलाती रही और हम हाथ हिलाते हुए अपनी नम आंखों को पोंछते रहे. मेरी आंखों से आंसू निकलकर गालों पर लुढ़क गए. इन आंसुओं में सुज़ैन से बिछड़ने के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ था. बहुत-सी अप्रिय घटनाओं का टल जाना. सुज़ैन का सकुशल वापस चले जाना आदि.

गालों पर गीलापन होने से मैं वर्तमान में लौट आई. सुज़ैन और ऊली एक मीठी याद के रूप में मेरे अतीत का एक हिस्सा बन गए थे. कभी नहीं सोचा था कि आज फिर दुबई में उनसे मुलाक़ात हो जाएगी. ज़िंदगी बहुत छोटी है और दुनिया गोल है. हो सकता है फिर कभी, कहीं, किसी मोड़…पर सोचकर मैं भी उठकर सोने के लिए बेडरूम की तरफ़ चली गई.

सुधा जुगरान

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