कहानी- तुम न करना… 2 (Story Series- Tum Na Karna… 2)

क्यों बेटियों को अंदेशा हुआ कि आभा विवेक के राजपूत न होने पर मुंह बनाएगी, जबकि सच यह था कि विवेक के बारे में जान-सुनकर उसकी फोटो देखकर आभा ख़ुशी से बोली थी, “इतना अच्छा दामाद हमारी ख़ुशक़िस्मती से मिल रहा है. वैसे भी आजकल जाति-वाति कौन पूछता है, बस लड़का और फैमिली अच्छी हो…”

सुलभा ने आभा की प्रतिक्रिया के विषय में बताया तो भावना ठंडेपन से बोली, “ख़ुशी ज़ाहिर करने के अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं था. हम लोग उनकी निगेटिव प्रतिक्रिया कब सुनने लगे.”

भावना की इस टिप्पणी की भी पृष्ठभूमि वह समझती थी.

आभा जब जाने लगी, तो सुलभा ने भावुकता से कहा, “फोन पर कभी-कभी बात कर लिया करो.” यह सुन आभा उसके गले लगते हुए बोली, “हां दीदी, अब जल्दी-जल्दी फोन करूंगी… सच बताऊं, नाराज़ थी तुमसे… तुमने भी कब से मुझे फोन नहीं किया. मैंने भी सोच लिया था, जब तक तुम बात नहीं करोगी, मैं भी फोन नहीं करूंगी… बेटियां हैं, तो क्या बहन को भूल जाओगी..”

पल में रूठने और पल में माननेवाली छोटी बहन हमेशा की तरह साफ़गोई से मन की बात कह गई.

“बेटियां अपनी जगह और बहन अपनी जगह समझी. फ़िलहाल छोटी बहन से ख़ूब काम करवाने का समय आ गया है…”

“हां दीदी, शुभ्रा की शादी में ख़ूब धमाल करेंगे…”

आभा के कहने पर उसने स्नेह से उसके हाथों को सहलाया.

आभा के जाने से घर सूना लग रहा था. शुभ्रा भी विदा हो जाएगी, तो घर कैसा लगेगा, यह सोचकर उसने सिर सोफे से टिका दिया. शुभ्रा अपनी मां को थका-थका-सा देख चिंता से बोली थी, “मौसी के आने पर बेवजह ख़ुद को इतना थका लिया… खाना बाहर से भी आ सकता था या फिर मेड से बनवा लेतीं, पर नहीं आप लोगों को तो सारा प्यार खाने में ही उड़ेलना अच्छा लगता है.

और हां मम्मी, मेरी शादी में मौसी की दख़लंदाज़ी ज़्यादा न होने देना. पिछली बार भावना दी की शादी में कमरा सुधारने के चक्कर में हमारे सामान की ऐसी की तैसी कर दी थी. भावना दी तो कितना चिढ़ गई थीं. उनके रहने का इंतज़ाम कहीं और कर देना सही रहेगा. घर में रहेंगी, तो हमारी प्राइवेसी नहीं रहेगी.”

‘मौसी कोई बाहर की हैं क्या…’ वह चाहकर भी कह न पाई. उसी समय भावना का फोन आया था.

सुलभा के ‘हेलो’ कहते ही, “मौसी गर्ईं क्या?” भावना ने प्रश्‍न दे मारा.

“अभी-अभी बस निकली ही है.” सुलभा के कहने पर भावना चहककर बोली, “बढ़िया है, अब मैं अपना प्रोग्राम बना सकती हूं. मैं और कुहू घर आ रहे हैं.” यह सुनकर सुलभा  बोली, “आना ही था तो अभी आती, मौसी से मिल लेती. तुझे बहुत पूछ रही थी.”

यह भी पढ़ेरिश्तों में बचें इन चीज़ों के ओवरडोज़ से (Overdose Of Love In Relationships)

“रहने दो मम्मी उनका ड्रामा. याद नहीं, बैंगलुरू आई थीं, तब मिलने तक नहीं आई.”

“छोड़ न पुरानी बातें… बताया तो था उसने. सेमीनार था समय नहीं मिला. मोबाइल नेटवर्क भी गड़बड़ था.”

“ये सब तो कहनेवाली बातें हैं.” भावना अपने मन में पुरानी खिन्नता अभी भी पाले थी. अपनी मौसी के साथ ढेर सारे ख़ूबसूरत और स्नेहिल क्षणों को भुलाकर वह उस क़िस्से को सीने से लगाए बैठी थी, जब भावना बैंग्लुरू में कॉलेज में थी. आभा सेमीनार के लिए वहां आई, पर उससे नहीं मिली ,इस बात पर सुलभा ने त्वरित टिप्पणी की थी.

“देख तो आभा को, बैंग्लुरू आकर भी तुमसे नहीं मिली.” उस समय भावना ने कहा भी था, “मम्मी, उनकी लोकेशन यहां से बहुत दूर थी.”

“दूर-पास क्या, आई थी तो मिल लेती…” काश! उस व़क्त वह भावना के मन में दुर्भावना के बीज बोने की जगह पहले ही कहकर रखती कि आभा से बात कर लेना. अगर उसे आने में द़िक्क़त हो, तो तुम ही उससे मिल आना.. पर उस समय बेवजह की क्षणिक निंदा समय व्यतीत का कारण बन मन को सुकून दे गई.

“और हालचाल बताओ, शुभ्रा की शादी की बात सुनकर क्या कहा मौसी ने. कोई मीनमेख तो नहीं निकाली? आदत है न उनकी…”

“कैसी बात कर रहे हो तुम लोग, मौसी है तुम्हारी, मीनमेख क्यों निकालने लगी…”

“नहीं, विवेक गैर राजपूत है न…”

“ऐसा कुछ नहीं है. शादी की बात सुनकर बहुत ख़ुश हुई. अच्छा सुन, थोड़ी देर में फोन करती हूं, कुछ काम है…”

बेटियों का अपनी ही मौसी के प्रति संदेह और अवांछित व्यवहार देखकर सुलभा दुखी हो गई. बात करने का मन नहीं था, सो काम का बहाना बनाकर भावना को टाल दिया.

“ओके बाय…” कहकर भावना ने फोन रखा, तो सुलभा आंखें मूंदकर आत्ममंथन करने लगी कि क्योंकर आभा के प्रति ऐसी धारणा बेटियों के मन में बनी.

क्यों बेटियों को अंदेशा हुआ कि आभा विवेक के राजपूत न होने पर मुंह बनाएगी, जबकि सच यह था कि विवेक के बारे में जान-सुनकर उसकी फोटो देखकर आभा ख़ुशी से बोली थी, “इतना अच्छा दामाद हमारी ख़ुशक़िस्मती से मिल रहा है. वैसे भी आजकल जाति-वाति कौन पूछता है, बस लड़का और फैमिली अच्छी हो…”

सुलभा ने आभा की प्रतिक्रिया के विषय में बताया तो भावना ठंडेपन से बोली, “ख़ुशी ज़ाहिर करने के अलावा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं था. हम लोग उनकी निगेटिव प्रतिक्रिया कब सुनने लगे.”

भावना की इस टिप्पणी की भी पृष्ठभूमि वह समझती थी.

तीन भाई-बहनों में आभा घर में सबसे छोटी और सबसे मुंहफट है. आभा से दो साल बड़े और उससे चार साल छोटे भाई शिशिर ने लव मैरिज की थी. बेटे की शादी धूमधाम से करने के सपने संजोए अम्मा-बाबूजी बेटे के कोर्ट मैरिज से दुखी थे. अम्मा-बाबूजी की मायूसी देख पहले तो आभा ने शिशिर को कोर्ट मैरिज करने पर फटकार लगाई, फिर स्वयं ही अथक प्रयास कर शिशिर और उसकी पत्नी को अम्मा-बाबूजी का आशीर्वाद दिलवाया.

     मीनू त्रिपाठी

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