कहानी- तुम कब आओगे? 1 (Story Series- Tum Kab Aaoge? 1 )

रात दस बजे के बाद भी किसी पाठक के फोन के जवाब में शीतांशु ने पूछ ही लिया, “इतनी देर रात कौन है ये सिरफिरा?”
“अरे! पढ़नेवाले रात में ही पत्रिकाएं हाथ में लेते हैं पढ़ने के लिए.”
मेरी उस कहानी पर हर पाठक का लगभग यूं ही फोन आता, “नंदिताजी बोल रही हैं.”
“हां! बोल रही हूं.”
“आपकी कहानी पढ़ी ‘दो औरतें’. ‘क्या लिखा है आपने… मन को छू गया.”
“शुक्रिया!”
“पर वो अंत समझ नहीं आया.”
“एक बार कहानी और पढ़ लें… आ जाएगा समझ.” मैंने झल्लाकर मोबाइल काट दिया.

”सर, मैंने आपकी रचना पढ़ी थी. कितना अच्छा लिखते हैं आप!” लेकिन लेखक का गंभीर चेहरा कभी हल्की-सी मुस्कान भी नहीं दे पाता, तो पढ़ने-लिखने की शौक़ीन मैं नंदिता खिन्न हो जाती.
आज मैं उन खिन्न लेखकों की वजह से काग़ज़ पर मानवीय भावनाएं उतारने में सक्षम हो पाई और मेरे अंदर का वजूद शब्द बनकर कब अख़बारों या पत्रिकाओं के पन्नों पर जादू बिखेरने लगा, मैं ख़ुद भी नहीं जानती. मुझे याद है मेरी पहली कहानी पर ढेरों पत्र मिले थे, तब कहानी के साथ लेखक का पता भी प्रकाशित होता था. मोहल्लेवालों ने भले ही न पढ़ी हो, लेकिन कहानी पर दूर-दराज़ से पत्रों का सिलसिला 8 दिन बाद ही शुरू हो गया था.
पाठकों की यह प्रतिक्रिया मुझे मालूम नहीं कितना आनंदित कर पाई, पर बाऊजी के हाथ लगे एकमात्र अंतर्देशीय पत्र ने उनके माथे की भृकुटि को तान दिया था. मैंने बाकी ख़तों को चुपचाप अन्य काग़ज़ों में छिपा दिया था.
मैं पड़ोस के राहुल दा की सिविल परीक्षा की तैयारी के बीच यदा-कदा उनकी बौद्धिक चर्चा में शामिल होती रही. बौद्धिक पहेलियों के शौक़ीन राहुल दा उस दिन बोले, “पहेली सुलझाने में जितना आनंद है, उतना ही उसको भेजकर इनाम पाने में है.” मैं राहुल दा की इस बात पर खिलखिलाकर हंस दी. “…और तुम्हारी भाभी के नाम से भेज दो तो माशा अल्लाह! ख़तों का अंबार लग जाता है. अरे, किसी महिला का पता क्या छप गया, सब प्रशंसा के पुल बांधने लगते हैं.” मेरी खिलखिलाहट वहीं थम गई.
मैं अपनी पहली कहानी पर आए ख़तों को ज्यों का त्यों वापस ले गई. राहुल दा से पूछने ही तो आई थी कि कैसे जवाब दूं अपने पाठकों को. मेरे जवाब देने का सारा जोश ठंडा पड़ गया था.

यह भी पढ़े: न भूलें रिश्तों की मर्यादा 
समय के साथ-साथ मेरी लेखनी की धार काग़ज़ और शब्दों के बीच घिस-घिसकर धारदार होती चली गई थी. पर पाठकों के साथ रिश्ते को लेकर मैं असमंजस की स्थिति में ही रही.
ख़तों से फोन के ज़माने में आई, तो टेलीफोन डायरेक्टरी के खोजी पाठकों की मुझ तक पहुंचने की कई कोशिश नाकाम हो जाती या कर दी जाती, पर मेरी ज़िंदगी पर इसका कोई असर नहीं होता. मैं तो अपनी प्राइमरी स्कूल की छोटी-सी नौकरी, घर-गृहस्थी और लेखन के बीच खोई रहती. शीतांशु की पदोन्नति के कई चरण उन्हें पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से दूर करते गए और मैं सहजता से परिवार की ज़िम्मेदारियों को ओढ़ती चली गई. बड़े बेटे सौरभ का करियर और छोटे बेटे की नींव भरती पढ़ाई में मैं उतनी ही रुचि लेती थी, जितनी अपने लेखन में.
टेलीफोन से मोबाइल, ई-मेल और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज़माने में अब संपादक लेखक के रंगीन फोटो, मोबाइल नंबर्स और ई-मेल पता भी छापने लगे थे. रात दस बजे के बाद भी किसी पाठक के फोन के जवाब में शीतांशु ने पूछ ही लिया, “इतनी देर रात कौन है ये सिरफिरा?”
“अरे! पढ़नेवाले रात में ही पत्रिकाएं हाथ में लेते हैं पढ़ने के लिए.”
मेरी उस कहानी पर हर पाठक का लगभग यूं ही फोन आता, “नंदिताजी बोल रही हैं.”
“हां! बोल रही हूं.”
“आपकी कहानी पढ़ी ‘दो औरतें’. ‘क्या लिखा है आपने… मन को छू गया.”
“शुक्रिया!”
“पर वो अंत समझ नहीं आया.”
“एक बार कहानी और पढ़ लें… आ जाएगा समझ.” मैंने झल्लाकर मोबाइल काट दिया. मैं बिस्तर पर सोने का उपक्रम करती, पर मेरी बंद आंखों के बीच चलती पुतलियां मेरे ना सोने का राज़ खोल देती थीं.

        संगीता सेठी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करेंSHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli