कहानी- स्व का विस्तार 2 (Story Series- Swa Ka Vistar 2)

बच्चे की सिसकियां अचानक बंद हो गईं और वीना की आंखों के सामने रोकर चुप हुए अपने बच्चों की जाने कितनी मधुर तस्वीरें कौंध गईं. रोता हुआ बच्चा जब चुप होकर मुस्कुराने लगता है, तो कुहासा तोड़कर निकली सर्दियों की सुखद धूप-सा सुकून मिलता है. उनके सीने में धड़कते मां के दिल ने इस सुकून का स्वाद बहुत दिन बाद चखा था. इसे जी ही रही थीं कि बच्चे ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

“मेरे मम्मी-पापा मुझे प्यार नहीं करते.” वीना को स्नेह सिंचित आवाज़ ने जैसे पानी को रोकने के लिए सायास बांधी गई कोई मेड़ तोड़ दी. वो बच्चा इतना बोलकर तेज़ स्वर में रोने लगा. वीना की आंखों के आगे गहरी चोट लग जाने पर मुंह फैलाकर रोते अपने बच्चों और नाती-पोतों के जीवन की जाने कितनी तस्वीरें कौंध गईं. जिन बच्चों को बिना एक पल की देर किए चुप कराने के लिए बांहों में समेट लिया करती थीं. उन्हें अब उनके आंसुओं से कोई वास्ता ही नहीं रहा. तभी दिल ने झटका दिया. ये वक़्त ये सोचने का नहीं. सोचना है इसे कैसे चुप कराएं? जाने कहां अकेला… कुछ कर न बैठे. कैसे इसे ममत्व दें? जाने उस बच्चे की आवाज़ में कैसी कशिश थी कि उनके दिल में एक हूक-सी उठती चली गई.
“नहीं, नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते…” मगर बच्चे के स्वर की आकुलता में थोड़ी देर जब कोई अंतर होता हुआ न जान पड़ा, तो उनके मुंह से अनायास ही निकला, “देखो बेटा, मैं तुम्हारी दादी हूं न? और मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं. जब हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करते हैं, तो किसी और की परवाह क्या करनी? पहले तुम चुप हो जाओ, फिर ढेर सारी बाते करेंगे.”
“सच्ची? आप मुझे बहूऊऊत प्यार करती हैं?” बच्चे की सिसकियां अचानक बंद हो गईं और वीना की आंखों के सामने रोकर चुप हुए अपने बच्चों की जाने कितनी मधुर तस्वीरें कौंध गईं. रोता हुआ बच्चा जब चुप होकर मुस्कुराने लगता है, तो कुहासा तोड़कर निकली सर्दियों की सुखद धूप-सा सुकून मिलता है. उनके सीने में धड़कते मां के दिल ने इस सुकून का स्वाद बहुत दिन बाद चखा था. इसे जी ही रही थीं कि बच्चे ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.
“आपने मुझे इतने दिन फोन क्यों नहीं किया? भगवानजी कैसे दिखते हैं? आपको उनके पास कोई परेशानी तो नहीं है? भगवानजी ने मुझसे बात क्यों नहीं की? आपका एक्टेंशन नंबर क्या है? अगली बार मैं डायरेक्ट आपको फोन लगाऊं? मम्मी कहती है, छोटी-छोटी बातों के लिए भगवान जी को तंग नहीं करते. उनके पास तो बहुत काम हैं न? आप जल्दी से भगवानजी का काम पूरा करके मेरे पास वापस आ जाओ. आपके बिना मेरा मन बिल्कुल कहीं नहीं लगता…” बच्चा बोलता जा रहा था और वीना की आंखों में नमी और होंठों पर मुस्कान एक साथ मिलकर मन में इंद्रधनुषी रंग बिखेरती जा रही थी. कहते हैं कि घायल की गति घायल ही जानता है. एक प्यार का प्यासा मन ही दूसरे प्यासे मन की प्यास समझ सकता है. वीना को उस बच्चे में अपना ही प्रतिबिंब नज़र आ रहा था.

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उस बच्चे को समझा-बुझाकर हंसाने में एक घंटे लग गए. फोन रखकर वीना अतीत की यादों के सायों के साथ अपनी आरामकुर्सी पर पसर गईं. मोहिनी ऐसे ही एक सांस में दस प्रश्न पूछती थी और किसना ऐसे ही अच्छे लगनेवाले शब्दों को खींचकर बोलता था. कितना सुखमय और संतुष्ट जीवन था उनका. लेकिन नियति को किसी अदना मानव की अतिशय ख़ुशी कब बर्दाश्त हुई है? जीवनसाथी के रूप में अनिमेष का सुंदर साथ और अथाह प्यार एक झटके से एक दुर्घटना में छिन गया. टूटती सांसों से बस इतना ही बोल सके थे वो कि ‘बच्चों के सपने टूट न जाएं…’ वीना ने सब कुछ लूटकर ले जा रहे डाकुओं से संघर्ष में बचे एक क़ीमती गहने की तरह इस वाक्य को कसकर थाम लिया था. घर-बाहर सब कुछ सम्हालते हुए, माता-पिता दोनों की ज़िम्मेदारियां निभाते हुए कब बारह साल बीत गए थे, कब मोहिनी ग्राफिक डिज़ाइनर बनकर अमेरिका और किसना डॉक्टर बनकर ऑस्ट्रेलिया में सेटल हो गए थे पता ही नहीं चला था…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


भावना प्रकाश

 

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