… “अगेन थैंक यू दोस्त आंटी!.. पर टक्कर हुई है, तो भी दो बार आप दोनों को और सिर टकराना होगा, वरना काला कुत्ता काटता है मेरी पुच्ची आंटी कहती हैं…”
“मिट्ठूउउउ…” मिलिंद धीरे से बस थोड़ा सख़्ती से बोला और चुप रहने का इशारा किया.
पीहू की आंखों में फिर प्रश्न देखकर मिलिंद, जाने क्यों बोल उठा, “वह.. इसकी गवर्नेंस है ना, वही उल्टा-पुल्टा सिखाती रहती है इसे.”
पीहू की आंखों में फिर भी सवाल था जैसे तो…
“… सात साल पहले मेरी पत्नी का देहांत हो गया था…” उसके स्वर में उदासी साफ़ झलक रही थी.
“सॉरी!” पीहू ने कहा.
उसे लगा जैसे अनजाने में ही उसने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.
रास्तेभर एक-दूसरे की थोड़ी-थोड़ी मदद करते-करते मुंबई आ गया था. तब तक साथ भला लगने लगा था. जाने क्यों पीहू को लग रहा था कि वह मिट्ठू का नंबर ले ले. इतनी देर में वह काफ़ी अपना-सा बन गया था, पर सब न जाने क्या समझें, यह सोचकर रुक गई.
“ओके बाय मिट्ठू , दोस्त को याद रखोगे न?”
“रख लूंगा दोस्त आंटी, पर नंबर तो आपने दिया ही नहीं और नाम भी बताया नहीं…” वह बेचारगी से बोला, तो पीहू मुस्कुरा दी.
पीहू अपना मोबाइल नंबर देने लगी, तब मिट्ठू ने कहा, “पापा, अपने मोबाइल पर लिखो ना…” मिलिंद को लिखना ही पड़ा. मिट्ठू ने चेक करने के लिए कॉल दबा दिया.
“हांं सही है.” रिंग बज उठी थी.
थोड़ी देर बाद लगेज बेल्ट के पास खड़ी पीहू ने देखा मिलिंद का लगेज आ गया था, वह उठाकर जाते हुए धीरे से बोला था, “गुड बाय!” शायद इतनी औपचारिकता उसने ज़रूरी समझी.
“बाय-बाय दोस्त आंटी…” मिट्ठू ज़ोरों से हाथ हिलाते हुए उसका हाथ थामे साथ चल पड़ा, जवाब में पीहू ने भी हाथ हिला दिया.
प्रखर ने एक-एक कर तीनों के बैग उठाकर ट्रॉली पर रख लिए थे. पीहू ने छोटा बैग कंधे पर लटका लिया.
“चलें पीहू?.. बड़ा गोलमटोल बच्चा है. इतनी देर में लगता है तुम से काफ़ी हिलमिल-सा गया. क्या नाम है उसका?” वह दबे स्वर से बोली.
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“मिट्ठू…” उसके स्वर में उदासी घिर आई थी. कुहू ने भी महसूस किया. कारण समझते हुए उसने कुछ ना कहना ही उचित समझा.
“आओ जल्दी चलें प्रखर आगे निकल गए हैं.”
ट्राॅली के साथ चलते-चलते वे भी बाहर निकल आए.
“बुआजी…” प्रखर बुआ के घर में अंदर घुसते ही उन्हें देखकर ख़ुशी से चीखा था और पैर छूकर गले लिपट गया.
“पैरों को क्या कर लिया बुआजी मैंने तो सोचा था मेरी शादी में आप डांस करोगे जमकर. वह झुमका बरेली वाला, पर आप तो आए ही नहीं. वेरी बैड वेरी सैड…” वह बुआ के तकियाकलाम उन्हीं के अंदाज़ में बोला था.
“चुप कर मेरी नकल करता है. नई बहू के सामने मज़ाक उड़ाएगा… आ जा बहू जीती रह! हये कितनी सोनी है, बहू तो फोटो से भी ज़्यादा सुंदर है.” चंदा बुआ कुहू को निहार कर बलाएं लिए जा रही थी. कुहू पैर छू कर उठी ही थी.
“तू तो अब हर घड़ी कुहू… कुहू… की बोली ही निकाला कर!” बुआ ने प्यार से कुहू को पास बिठा लिया.
“अरे तूने तो कहा था बहू की सहेली भी साथ में है.. कहां है?” प्रखर ने बुआजी से पीहू के बारे में नहीं बताया था.
“प्रणाम बुआजी!” पीहू ने भी बुआजी के पैर छुए.
“आ जा… जीती रह, बैठ बेटा बैठ…”
फिर ऊंची आवाज़ देकर वे बोलीं, “दीपू, कहां है नीचे उतर के आ सब आ भी गए. सामान कमरे में पहुंचा दे. जल्दी से नाश्ता-पानी ले आ और शुचि दी को देख बाथरूम से निकली कि नहीं… समीर भैया को भी बता दे कह रहा था बस फैक्ट्री तक चक्कर लगा कर आता हूं.”
समीर ने पिता की टी-शर्ट फैक्ट्री संभाली हुई थी. उनका देहांत हो चुका था और शुचि ने फाइन आर्ट्स में स्नातक की डिग्री ली हुई थी…
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
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