कहानी- तुम्हारी हां तो है… 1 (Story Series- Tumahri Haan Toh Hai… 1)

“देखो हमने तुमसे पहले योगासन फिनिश कर लिए.” पीहू ख़ुश हो जाए, इसलिए दोनों उसके निर्देशानुसार अपने-अपने योगासन कर चुके थे.

पीहू ने अपने बालों को लपेटेकर जूड़ा बनाया, पर छोटे कटे बालों के कारण दो चार लटें अभी उसके गालों पर खेल रही थीं.
“बस, मैं अभी आप लोगों के लिए अभी जूस ले आई. फिर बैडमिंटन के दो-दो हाथ होंगे पापाजी, है ना?” उसने मुस्कुराते हुए अनुमति ले ली. कुहू के जाने के बाद से उन्होंने रैकेट छुआ भी नहीं था.

 

 

“बेटी क्या नाम है तुम्हारा?” लड़की देखने के लिए सपरिवार आई लता ने पूछा था.
“पीहू”
“अरे वाह बेटी के लिए ‘कुहू कुहू’ करते थे, अब बहू के लिए पीहू… पीहू… भी किया करेंगे.”
बेटी कुहू ख़ुशी से उछली थी.
“बहू क्यों? अब से 2 बेटियां हमारी बगिया में चहका करेंगी, कुहू, पीहू…”
कुहू के पिता निकुंज हंसे थे. लता ने प्यार से पीहू के कंधे पर हाथ रखा था.
“और मेरा क्या?” बेटा प्रसून भी पीहू की झेंप मिटाने के लिए खुलने लगा था. दोनों पर मां-बाप का लाड़ देख अपनी जलन दिखाते हुए बोला.
“भैया आप तो हो चूं चूं… का मुरब्बा…” कहकर वो हंस पड़ी, तो सभी ने उसका साथ दिया. पीहू भी मुस्कुरा उठी.
पीहू-प्रसून की शादी हुए 2 वर्ष कैसे हंसते-खेलते पंख लगाकर उड़ गए पता ही नहीं चला, आपसी नोकझोंक छेड़छाड़ और घर का ख़ुशनुमा माहौल देख कर कोई भी रश्क करता. पीहू तो इतनी घुल-मिल गई कि ननद-भाभी कम, बहने ज़्यादा लगती. ख़ुशमिज़ाज पीहू ने इतना अपनापन दिया कि लता और निकुंज को लगता कि उन्हें बड़ी बेटी ही मिल गई है.
कुहू के बी.काॅम पूरा करते ही उसकी शादी के लिए अच्छा रिश्ता आ गया. निकुंज और लता ने संतुष्ट होकर उसकी शादी भी कर दी. कुहू के जाने से घर की बगिया में सन्नाटा पसर गया. पीहू का चहकना भी बंद हो गया. प्रसून ऑफिस से घर लौटता, तो एक ओर पड़ जाता. कुहू की कमी सभी को खलती. निकुंज और लता की उदासी भी किसी से छिपी नहीं थी. पीहू ने फिर स्थिति संभाली और अपनी उदासी उतार बगिया को फिर से गुलज़ार करने में जुट गई. ख़ुशमिज़ाज तो वह थी ही और एनर्जी से भरपूर भी. सुबह पहले जैसे ही प्रसून को गुदगुदा कर उठा देती,
“चलो चलो… उठो जॉगिंग के लिए देर हो रही है. देखो मैं रेडी हूं…” उसने ट्रैक सूट पहन लिया था.
“मम्मी-पापा भी जाग गए हैं. उन्हें बेड टी दे आई हूं. उठो उठो…” उसने फिर टिकल किया था. प्रसून बचपन से ही गुदगुदी में कंट्रोल नहीं कर पाता, वह हंसते हुए उठ खड़ा हुआ.
“अरे क्या करती हो छोड़ो पीहू… हा… हा…”
एक घंटे में वे दोनों जॉगिंग से वापस आ गए, तो पापा ने कहा, “देखो हमने तुमसे पहले योगासन फिनिश कर लिए.” पीहू ख़ुश हो जाए, इसलिए दोनों उसके निर्देशानुसार अपने-अपने योगासन कर चुके थे.
पीहू ने अपने बालों को लपेटेकर जूड़ा बनाया, पर छोटे कटे बालों के कारण दो चार लटें अभी उसके गालों पर खेल रही थीं.
“बस, मैं अभी आप लोगों के लिए अभी जूस ले आई. फिर बैडमिंटन के दो-दो हाथ होंगे पापाजी, है ना?” उसने मुस्कुराते हुए अनुमति ले ली. कुहू के जाने के बाद से उन्होंने रैकेट छुआ भी नहीं था.
जूस ख़त्म होने के बाद बैडमिंटन शुरू हो गया था.
“रुको तो पीहू… पीहू ठीक से… सुनो तो पीहू… पीहू अरे नहीं… अब बस पीहू… पीहू इधर मुझे भी…”

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हर शॉट पर बगिया में मंद-मंद हंसी के साथ आवाज़ें गूंज रही थी. पीहू को पता था पापाजी अपने ज़माने के चैंपियन थे और मां उनके साथ खेलते-खेलते अच्छी खिलाड़ी बन गई थीं. प्रसून तो अपने क्लब का चैंपियन ही था. पीहू को ज़्यादा आता नहीं था, यूं ही सबको हंसाने के लिए खेलती. इसीलिए आड़े-तिरछे शटल मारती रही. कभी जान-बूझकर व ऐसे-ऐसे पोज़ देती कि सब हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते.
“अच्छा खेली ना पापाजी?” वह पूछती भी.
“बहुत अच्छा पीहू बेटा.” निकुंज हंसी रोक कर बोलते.
सब को हंसाना ही तो पीहू का मक़सद था. डबल्स में तो उसने कितनी बार प्रसून को ही ठोंक दिया.
“अरे संभल के यार पीहू मैं तुम्हारा नया-नया पति हूं.” प्रसून शरारत से बोल उठा.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


डाॅ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

 

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Usha Gupta

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