कहानी- तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय 1 (Story Series- Tumahari Bhi Jai Jai, Humari Bhi Jai Jai 1)

“श्रेष्ठी, अब तो लड़की भी लड़के को देखती है. तुमने भी देखे हैं.”

“ग़लत. लड़की, लड़के को देखती नहीं है, ख़ुद को दिखाती है. लड़की को लड़का पसंद है या नहीं है, कोई नहीं जानना चाहता. तुमने कभी नहीं पूछा, मुझे कौन-सा लड़का पसंद है.”

“समाज का यही चलन है.”

“समाज में क्या-क्या तो बदल गया मां और क्या-क्या नया आ गया. बस, ये कायदा और नियम नहीं बदल रहा है, जबकि इस नियम पर चलनेवालों को मुंह की खानी पड़ती है. मेरा वश चले तो मैं नियम बना दूं कि लड़केवाले लड़कीवालों को दहेज दें. आख़िर लड़की ज़िंदगीभर लड़के और उसके परिवार की ख़िदमत में रहती है.”

दो बेटों के बीच अकेली बेटी श्रेष्ठी. अच्छे संस्थान से एच.आर. में एम.बी.ए., लंबी और ख़ूबसूरत भी. पिता हरे कृष्ण की आर्थिक स्थिति अच्छी है. श्रेष्ठी के विवाह को लेकर सभी अच्छी कल्पना और कामना से भरपूर हैं. श्रेष्ठी और आर्थिक स्थिति दोनों श्रेष्ठ हैं, अतः इस परिवार का अनुमान है कि वे ऐसे लड़के को ढूंढ़ ही लेंगे, जो सबकी चाहतों को पूरा करता हो. श्रेष्ठी ने चुनौती दी, “पापा, आप लड़का तलाशो, मैं नौकरी.”

हरे कृष्ण सुरूर में, “देखें, किसकी तलाश पहले पूरी होती है.” अनुमान अक्सर ग़लत हो जाते हैं.

कल्पनाएं जब यथार्थ की भूमि पर उतरीं, तो ज्ञात हुआ कि श्रेष्ठी जैसी श्रेष्ठ लड़की का विवाह भी उतना आसान नहीं है, जितना सोचा जा रहा था.

श्रेष्ठी की तलाश पहले पूरी हो गई. उसे पूना की अच्छी कंपनी में रिक्रूटमेंट एक्ज़ीक्यूटिव का जॉब मिल गया. कंपनी में नौकरी की चाह लिए आनेवाले आवेदकों का वो बड़ी कुशलता से इंटरव्यू लेने लगी. सिलेक्शन प्रक्रिया के पहले चरण में वह जिसे योग्य पाती, उसे तुरंत बॉस के पास भेजती. जल्दी ही वह अपने काम को एंजॉय करने लगी.

हरे कृष्ण की तलाश ज़ारी है. श्रेष्ठी को अपनी नुमाइश करनी पड़ती है और वह बहुत संस्कारी बनकर लड़केवालों के सम्मुख प्रस्तुत होती है. प्रयास ज़ारी है. उप पुलिस अधीक्षक लड़का, सीए, इंजीनियर हर जगह पर कोशिशें की गईं. कोई न कोई बहाना बना लड़केवाले दो टूक जवाब दे देते. हरे कृष्ण और अनुराधा निराशा और अपमान से गुज़र रहे हैं. श्रेष्ठी मानसिक उत्पीड़न और हीनता बोध से. वह ख़ुद को लेकर आश्‍वस्त थी. सोचा ही नहीं था कि उसे कोई लड़का रिजेक्ट कर सकता है. सोचा ही नहीं रिजेक्शन के कैसे-कैसे कारण होते हैं. वो इस देखने-दिखाने से तंग आ गई थी. एक दिन बहस पर उतर आई, “मां, लड़का ही क्यों लड़की पसंद करता है? लड़की क्यों नहीं लड़का पसंद या नापसंद करती? मेरे पास डिग्री है, नौकरी, कॉन्फिडेंस व क्वालिटीज़ हैं, इन सबके बावजूद मुझे सिलेक्शन का अधिकार नहीं है.”

“श्रेष्ठी, अब तो लड़की भी लड़के को देखती है. तुमने भी देखे हैं.”

यह भी पढ़ेसीखें ब्रेन मैनेजमेंट के कारगर उपाय (Things You Can Do To Care For Your Brain)

“ग़लत. लड़की, लड़के को देखती नहीं है, ख़ुद को दिखाती है. लड़की को लड़का पसंद है या नहीं है, कोई नहीं जानना चाहता. तुमने कभी नहीं पूछा, मुझे कौन-सा लड़का पसंद है.”

“समाज का यही चलन है.”

“समाज में क्या-क्या तो बदल गया मां और क्या-क्या नया आ गया. बस, ये कायदा और नियम नहीं बदल रहा है, जबकि इस नियम पर चलनेवालों को मुंह की खानी पड़ती है. मेरा वश चले तो मैं नियम बना दूं कि लड़केवाले लड़कीवालों को दहेज दें. आख़िर लड़की ज़िंदगीभर लड़के और उसके परिवार की ख़िदमत में रहती है.”

“श्रेष्ठी, तुम भोली हो. तुम्हें हम लोग बहुत-सी बातें नहीं बताते हैं कि तुम्हें बुरा लगेगा. एक लड़के के पिता ने तुम्हारे पापा से यहां तक कह दिया कि एक बार ले-देकर आप तो अपनी लड़की से छुटकारा पा जाएंगे. उसका जीना-मरना, हारी-बीमारी, तमाम ख़र्च जीवनभर हमको उठाने पड़ेंगे.”

श्रेष्ठी लगभग चिल्ला पड़ी, “ओ गॉड! ऐसी कैलक्यूलेशन. मां, मैं शादी नहीं करूंगी.”

“जहां संयोग होगा, आसानी से बात बन जाएगी. परेशान क्यों होती हो?”

“मेरी शादी नहीं हो रही है, इसलिए मैं परेशान हूं, तुम इस तरह क्यों सोच रही हो मां? मैं अपनी नौकरी में ख़ुश हूं. सचमुच शादी नहीं करूंगी.”

“अकेली लड़की का रहना आसान नहीं है. रिश्तेदार वैसे भी जब-तब पूछते रहते हैं कि श्रेष्ठी की शादी कब करेंगे?”

“हम सेमी अरबन, सेमी रूरलवाले सज़ा भोग रहे हैं. सामंती संस्कार हमसे नहीं छूट रहे हैं. हम ख़ुद को बहुत आधुनिक मानते हैं, तब भी ये संस्कार अपभ्रंश के रूप में हमारे दिमाग़ में मौजूद हैं. तुम और पापा लड़केवालों के हाथ जोड़ते फिरते हो. जबकि मेरे ऑफिस की कुछ लड़कियां लिव इन रिलेशनशिप में हैं और ख़ुश हैं. उन्हें कोई द़िक्क़त नहीं है.”

“श्रेष्ठी, कोई भी तरीक़ा या प्रथा ऐसी नहीं है, जहां द़िक्क़त न हो.”

“पर ये लड़कियां मेरी तरह नुमाइश नहीं करतीं. ये लड़केवाले बड़े चालाक बनते हैं. इन्हें सुंदर, शिक्षित, स्वस्थ व सलीकेदार लड़की चाहिए और लाखों का दहेज भी चाहिए, फिर भी तेवर इनका ऐसा होता है, जैसे लड़की का उद्धार कर रहे हैं. बिल्कुल नहीं सोचते कि इस तरह कोई

आत्मविश्‍वासी लड़की अपना आत्मविश्‍वास खो देती है. मुझे लड़केवालों की मेहरबानी नहीं चाहिए. शादी नहीं करूंगी.”

घर में कभी मस्ती का माहौल होता था. अब मातम का है. श्रेष्ठी का जो आत्मविश्‍वास, माता-पिता को प्रभावित करता है, द्रवित करने लगा. सबकी चाहतों को पूरा करनेवाला लड़का आकाश कुसुम की तरह होता है. आकाश कुसुम को पाने की ज़िद नहीं छोड़ेंगे, तो श्रेष्ठी आत्मविश्‍वास खो देगी. समझौता किसे नहीं करना पड़ता? बल्कि करना चाहिए. अपनी कल्पना और कामना को थोड़ा नीचे लाना होगा. तो यह जो श्रेयस अपने माता-पिता व भैया-भाभी के साथ श्रेष्ठी को देखने आ रहा है इकलौता नहीं है, लेकिन अनुराधा को संतोष है बड़े भाई और तीन विवाहित बहनों के बाद सबसे छोटा है.

    सुषमा मुनीन्द्र

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli