“सॉरी न…” कहते हुए उसके कदमों में लेट जाती, दोनों हाथ जोड़कर. तो निकुंज और लता हंंसे बिना नहीं रह पाते. खेल ख़त्म होता, तो बाहर से अख़बार उठा लाती.
“आज की ताज़ा ख़बर आप सब एक के बाद एक सुनाएंगे, ज़ोरों से, ताकि मैं भी सुन सकूं…. मैं तब तक चाय बना लाती हूं. मां, आज पहले आपकी बारी है, नो चीटिंग…”
“हा… हा…” लता हंसते हुए ख़बर पढ़ने लगती.
चाय पीकर प्रसून ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया. मन थोड़ा हल्का महसूस कर रहा था. पीहू किचन में ख़ुश हो रही थी कि मुरझाए चेहरे जो फिर खिल उठे थे. ‘हंसते बोलते सब कितने अच्छे लगते हैं. कुहू भी सुनेगी तो ख़ुश होगी.’
ऑफिस से लौटकर प्रसून घर में अपनी कंपनी का फ़रमान सुनाता है. कंपनी के काम से उसे फ्रांस भेजा जा रहा था.
“पीहू को भी लेता जा प्रसून यहां अकेली क्या करेगी, वह भी घूम आएगी तेरे साथ.”
“अरे, नहीं नहीं मम्मी… और किसी की भी फैमिली नहीं जा रही. पता नहीं वहां, ऑफिस में कितना समय लगेगा. यह अकेले अनजान शहर में होटल में बोर हो जाएगी. यहां आप दोनों का साथ तो है.”
“हां मम्मीजी, मैं नहीं जा रही इनके साथ बोर होने आप लोगों को छोड़कर… जाएं ये अकेले. हम तीनों यहां मजे़ करेंगे.” पीहू प्रसून की मजबूरी समझते हुए निकुंज-लता को मनाने के लिए बोली.
“काश! उस दिन उसने ना कहा होता, ‘जाए अकेले…’ आंसू भरी आंखों से टकटकी बांधे पीहू शून्य में ताक रही थी.
फ्रांस का वह जहाज, जिसमें प्रसून अपने सहकर्मियों के साथ सवार था, दुर्घटनाग्रस्त हो गया. जिसमें प्रसून के साथ-साथ उसके साथियों की भी मृत्यु हो गई. मातम पसर गया सारे घर में. पहले ही बड़ी मुश्किल से सबके चेहरे पर हंसी ला पाई थी पीहू. सबको हंंसाने वाली पीहू अब एकदम ख़ामोश जड़ हो गई. निकुंज और लता उसके आगे अपने दुखों पर नियंत्रण पाने की पूरी कोशिश कर रहे थे. कुहू भी आ गई. किसी का दर्द कम न था, कौन किसे समझाता. वर्ष बीत गया.
निकुंज और लता धीरे-धीरे सामान्य हो रहे थे. कुहू ससुराल जाती, तो माहौल बदल जाता, पर पीहू तो यादों में घिरी उसी कमरे में पड़ी बुत बन गई थी. सभी उसे समझाते पर पीहू में जरा भी परिवर्तन नहीं आया. हमेशा हंसनेवाली पीहू जैसे बोलना ही भूल चुकी थी. काम के बाद वह अपने कमरे में चुपचाप पड़ी रहती. करने को तो उसमें मेरी मांटेसरी में जॉब कर ली, पर उसकी आंखों में हरदम वीरानगी तैरती रहती.
समय हर मर्ज की दवा है तीन साल बीत चुके, तो कुहू के गर्भ में शिशु पलने लगा था. ख़ुशी की ख़बर सुनकर निकुंज और लता के वीरान मन में हर्ष का अंकुर फूट पड़ा. वे अब काफ़ी संयत हो चले थे. दर्द में लिपटी पीहू इतने सालों में पहली बार मुस्कुराती. उसने कुहू को बधाई दी. काश प्रसून होता, तो घर में इस समय कितना ख़ुशी का माहौल होता. अपनी डबडबाई आंखें सबसे छुपाते हुए किसी बहाने से अपने कमरे में चली गई.
“कुछ करना होगा मम्मी, पीहू के लिए वह बहू नहीं अब केवल बेटी ही है आपकी, अभी उसने देखा ही क्या है. जीवन में यादों के सहारे नहीं जिया जा सकता. मम्मी-पापा उसका ब्याह कर दीजिए. इस दकियानूसी समाज में लोगों की निगाहें, ताने अकेली औरत को चैन से जीने नहीं देते. प्रखर भी कह रहे थे.
हां, याद आया प्रखर कि मुंबई में मीटिंग है. इनकी चंदा बुआजी हमेशा बुलाती हैं. शादी में आ नहीं पाई थी, वहीं मुंबई में रहती हैं. इनका आईडिया था कि हम अपने साथियों को भी ले जाएं, उसका मन थोड़ा बदल जाएगा. बुआ से भी मिल लेंगे और हफ़्तेभर मुंबई भी घूम लेंगे…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
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